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hindu mythology stories by joganiya dham pushkar-मायावी जाल का अमृत बंटवारा - Sabguru News
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मायावी जाल का अमृत बंटवारा

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मायावी जाल का अमृत बंटवारा

सबगुरु न्यूज। समस्या समुद्र मंथन की नहीं थी। उस मंथन में सभी का सामूहिक हित था। मंथन भी हो गया और अमृत कलश भी निकल आया। संकट इस बात का खडा हुआ था कि अमृत कलश के अमृत का बंटवारा सभी को क्यों नहीं हुआ। यह धोखा क्यों हुआ। समस्या केवल इसी बात की थी।

इस अमृत बंटवारे में जो चौकन्ना था वह अमृत पान कर गया, चाहे वो देव थे या दानव। केवल वही इस अमृत से वंचित हुए जो अपने उद्देश्यों से भटक गए और मायावी जाल में फंस गए। राहू चौकन्ना था समुद्र मंथन से अमृत कलश निकलने तक तथा इसलिए अमृत कलश की चोरी के बाद भी सर्वत्र घूमता रहा ओर चोरी का पता लगाता रहा तथा चांद ओर सूरज को ग्रहण लगाता रहा।

अमृत कुंभ के बंटवारे में राहू का समूह मायावी जाल में फंस गया ओर अपने अधिकारों के फलों को ले नहीं पाया तथा राहू ने जैसे तैसे उस अमृत का पान किया तो राहू का भी सिर धड से अलग कर दिया। राहू का समूह अमृत पान से वंचित हो गया और राहू अमृत पीकर भी अपने दो हिस्से करा बैठा।

अमृत बंटवारे में इतना बड़ा धोखा हो सकता है, इस कल्पना से राहू तो सचेत था पर उसका समूह धोखा खा गया ओर यह सब जानते हुए कि यह हमारे अस्तित्व का युद्ध है पर वह सब मित्रता के युद्ध की तरह ही लडते रहे तथा अपने विरोधी की चालों को समझ ना सके।

शत्रु की इस नीति को सब समझ गए इस कारण उन्होंने अपनी शक्ति का मंथन नहीं किया वरन आने वाले राहू समूह ने केवल शक्तियों का संचय किया और अपने विरोधी की चालों को धराशायी कर दिया चाहे वे चाले सकारात्मक थी या नकारात्मक। अंत में राहू का समूह स्वर्ग का अंतिम विजेता बन गया।

संतजन कहते हैं कि हे मानव, समुद्र मंथन की कथा में सभी शक्तियों ने अपना पूरा दम लगा दिया तथा अमृत कलश बाहर ले आए लेकिन अमृत के बंटवारे में ही धोखा हो गया। धोखे के इस खेल में राहू का समूह परास्त हो गया। यह कथा संकेत देती है कि यहां शक्ति के मंथन की नहीं वरन धोखे के जबाब के लिए शक्ति संग्रह की आवश्यकता थी। आने वाले राहू समूह की पीढ़ी ने यही किया ओर वह सफल हो गए।

इसलिए हे मानव, असफल होने पर पुन: शक्ति के संग्रह की आवश्यकता होती है और वही संग्रह की गई शक्ति ही अपने उद्देश्य तक पहुंचाती हैं। शत्रु के साथ मित्र के व्यवहार ही पतन का कारण बनता है क्योंकि होशियार शत्रु मित्र बनकर सभी व्यूह रचना की जानकारी ले लेता है जो उसके खिलाफ होतीं हैं। इसलिए हे मानव, सभी तरह की शक्ति का संचय कर और अविश्वास कर भितरघात करने वाले मित्रों से जो दोहरी चाल से अपनों को ही असफल करवा देते हैं।

सौजन्य : ज्योतिषाचार्य भंवरलाल, जोगणियाधाम पुष्कर