सबगुरु न्यूज। दूल्हा जब बारात लेकर शादी करने जाता है तो एक जिम्मेदार व्यक्ति को लाल कपडे की एक छोटी थैली दी जाती है जिससे कुछ रूपए होते हैं जिसे कोथली कहा जाता है।
दूल्हे को ‘बींद’ स्थानीय भाषा में कहा जाता है इस व्यक्ति को बींद कोथली देकर बारात के साथ भेजा जाता है ताकि रास्ते में बरातियों के चाय नाश्ते व अल्पाहार पर खर्च कर सके तथा दुल्हन के घर लगने वाले नेकाचार को चुका दे और शेष बची नकद राशि को वापस दूल्हे के घरवालों को लौटा दे।
यह काम जिम्मेदारी का होता है इसलिए इस बींद कोथली को संभालने वाले व्यक्ति की अहम भूमिका होती है और उसे बारात में प्रमुख की हैसियत से देखा जाता है जो दूल्हे यानी बींद के पिता की भूमिका से भी बडी भूमिका निभाता है।
इस बींद कोथली में कितनी नकद राशि है इसकी जानकारी केवल दूल्हे के माता पिता व उस लाल कोथली के धारक को ही होती है। बींद कोथली वाला बस यहीं सोचकर अपनी भूमिका का निर्वाह करता है कि मैं कम से कम खर्च करूं और बींद कोथली की गर्मी बरक़रार रखूं।
बारात को चार बार यदि चाय पानी नाश्ता करना होता है तो वह सब को बातों में उलझाए रखता है और दो बार ही चाय पानी नाश्ता कराता है और सब को पूछता रहता है कि खर्चे की चिंता मत करो लेकिन कोई भी व्यक्ति खाली नहीं रहना चाहिए।
बींद कोथली वाले व्यक्ति का यही लक्ष्य होता है कि बारातियों की मनवार करते रहे और आवश्यक खर्च करता रहे। लेकिन कितने रूपए कहा खर्च करने हैं यह वह बिल्कुल भी तय नहीं करता है। बस वह उस दिशा की ओर बढता है जहां बारात और दुल्हन के घर नेक देने का काम येन केन प्रकारेण तरीके से चुका अपना लक्ष्य प्राप्त कर बारात को वापस दूल्हे के घर छोड़ देता है और लाल कोथली का हिसाब किताब दूल्हे के घरवालों को सोंप देता है।
बारात में गाने बजाने वालों को भी तथा शगुन के लिए खडे व्यक्तियों को भी वह लगातार धन बांटता रहता है फिर भी बींद कोथली की राशि को ज्यादा खर्च नहीं होने देता भले ही वह ग्यारह रूपए दे या ज्यादा से ज्यादा बेईज्ज़ती होती देख इक्कीस रूपए दे देता है।
बहुत मितव्ययी हो कर वह अपनी भूमिका निभाता है और उसे जितनी धन राशि मिली उसकी आधी भी राशि खर्च नहीं होने देता है और वापस बींद कोथली दूल्हे के घर वालों को देकर कहता है कि मैने सारे काम सही ढंग से निपटा दिए हैं, कहीं भी धन की कमी नहीं आने दी। दूल्हे के घरवाले भी उसे धन्यवाद देकर नेक चुका देते हैं।
संतजन कहते हैं कि हे मानव, ये बींद कोतली को संभालने वाला व्यक्ति घर के मुखिया से भी ज्यादा मितव्ययी भूमिका का निर्वाह करता है और अपनी लाल बींद कोथली में सदा नकद धन राशि रख कर बची हुई राशि भी मुखिया को बचत के रूप में सौंप देता है। लाल रंग चूंकि ऊर्जा बढाने वाला तथा लक्ष्मी जी का प्रतीक होता है इसलिए बींद कोथली लाल रंग के कपडे की होती है।
इसलिए हे मानव तू लाल बींद कोथली वाले व्यक्ति की भूमिका की तरह अपना घर चला। आज की यह बचत कल के निर्माण में उपयोगी होगी।
सौजन्य : ज्योतिषाचार्य भंवरलाल, जोगणियाधाम पुष्कर