सबगुरु न्यूज। भारतीय संस्कृति में आकाश के सूरज को प्रत्यक्ष भगवान के रूप में माना जाता है और कई तरह से सूरज की पूजा उपासना की जाती है। भारतीय ज्योतिष शास्त्र में सूरज को आत्मा का कारक ग्रह माना जाता है। मान प्रतिष्ठा शासन तथा राजनीति का इसे कारक ग्रह माना जाता है। आकाश मंडल की सिंह तारा राशि का इसे स्वामी ग्रह माना जाता है। मंगल की मेष राशि में सूर्य को अपनी उच्चस्थ स्थिति में माना जाता है।
सूर्य अपनी उच्चस्थ स्थिति में पहुंचते ही अपनी गर्मी की पहली शुरूआत करने लग जाता है यह स्थिति 14 अप्रेल से 14 मई तक रहती है और उसके बाद वह शुक्र ग्रह की राशि वृष में प्रवेश कर अपनी गर्मी की बादशाहत दिखाना शुरू कर देता है। इस राशि के कृतिका नक्षत्र पर यात्रा करते करते यह प्रचंड गर्मी से जनजीवन को झुलसाने लगता है।
आगे भ्रमण करता हुआ सूर्य जैसे ही चन्द्रमा के रोहिणी नक्षत्र में प्रवेश करता है तो यह लगातार नौ दिन तक आसमान से आग जैसी गर्मी को बरसाता है और जनजीवन को खतरे में डाल देता है। हवाएं भी गर्म होकर जानलेवा “लू” का रूप धारण कर लेतीं हैं।
रोहिणी नक्षत्र में सूर्य के इस भ्रमण को नौ तपा कहा जाता है। हालांकि वृष राशि में सूर्य अभी 14 जून तक रहेगा फिर सूर्य मिथुन राशि में प्रवेश कर 15 जुलाई तक भ्रमण करेगा तथा अपनी गर्मी का असर दिखाएगा लेकिन 22 जून को सूर्य आर्द्रा नक्षत्र में प्रवेश कर एकदम भारी मात्रा में वर्षा कर अपनी भारी गर्मी से निजात दे देता है। वर्तमान में सूर्य आसमान से आग जैसी गर्मी को बरसाता जा रहा है और जनजीवन काफी मात्रा मे प्रभावित हो रहा है।
संतजन कहते हैं कि हे मानव, यह सूर्य अगर अभी आग जैसी गर्मी को नहीं बरसाएगा तो फिर बरसात कैसे होगी। विशाल समुद्रों का जल भांप बनकर कैसे बादल बनेगा और वर्षा ऋतु कैसे अपनी रंगत दिखाएगी। सूरज को अपनी गर्म बादशाहत भी रखना जरूरी है वरना ऋतु चक्र अपने गुण व संस्कृति को खो देंगे।
इसलिए हे मानव, धैर्य धारण कर तथा तपते हुए सूरज के सामने अपनी शक्ति को बनाए रख और शरीर को ठंडा रख। भूखा पेट मत रह तथा गर्म हवाओं से बच नहीं तो लापरवाही से भ्रमण करने पर लू लग जाएगी। शीत काल में यह सूर्य जितना सुख देता है अपनी गर्मी से उतना ही दुखी और परेशान कर देता है अपनी बादशाहत की गर्मी की ऋतु में। हे सूरज भगवान दया करों।
सौजन्य : ज्योतिषाचार्य भंवरलाल, जोगणियाधाम पुष्कर