सबगुरु न्यूज। सदियों से आज तक मानव अपने कार्यों की सिद्धि में ही लगा रहता है और मन ही हर इच्छा की पूर्ति के लिए प्रयास करता रहता है। इन प्रयासों में कभी सफल हो जाता है और कभी असफल हो जाता है। सफल होने पर कुदरत की शक्ति को धन्यवाद देता है और अपनी सफलता को भाग्य के साथ जोड़ देंता है।
असफल होने पर वह कुदरत की शक्ति के सामने हताश और निराश होकर अपने को भाग्यशाली नहीं मान कर मौन हो जाता है। दोनों ही स्थितियां व्यक्ति को आस्तिक और नास्तिक बनाने के रास्ते दिखा देती हैं लेकिन जरूरी नहीं है कि व्यक्ति दोनों में से एक बने या वास्तविकता वादी ही बना रहे।
इन सब स्थितियों को देख कर व्यक्ति इतना समझ जाता है कि प्रयास करना और उन प्रयासों में मन इच्छा फल मिल जाए ये जरूरी नहीं है भले ही सारी स्थितियां कितनी भी अनुकूल क्यों ना हो।
सकारात्मक और नकारात्मक तथा वास्तविकता वादी जमीनी शक्तियां प्रयासों के फल पाने के लिए आपस में भले ही कितना भी जंग क्यों ना कर लें लेकिन जब फल अज्ञात होता है कुछ काल के लिए तो बस यही अज्ञात सबके विश्वास का भगवान बना रहता है, जिसे अदृश्य शक्ति का अदृश्य देव कहा जाता है।
यहीं पर संभावना और अनुमान जन्म लेकर अपने अपने तर्को से अपने किसी को विजेता मानने की उम्मीद को बना देता है। फिर भी फल अज्ञात होता है।
संत जन कहते हैं कि हे मानव, श्रीकृष्ण ने इस अज्ञात के विषय में कह दिया था कि कर्म कर ओर फल की इच्छा मत कर। इसके बाद भी मानव अपने कर्म का फल अपनी इच्छा के अनुसार ही लेने में जुटा होता है। सकारात्मक हो या नकारात्मक या वास्तविकतावादी सभी अपने कर्म की शक्ति पर आस लगाए बैठें रहते हैं कि हे शक्ति तू मन इच्छा फल बख्श, मेरे कर्म का फल मेरे इच्छा के अनुसार ही दे।
इसलिए हे मानव, तू चिंता फिकर मत कर और शरीर में विराजमान उस प्राण वायु रूपी ऊर्जा को देख जो शरीर की चिंता फिकर नहीं करती, उसकी इच्छानुसार वह चाहे जब निकल जाती है। चाहे कोई उसे रोकने के लिए कितने भी प्रयास कर ले। इसलिए हे मानव, तू इस चिंताशील मन को मजबूत बनाए रख तथा भावी फल के लिए किए गए प्रयासों से संतोष धारण कर।
सौजन्य : ज्योतिषाचार्य भंवरलाल, जोगणियाधाम पुष्कर