सबगुरु न्यूज। सावन मास में प्रकृति रक्षाबन्धन को उत्सव के रूप में मनाती है और सावन मास में बरसे अमृत रूपी मेघों के जल से उपजी हरियाली तथा जल स्त्रोतों को सुरक्षित करने के लिए शेष बाकी के महिनों में धरती की आवश्यकता के अनुसार ही जल बरसाती है साथ ही हवा भी उसी अनुसार चलने लग जाती है।
सावन मास की वर्षा ॠतु के बादल धरती को झक कर स्नान कराते हैं और रिमझिम बरसते हुए शनैः शनैः धरती की सारी गर्मी निकाल देते हैं। सावन के बादलों से नहायी धरती हरी भरी हो जाती है। धरती पर खाद्यान्न, वनस्पतियां, रंग बिरंगे सुगंधित फूल, पेड पौधे उग जाते हैं।
ऐसा लगता है कि मेघों के रूप में विधाता खुद धरती से मिलने आए हैं और अपना अमृत रूपी जल पिलाकर नए अवतार के रूप में हरियाली, नई फसलों व जल स्त्रोतों को भर जाते हैं। धरती प्रसन्न होकर हरियाली रूपी चूदंडी पर संतरगे फूलों को ओढ़कर अद्वितीय श्रृंगार कर अपना रूप निखारती है। आकाश के सूरज, बादल, हवाओं को बंधनों में बांधती है और कहती है कि हे प्रकृति के देवो अब मेरी रक्षा करना क्योंकि अब मुझे मेरी गोद में पल रही हरियाली फसलों खाद्यान्नों को पाल पोसकर बडा करना है साथ ही जीव जगत का कल्याण करना है।
हे आकाश के सूरज अब अपना तेज मुझ पर जलाने वाला ना डालना नहीं तो मेरे जल स्त्रोत सूख जाएंगे और हरियाली खत्म हो जाएगी। तू फिर घने बादलों के बहाने जल बरसाने मेरे पास अपनी उत्सुकता से आता रहे। हे हवाओं अब तुम अपना प्रचंड वेग कम रखना ताकि मेरी गोद में पल रहे बाल भगवान रूपी फसले गिरें नहीं, असंख्य पेड पौधे अपना विकास ओर विस्तार कर सके।
मानो धरती इन वचनों का रक्षा सूत्र सूर्य और हवाओं को बांधती है तथा सूर्य व वायु भी आने वाले भाद्रपद, आसोज और कार्तिक मास में पृथ्वी के वचनों के अनुसार ही काम करते हैं साथ ही धरती को आवश्यकता के अनुसार ही अपना वेग रखते हैं। जब जब भी इन रक्षा बधंनों के नियमों को यह सूर्य व वायु तोडते हैं तो फसल व वनस्पति उत्पादों को क्षति हो जाती है।
संतजन कहते हैं कि हे मानव, प्रकृति ऋतु चक्र के माध्यम से आकाशीय ग्रह, नक्षत्रों और पिंडो को तारामंडल में परिक्रमा कराकर उन सब ऋतुओं के गुण धर्म को बनाए रखने के लिए एक रक्षा बंधन अर्थात रक्षा सूत्र का कार्य करती है। सावन का यह रक्षाबन्धन हर ऋतु के गुण धर्म की रक्षा कर अपना चक्र पूरा करता है और हर बार प्रकृति इस प्रकिया को ज़ारी रखते हुए सावन मास में रक्षाबन्धन के धागे बांधती है।
इसलिए हे मानव, तू भी सावन मास में बरसे अमृत रूपी जल का संरक्षण कर ताकि पेयजल आपूर्ति आसन रहे और जीव जगत हरा भरा रहे। जल से उपजी हरियाली और फसलों, पेड़ पौधों का संरक्षण कर तथा उन्हें सुरक्षित रखने के लिए इससे सम्बंधित हर कार्य कर ताकि प्रकृति के इस अनमोल रक्षा बन्धन की लाज रह जाए। भले ही इसे सामाजिक प्राणी होने के नाते राखी या रक्षा बन्धन की तरह मना लेकिन प्रकृति के इस बन्धन की भी रक्षा कर।
सौजन्य : ज्योतिषाचार्य भंवरलाल, जोगणियाधाम पुष्कर