सबगुरु न्यूज। मन जब इच्छाओं का गुलाम होता है तो वह दुनिया में अपनी महंगी ख्वाहिशों को पूरा करने के लिए अपनी खुशी को किसी भी मूल्य पर खरीदने के लिए संघर्ष पर उतारू हो जाता है और मनोरोगी बन जाता है।
जैसे विष को खाने वाले कीड़े केवल विष को ही खाते हैं। दाख, छुवारे व अमृत फल की तरफ़ आंख उठा कर नहीं देखते। बस यही मन की बादशाहत होती हैं। जहां भी वह रम जाता है तो बस उसी मे खो जाता है। मन के सामने अच्छे बुरे कुछ भी नहीं होते हैं केवल मन जिसमें रम जाए उसे वह अपना प्रिय मानता है।
चिकित्सक जब रोगों का इलाज करने के लिए खारी खारी बूटियों के काढे पिला पिलाकर उपचार करता है तो भी व्यक्ति का रोग ठीक नहीं होता है तब मन मुस्करा जाता है कि यह इलाज को करने वाला चिकित्सक अपने ज्ञान का तो एक खिलाड़ी हैं लेकिन मन के रोगों के लिए केवल एक अनाड़ी है। जड़ी बूटियों के आधार पर मेरा उपचार करने वाला यह चिकित्सक मेरे रोग से हार मान जाएगा।
मन की बादशाहत को कोई भी परास्त नहीं कर सकता है क्योंकि वह बडा लडैया है जो जड़ी बूटियों को दरकिनार करता हुआ अपनी ही बात की बादशाहत को ही जिंदा रखता है। जब चिकित्सक हार जाता है तो वो धीरे-धीरे बोलता है कि जनाब में मन का रोगी हूं और किसी भी जड़ी बूटियों से मेरा इलाज नहीं हो सकता।
मेरे रोग का इलाज तो मेरे दिल शकुन है जब वहा मिल जाएगा तो मै खुद ही जीत जाऊंगा। दिल का यही शकुन किसी को प्रेमी बना देता है तो किसी को क्रोधी। यह दोनों ही अपनें मन के शकुन के लिए अपना हर रंग और रूप दिखा देते हैं। एक प्रेम दिवाना तो दूसरा प्रतिशोध दीवाना बन जाता है।
संत जन कहते हैं कि हे मानव व्यक्ति परिस्थितियों का पुतला और कमजोरियों का गुलाम होता है और उसी के अनुसार अपने कार्य को अंजाम देता है फिर भी उसका मन अपनी बादशाहत बनाये रखता है। संस्कार व संस्कृति से वह कोसों दूर होता है, ख्वाइश और खुशियों को नहीं वह अपने मन की भावनाओं के लिए ही संघर्ष करता रहता है।
इसलिए हे मानव काल अपने पीछे इतिहास का एक लम्बा सफर करके आया है जो यह साबित करता है कि मन बिना गद्दी का राजा और फकीरी में भी अपनी बादशाहत कायम रखता आया है और रखता रहेगा। मन को कैसे भी खरीदा नहीं जा सकता। भले ही देह इस दुनिया से चली गयी लेकिन प्रेम या प्रतिशोध के रूप में सदा अमर रहे। प्रेम और क्रोध दोनों ही मन की मनोवृत्तियां हैं जिन को काल कभी जीत नहीं पाया।
सौजन्य : ज्योतिषाचार्य भंवरलाल, जोगणिया धाम पुष्कर