सबगुरु न्यूज। आधियां कहर की और पन्ने उसूलों की किताब के थे। बेरहम हवाएं कहर ढाने लगीं और उसूलों की किताब के पन्ने फडफडाने लगे। इस रस्साकशी में फडफडाते उसूलों के पन्ने तडपते रहे पर उन हवाओं ने उन पन्नों के दर्द को दरकिनार करते हुए समूची किताब को झकझोर दिया।
असहाय उसूलों की किताब अपने लेखक और उसके संरक्षक को पुकारती रही। धूल झोंकने वाली आंधियों ने आंखों में धूल झोंक दी, संरक्षक इतना कुछ होते हुए भी केवल अपने को ही बचाने में लगे हुए थे और उसूलों की किताब को मसीहा ना मिला। किताबी पन्ने एक एक करके बिखरने लगे।
प्रकृति की विरासत इस धरती पर मानव बढ़ने लगे। बुनियादी ज़रूरत की पूर्ति के लिए वह संघर्ष करने लगे। शक्तिशाली सब कुछ अपने कब्जे में करता गया और मानव समाज में फिर जन्म लिया विषमताओं ने। पेट की आग और साथ ही आवश्यकताओं की घुटन ने सामाजिक सघंर्ष को और बढा दिया।
अंत में समझौते के तहत उसूलों और कायदों के पन्ने लिखे गए और एक किताब दुनिया के सामने आई। इस उसूलों की किताब में मानव कल्याण का अप्रतिम मसौदा था। व्यक्ति, परिवार, समाज और प्रकृति की हर विरासत कैसे सुखी व समृद्ध रहे, कोई भी बुरी ताकत इनको नुकसान ना पहुंचा सके। इस हेतु मानवीय मूल्यों को स्थापित करने के तरीकों को बताया गया।
समय बढता गया और काल मूक गवाह बनता गया। उसूलों की किताब के पन्ने कभी पूर्णतया सुरक्षित रहे और कभी बैरहम हवाओं ने इन्हें फडफडाते रहने के दुख दे दिए। उसूलों की किताब के मूल लेखक और संरक्षक इस दुनिया से विदा हो गए और जिन्हें विरासत में यह किताब मिली वह सब इसे भगवान की तरह पूजने तो लगे पर उनके मन में यही भाव थे कि ये सचमुच के भगवान नहीं है।
इसी धारणा के तहत ये उसूलों की किताब पूजनीय होने के बाद भी दरकिनार कर दी गई। अपनी ही सोच के पन्ने जब बढते गए तो मानव हित की जगह अपने हितों को साधने की किताबें अपने पांव फैलाने लगी। इससे समाज में विषमताओं की खाई काफी गहरी होती गई। शक्ति शाली के भी कई टुकड़े हो गए और कमजोर के भी कही टुकड़े हो गए।
मानव कल्याण के उसूलों की किताब और अपनी सोच के उसूलों के पन्नों में आज विश्व स्तर पर संघर्ष छिडा हुआ है। इन सभी संघर्षों में केवल कुदरत की विरासत धरती और मानव कल्याण के उसूलों की किताब को ही झुलसना पड रहा है। धरती पर हर तरह की ज्यादाती इसके प्राकृतिक संतुलन को बिगाड़ रही है तो वहीं उसूलों की किताब के पन्ने फडफडाते हुए उन दर्दों को झेल रहे हैं जिसका कोई हादसा नहीं होता।
विश्व की इस स्थिति को देख कर लगता है कि कहीं कोई छल इन मानव कल्याण की उसूलों की किताब के साथ ना हो जाए और उसके पन्ने फडफडाते हुए बारी बारी से किताब से निकल ना जाएं। अपने ही कल्याण के उसूलों की किताब कोई नई ना बन जाए। अपनों के लिए ही कल्याण के उसूलों के पन्ने अगर बढते गएण् तो फिर मानव के कल्याण के उसूलों के पन्ने ही फटते जाएंगे।
संतजन कहते हैं कि हे मानव, यदि उसूलों की किताब के पन्ने जो मानव कल्याण के लिए हैं उन पर अहंकार और स्वार्थ की बेरहमी हवाएं अगर चलती हैं तो फिर वह फडफडाते हुए ही दर्द का शिकार हो जाते हैं और उसूलों की किताब फिर एक आकाश के तारों की तरह केवल आदर्श ही बनकर रह जाती हैं जो केवल देखे जाते हैं छुए नहीं जाते।
इसलिए हे मानव, तू उन उसूलों की किताब के पन्ने जो मानव कल्याण के लिए है उनकी हिफाज़त कर और केवल अपने हितों को साधने के लिए संघर्ष मत कर अन्यथा यह मानव समाज बिखर जाएगा और हर तरह की विषमताओं का साम्राज्य बढ जाएगा।
सौजन्य : ज्योतिषाचार्य भंवरलाल, जोगणियाधाम पुष्कर