Warning: Constant WP_MEMORY_LIMIT already defined in /www/wwwroot/sabguru/sabguru.com/18-22/wp-config.php on line 46
hindu mythology stories by joganiya dham pushkar-एक नए छल की ओर बढता कल - Sabguru News
होम Latest news एक नए छल की ओर बढता कल

एक नए छल की ओर बढता कल

0
एक नए छल की ओर बढता कल

सबगुरु न्यूज। कल अंकुरित होने के लिए बीज़ धरती पर बो तो दिए हैं पर विश्वास ना था इन बीजों में कि ये कल यह कौनसा छल करेंगे। इन बीजों से क्या वही फसल अंकुरित होकर बाहर निकलेंगी जिसे हमने धरती पर बोया है या फिर इन बीजों के करिश्मे कल कोई और ही नया छल कर जाएंगे। मोठ बाजरे की जगह कही गंवार की तो पैदावार नहीं कर जाएंगे।

बीता हुआ कल मुझे ठीक से याद है कि बिना बरसात के ही खेत खूब हरे भरे हो गए थे और पैदावार इतनी हुईं कि वह संभली ना सकी और घर की रसोई फिर भी अन्न की बांट जोह रही थी।

कल भी मौसम ने पलटा खाया था और हम बेहद खुश थे कि इस बार तो धरती जल से परिपूर्ण हो जाएगी और जीवों की प्यास बुझ जाएगी। पर एक इतफाक हुआ बादल गाजे भी बहुत और बरसे भी बहुत, लेकिन पानी सारा समुद्र में जाकर खारा हो गया। हम इसी इंतजार में थे कि अब गर्मी खूब पड़ेगी और समुद्र से मानसून उठा कर फिर बरसात कर देंगी। सूरज तपा तो बहुत और बनाने चला पानी को भांप पर मानसून को पहले ही भारी जुकाम हो गया ओर वह धरती पर ना आकर उन समुद्र में ही मिल गया जहां उसकी कोई कीमत ना थी।

आज मौसम फिर पलटा खा रहा है तथा भारी गर्मी का प्रहार समुद्र के जल पर कर रहा है उसका यह प्रहार फिर भारी मानसून बना रहा है पर यह कल फिर कोई छल ना कर जाए और अपने जल को जमा करने कही और ना ले जाए। अब मौसम हर कल एक नए छल की ओर बढ रहा है, कभी ठंडा और कभी गर्म कर रहा है जहां कभी पूर्णता थी अब वो रिक्त होते जा रहे हैं और जो सदा ही रिक्त रहते थे वह वह परिपूर्ण होते जा रहे हैं। कल भी वही सूरज था और आज भी वही है पर मौसम बार बार पलटे खाये जा रहा है।

भौतिकता के द्वंद में और करवट बदलते कल में अब राम और रावण जैसा युद्ध नहीं होगा और ना ही कोई विभिषण चरित्र अब किसी की शरण में जाएगा बल्कि वह भौतिकता का खुदा बन कर नवाजा जाएगा। भौतिकता के सागर में यह क़लम अभौतिक बन कर बौनी होती जा रही है और मेरी अल्प बुद्धि कुछ समझ नहीं पा रही है। समझतीं भी कैसे? क्योंकि मैं ना तो सकारात्मक था और ना ही नकारात्मक। मै वास्तविकतावादी था और उन्हें समझा रहा था जो हर ज्ञान विज्ञान को अपने साथ वसीयत में लाए हुए थे और ज्ञानी होने का खिताब लिए हुए थे।

संतजन कहते हैं कि हे मानव, इस भौतिक द्वंदवाद ने हर कल को एक नया छल बना कर रख दिया। भौतिक द्वंदवाद की दुनिया में छल नामक अर्थ को नहीं जाना जाता है वरन् यह अपनी चाहत की सफलता का एक सुन्दर अस्त्र बन गया है और उसकी हर चाल सबके पकड़ से दूर होती है।

इसलिए हे मानव, ये कल फिर क्या छल करेगा इस की थाह पाना मुश्किल है क्योंकि यह समुद्र की तरह दरियादिल दिखाने वाला कल रेगिस्तान भी बना हुआ नजर आ सकता है। इस कारण हे मानव तू आज को ही मजबूत कर।

सौजन्य : ज्योतिषाचार्य भंवरलाल, जोगणियाधाम पुष्कर