सबगुरु न्यूज। भाग्य उस अनिश्चितता का नाम होता है जो कर्म को देख कर मुस्कुराता है और कहता है कि हे कर्म यह जरूरी नहीं हैं कि मैं तेरी ही इच्छा के अनुसार फल को प्रदान करूं। तेरे और मेरे मार्ग बिलकुल अलग अलग है।
दरअसल इस जहां में मेरा कोई अस्तित्व ही नहीं है फिर भी मुझे ताज बना कर सफलता पर थोप दिया जाता है और वही असफलता पर बैगाना कहा जाता है। हे कर्म सारा परिश्रम तेरा होता है और मुझे फल देने वाला बता कर तुझसे बडा बता दिया जाता है।
बच्चा जब जन्म लेता है तो उस की बुद्धि ओर मन को शनै शनै एक धारा में बहाया जाता है और उसे ऐसा माहौल दिया जाता है कि यह अपने कल के निर्माण में लगा रहे और इसी कर्म के द्वारा वह अपने उद्देश्य को हासिल कर ले।
सब कुछ भी अनुकूल होने के बाद भी जब उसे फल नहीं मिलता है और उसकी दिशा ओर दशा बदल जातीं हैं तो कर्म यहां ठगा सा महसूस करने लगता है और भाग्य मुस्कराता हुआ अपनी अनिश्चितता पर मोहर लगा देता है।
भविष्य में क्या होगा इसकी जिज्ञासा मानव को सदा से रही हैं और इस कारण भविष्य ज्ञान के शास्त्र विद्या ओर ज्ञाताओ ने हर काल में अपनी भविष्यवाणी की है जोअनुभव ओर अच्छे शोध कार्य व अनुमान पर आधारित थी।
वक्त ने इसे भी शत प्रतिशत सत्य नहीं होने दिया क्यो कि जन्म के साथ कोई कागज भाग्य का लिखा हुआ नहीं आता है। भविष्य के बारे में बताने वाला ज्ञान तो केवल शारीरिक रचना हस्त रेखा शरीर पर बने जन्मजात चिन्ह या उस समय आकाश में ग्रहों व नक्षत्रों के आधार पर ही भविष्य को बताता है।
राजा भर्तृहरि की कथा में बताया गया है कि जब राजा भर्तृहरि का जन्म हुआ तब भविष्य ज्ञान ने बताया कि भर्तृहरि एक श्रेष्ठ राजा होगे लेकिन यदि उत्तर दिशा में शिकार करने गये और काली घोडे पर बैठ कर गए तथा काले हिरण को मार दिया तो फिर यह राजा नहीं रहेंगे ओर संन्यासी ही बन जाएंगे। भर्तृहरि राजा को इसकी जानकारी नहीं थी।
एक बार राजा भर्तृहरि उत्तर दिशा में काले घोडे पर बैठ शिकार करने जाने लगे तो उनकी रानी ने उन्हें रोका तो वह नहीं माने। फिर रानी ने कहा कि अगर आप जा ही रहे हो तो फिर काले हिरण को मत मारना।
संतजन कहते हैं कि हे मानव, राजा भर्तृहरि ने तीनों ही काम कर दिए। उत्तर दिशा में शिकार पर निकले और काले घोडे पर बैठ कर गए तथा काले हिरण को मार दिया। वहां पर संत मिले तब उन संत ने उस मृत हिरण को जिन्दा कर भगा दिया तथा राजा भर्तृहरि को भला बुरा कहा। एक दम राजा भर्तृहरि का मन बदल गया ओर वह उस संत के चेले बन गए और अपना राज छोड़ दिया व अपने भाई को सौंप दिया।
यहां भाग्य कहता है कि हे कर्म देख ले यह सब तुमने किया लेकिन लोग मुझ पर ही इलज़ाम लगा रहे हैं कि इसके भाग्य में यही लिखा था।
इसलिए हे मानव, तू कर्म कर लेकिन यह आवश्यक नहीं कि सदा सब कुछ तेरे ही अनुकूल हो। भाग्य जिसे भावी अनिश्चितता कहा जाता है वह पूर्व में लिखा हुआ कागज नहीं होता है जिसे पढा जा सके। भाग्य को पढा नहीं जा सकता है बस अनुमान ही लगाए जाते हैं चाहे विद्या कोई सी भी क्यो ना हो। कर्म और फल यदि दोनों ही पूर्व रचित हो तो फिर अनिश्चितता का खेल नहीं होता है और ना ही भाग्य से इसे कोई लेना देना होता है।
सौजन्य : ज्योतिषाचार्य भंवरलाल, जोगणियाधाम पुष्कर