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विपदा पडी मोरध्वज प्यारे अपने कंवर को हाथों मारे - Sabguru News
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विपदा पडी मोरध्वज प्यारे अपने कंवर को हाथों मारे

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विपदा पडी मोरध्वज प्यारे अपने कंवर को हाथों मारे

सबगुरु न्यूज। जब परमात्मा किसी की परीक्षा ले और परीक्षा देने वाला अपनी निष्ठा तथा ईमानदारी के साथ अपने कर्तव्य का पालन करे भले ही उस परीक्षा में उस का सब कुछ लुट जाए तो ऐसी स्थिति में परमात्मा परीक्षा देने वाले के त्याग व कुर्बानी पर मेहरबान हो कर उसे सब कुछ वापस दे देता है।

धार्मिक कथाओं में बताया गया है कि एक समय राजा मोरध्वज थे। वह अपनी पत्नी व अपने पुत्र के साथ श्रीहरि की भक्ति में लीन रहते थे। एक दिन उन्होंने श्रीहरि से निवेदन किया कि आप हमारे यहां भोजन ग्रहण करें। इस पर श्रीहरि ने कहा हे मोरध्वज हम तुम्हारे घर आएंगे तब बताएंगे कि हमें क्या भोजन करना है। एक दिन श्रीहरि राजा मोरध्वज के घर गए। सभी ने हरि का बहुत स्वागत किया।

श्रीहरि बोले कि हे मोरध्वज हम आज तुम्हारे घर भोजन करना चाहते हैं लेकिन भोजन में तुम दोनों पति पत्नी अपने पुत्र को मेंरे सामने आरे से चीर कर भोजन के लिए प्रस्तुत करो और हां, यह सब करते समय तुम दोनों पति पत्नी की आखों में आंसू नहीं आने चाहिए। श्री भगवान हरि द्वारा ली जाने वाली इस विकट परीक्षा से नहीं घबराए ओर दोनों पति पत्नी आरे से अपने पुत्र को चीरने लग गए।

अंत में चीरने के बाद जेसे ही मोरध्वज की पत्नी की आखों में आंसू निकले तो तुरंत हरि बोले हम यह भोजन स्वीकार नहीं करते क्योंकि हे राजा, तुम्हारी पत्नी की आंखों में आंसू निकल रहे हैं। तब रानी बोलीं नहीं भगवान, यह खुशी के आंसू हैं कि अब आप भोजन हमारे घर करेंगे।

रानी की यह बात सुन कर श्री भगवान खूब प्रसन्न हुए और बोले कि हे राजा मोरध्वज तुम पति पत्नी दोनों की भक्ति से मैं प्रसन्न हूं। यह कहते की राजा मोरध्वज का पुत्र पुनः जिन्दा हो गया। भगवान बोले कि हे मोरध्वज हर युग में कुर्बानी और त्याग के लिए जाना जाएगा क्योंकि तुम्हारी भक्ति में पूर्ण रूप से समर्पण है। किसी तरह का लोभ इस त्याग में नहीं है। भगवान चले गए और राजा मोरधवज व उसका परिवार आनंद में रहने लगे।

संतजन कहते हैं कि हे मानव, परमात्मा कडवे ग्रास नहीं देता। किसी के घर में मौत, मय्यत हो जाती है और दाह संस्कार के बाद उस परिवार के परिचित अपने घर से भोजन लाकर या बाजार से मंगवा कर उस मृतक परिवार के घर ले जाते हैं और उन परिवारों वालों को ढाढ़स बंधाकर उन्हें खाने पीने की मनवार करते हैं, इसे कडवा ग्रास कहा जाता है। रोता हुआ मृतक का परिवार बेमन से कडवे ग्रास खाता है और आंखों से उसके आंसू निकलते रहते हैं।

इसलिए हे मानव, तू अपने कर्तव्य का पालन पूर्ण निष्ठा और बिना किसी लोभ के मत कर। सही व सच्चा कर्म ही वही मीठे ग्रास खिलवाकर उस व्यक्ति के त्याग और बलिदान को इसलिए अमर कर देता है कि इस व्यक्ति की निष्ठा स्वार्थ से सनी हुई नहीं है और ना ही यह इसके समर्पण के गहरे लाभ व हानि के भाव छिपे हुए हैं।

इसलिए ये धार्मिक कथाएं बताती हैं कि हर त्याग और बलिदान अपना ही हित साधने के लिए नहीं होना चाहिए अन्यथा कडवे ग्रास ही खाने पडेंगे। बिना स्वार्थ के किया गया त्याग ही परमात्मा के मीठे ग्रास के योग्य होता है।

सौजन्य : ज्योतिषाचार्य भंवरलाल, जोगणियाधाम पुष्कर