सबगुरु न्यूज। तमतमाते सूर्य को देख ऋतुएं भी मुस्कराने लगी मानो सूरज से कह रही हों कि हे सूरज तुम और भी तमतमा लो, पूरी क्षमता लगा लो क्योंकि तुम्हारा स्वभाव तो सदा जलने जलाने का ही कुदरत ने बनाया है। तुम्हें गर्मी का बादशाह कहलाने में कोई कसर बाकी ना रह जाए। क्योंकि हे सूरज हर ऋतु तुम्हारे पक्ष में नहीं होती। बस यह गर्मी की ऋतु, ये गर्म हवाएं ही तेरी गाथा का गुणगान कर रही हैं। ये तुझे तुझे महाशक्ति के बादशाह का खिताब दिलाने में कोई कमी नहीं रख रही है। तू खूब जमकर तप और तहस-नहस कर दे जीव व जगत को, क्योंकि तेरा विरोध करने का परिणाम सब जानते हैं, इसलिए सब तेरे से बच कर रहने के उपाय कर रहे हैं।
पानी के शांत और शीतल दरिया, तालाब तूने सूखा डाले। अथाह सागर जो सदा अपने खेल में ही मस्त रहते थे उनका खारा पानी तक भी तू जला जलाकर भांप बनाकर ले जा रहा है और अपार जलजीवों को काल के गाल में डाल रहा है। क्या वन और उपवन, क्या शहर, गांव, ढाणी, राहगीर, गरीब तेरे खौफ से हाल बेहाल हो गए।
तू कहर बरसा रहा है और सबको बेजान किए जा रहा है। इसमें तेरा कोई दोष नहीं है क्योंकि कुदरत ने तुझे ऐसा ही बनाया है। जी भर के तपा ले नहीं तो ये मौका फिर ना आएगा और मेरा चक्र बदल कर वर्षा की ऋतु को ले आएगा।
संत जन कहते हैं कि हे मानव, प्रचंड गर्म ऊजाओं का बादशाह सूरज सदा तपता ही रहता है, इसलिए कुदरत ने ऋतु चक्र बनाकर इस सूर्य की प्रचंडता को बांधकर प्राणी को हर तरह से सुरक्षित कर रखा है। जब मानवीय प्रवृति जलने और जलाने और सभी को येन केन प्रकारेण मिटाने की होती है। उसे नियंत्रित करने के लिए प्रचंड शक्तियां भी धराशायी हो जाती है। ऐसे में केवल काल बल और स्थान बल ही उस जलाने वाली शक्ति की शाम कर देती है और रात के उस ठंडी प्रवृति जैसे चन्द्रमा का आह्वान करती है। यही रात फिर मानव को राहत दे कर सूर्य की गरमी से राहत दिलाती है।
इसलिए हे मानव, शरीर में गर्मी अगर बढ जाती है तो वह शरीर को तहस-नहस कर देती है पर थोडा सा शीतल और ठंडा पेय ही गर्मी को खत्म कर शरीर को आराम दे देता है। पानी गर्मी को कहता है कि तू मुझे कितना भी जला ले मैं वापस बादल बनकर बरस जाऊंगा और वन, उपवन, गांव, शहर, खेत, खलिहान तथा जीव व जगत को फिर सुखी और समृद्ध बना दूंगा।
सौजन्य : ज्योतिषाचार्य भंवरलाल, जोगणियाधाम पुष्कर