सबगुरु न्यूज। राजस्थान के जैसलमेर जिले की वर्तमान पोकरण तहसील कभी राज घराना था और यहां पर तंवर वंश के राजा अजमल जी राज्य करते थे। लगभग 667 साल पुरानी यह बात है। राजा अजमल जी के संतान नहीं थी और किसी की सलाह पर वह द्वारका में श्री कृष्ण जी के मंदिर गए।
द्वारकाधीश की मूर्ति के सामने खडे होकर अरदास करने लगे कि हे प्रभू मेरे संतान नहीं है। आप कृपा कर मेरे संतान होने का वरदान दें। वे बार बार यही कहते रहे और मूर्ति की तरफ देखते रहे कि शायद यह कोई जवाब देगी। मूर्ति पत्थर की थी वह बोल नहीं पाईं। इस पर राजा अजमल जी को गुस्सा आ गया और उनके हाथ में जो लड्डूओं का प्रसाद था उनमे से एक लड्डू निकाला ओर मूर्ति के सिर पर दे मारा।
यह सब देखकर मंदिर के पुजारी को गुस्सा आ गया ओर वह प्रेम से बोला कि हे राजा भगवान श्री द्वारिकाधीश मंदिर की मूर्ति में नहीं समुद्र में रहते हैं। यह सुनकर राजा अजमल जी तुरंत समुद्र में कूद गए।
समुद्र में राजा अजमल जी को शेष नाग की शैय्या पर द्वारिकाधीश नजर आए। उनके सिर पर एक पट्टी बंधी हुई थी। सिर पर बंधी पट्टी को देख राजा अजमल जी ने कहा कि प्रभु आप के सिर पर चोट कैसे आई। मुसकराते हुए द्वारका धीश ने कहा कि मेरे एक भक्त ने मुझ पर गुस्सा कर के लड्डू से मेरा सिर फोड़ दिया।
अजमल जी एकदम समझ गए और मन ही मन प्रभु से माफ़ी मांगने लगे। तब द्वारिकाधीश ने उन्हें कहा कि हे अजमल तेरे घर एक पुत्र जन्म लेगा तथा भादवा की दूज को जब नया चांद अपनी पहली चांदनी बरसाएगा तब मैं स्वंय बालक के रूप में तेरे घर रामदेव नाम से अवतरित होऊंगा। कुंकुम के चरण तेरे आंगण में बन जाएंगे तथा तेरे बाल पुत्र के साथ मैं भी पालने में बालक रूप में मिलूंगा।
कुछ ऐसा ही हुआ। भादवा की दूज को राजा अजमल के घर छोटे बालक के कुंकुम के चरण बन गए तथा पालने में सो रहे उनके पुत्र वीरम देव के साथ एक नवजात बालक आ कर सो गया। राजा अजमल जी की पत्नी मैणादे ने देखा कि उसके पुत्र वीरम देव के साथ एक और नवजात बालक भी सो रहा है तब वह एकदम घबरा गई और चिल्लाने लगी।
उनके चिल्लाने की आवाज सुन कर राजा अजमल जी आए और उन्होंने कुंकुम के चरण अपने घर में बने देखे तो वह समझ गए कि यह द्वारिकाधीश का अवतरण है रामदेव जी के रूप में। अजमल जी बेहद प्रसन्न हुए ओर पूरे राज्य में मंगलाचार और बधाइयां बंटने लगी। बालक के रूप में रामदेव जी जन्मते ही अपने चमत्कार शुरू हो गए। लोकगाथाओं ओर धार्मिक साहित्यों में यह कथा मिलती है और सर्वत्र आज भी गाई जाती है।
यह कथा अति प्राचीन नहीं है वरन विक्रम संवत 1409 की है जिसे अब 667 साल हो चुके हैं।यह चमत्कारी बालक राजा अजमल जी की पत्नी मैणादे के गर्भ से उत्पन्न नहीं हुआ लेकिन उनका लालन पालन अजमल जी व मैणादे ने ही किया था इसलिए रामदेव जी के वही माता पिता कहलाए।
विक्रम संवत 1432 मे रामदेव जी ने कई चमत्कार दिखाए ओर स्वंय ने जीवित समाधि ले ली थी। आज भी उनके समाधि मंदिर के दर्शन करने लाखों लोग भादवा की दूज के दिन आते हैं और रामदेवरा पोकरण जैसलमेर में भारी मैला लगता है।
कथाएं जो भी हो लेकिन जमीनी हकीकत यही है कि आस्था और श्रद्धा के देव उस रामापीर की समाधि पर आज भी वर्ष भर श्रद्धा का सैलाब उमडता है। भादवा की दूज और बाबा रामदेव जी का अवतरण दिन है जिसे जन्म दिन के रूप में मनाया जाता है। बाबा रामदेव जी का समाधि मंदिर ग्राम रूणीचा पोकरण जैसलमेर में है।
सौजन्य : ज्योतिषाचार्य भंवरलाल, जोगणियाधाम पुष्कर