सबगुरु न्यूज। खेल शंतरज का खेला जा रहा था। अपने अपने पक्ष के वजीर, हाथी, घोड़े, ऊंट और पैदलों ने बादशाह को किले में सुरक्षित कर रखा था। शंतरज के बादशाह अपने पराक्रम और शौर्य की दिमागी चाले चल रहा था। बजीर उछल उछल कर अपने राजा की शक्ति का भान करवा रहा था।
वीर योद्धा गाज गाज कर माहौल को भयभीत करने में लगे हुए थे, लेकिन इतने में इन सबको चीरता हुआ विरोधी बादशाह का पैदल घुस आया और बादशाह को शह देता हुआ मुकाबले के लिए खड़ा था। यह हाल देखकर बादशाह हैरान हो गया। धरी रह गई राजा की चालें ओर उसके योद्धाओं की गरजना क्योंकि राजा अपने को बचाने के लिए खुद ही मजबूर हो गया।
शंतरज के खेल में अपने बाहुबलियों और मजबूत किले की सुरक्षा के बीच रहते हुए बादशाह को जब विरोधी पक्ष का पैदल सीधे ही शह देने के लिए सामने आ जाता है तो ऐसे में उस राजा और उसके बाहुबली वजीर, योद्धाओं पर तथा चाल चलाने वाले दिमाग़ की कुशलता पर एक भारी प्रश्न चिन्ह लग जाता है कि शंतरज के ये जाबांज खिलाड़ी राजा का मुखौटा ओढे हुए हैं और अपने बाहुबल को झूठा प्रदर्शन कर रहे हैं। अगर ऐसा नहीं होता तो पैदल सीधे राजा को शह देने के लिए सामने नहीं आ सकता है।
शंतरज का खेल भावनाओं से नहीं खेला जाता है वरन दिमागी कसरत ही इस खेल को खेल कर एक अंजाम तक ले ज़ाती है। चाल की चूक ही शंतरज के बादशाह को शह देने के लिए आमंत्रित करती है, भले ही वह पैदल मात नहीं दे पाए पर राजा के शौर्य पराक्रम के वीर रस को खट्टा कर देता है और सडा देता है उन रणनीतिकारों को जो रण में अपनी जाबांज चालों का प्रदर्शन करते रहते हैं और अपने को खेल का एक सिरमौर मानते हैं।
संत जन कहते हैं कि हे मानव, खेल चाहे शंतरज का हो या जिन्दगी के किसी भी क्षेत्र का हो, लेकिन जब पक्षपात के गहरे नशे का जाम पीता हुआ कोई व्यक्ति इठलाता हुआ खुद को ही एक अकेला वीर योद्धा मानने लग जाता है तब प्रगति करने की क्षमता और घुटन भरी सांसे तथा प्रेरणा देती हुई आग एक चिन्गारी बन कर विद्रोह पर ऊतारू हो जाती है।
शनैः शनैः यह चिंगारी धुआं उठाने लगती है तो निश्चित रूप से क्रांति की एक विधिवत शुरूआत हो जाती है। एक दिन यही क्रान्ति महापरिवर्तन कर देती है, पक्षपात का सारा नशा उतर देती है। विभीषण तो शत्रु के घरों में ही पैदा होते हुए ठीक लगते हैं। अगर घर में कोई विभीषण पैदा हो गया तो उस रावण की तरह मालिक का कमजोर होना ही सिद्ध करता है।
इसलिए हे मानव, तू अपने घर में ही पक्षपात मत कर और तेरी कमी को बताने वाले को तू द्रोही मत मान। दमन की भाषा को छोड़। सबको अपने हितों की रक्षा करने के लिए आजाद छोड़ ताकि आगे बढ़ने की प्रेरणाएं घुटे नहीं। हां, सबकी सोच अलग अलग हो सकती हैं लेकिन घर के मालिक की विरोधी नहीं होती। इसलिए हे मानव, तू अपने घर में सबसे पहले प्रेम को बनाने में लगा रहा। प्रेम बनाए रखने पर घर ही नहीं बाहर के लोग भी तेरे सच्ची प्रेमी बन जाएंगे।
सौजन्य : ज्योतिषाचार्य भंवरलाल, जोगणियाधाम पुष्कर