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मैं तो चाल्या म्हां के गांव, था सगलां ने राम-राम - Sabguru News
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मैं तो चाल्या म्हां के गांव, था सगलां ने राम-राम

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मैं तो चाल्या म्हां के गांव, था सगलां ने राम-राम

सबगुरु न्यूज। जीवन रुपी बाग को चलाने वालीं आत्मा जब शरीर से रूठ जाती हैं तो शरीर रूपी बाग को सदा सदा के लिए उजाड़ देती है और यह शरीर जो बाग़ बगीचे की तरह सदा हरा भरा रहता था उसका अस्तित्व सदा के लिए मिट जाता है और केवल स्मृति शेष ही रह जाती है।

देह को धारण करने वाला जीव जन्तु मानव दानव या फिर अवतारी ही क्यो ना हो सबके शरीर को छोड़कर यह आत्मा चली जाती है और मृत शरीर पंचततव में विलीन कर दिया जाता है। देह को धारण करके अवतार के रूप में जन्म लेने वाले श्री राम व श्री कृष्ण भी अंतत: इस देह को छोड़ कर चले गए। ऐसा धार्मिक मान्यताओं में वर्णित है।

कुछ इसी तरह से भारत देश के राजस्थान राज्य की मरूधरा के जैसलमेर जिले की पोकरण तहसील में तात्कालिक राजा अजमल जी तंवर के घर पर शरीर रूपी के एक बालक ने अवतार के रूप में जन्म लिया। वह बालक बाबा रामदेव जी के नाम से जगत में जाना जाता है।

राजस्थानी लोक साहित्यो से लोक भजनों से जानकारी मिलती है कि बाबा रामदेव जी साक्षत द्वारकाधीश के अवतार थे। बालक रूप से ही वह कई चमत्कारी काम करने लगे। बाब रामदेव जी ने मूल रूप से उस तात्कालिक समाज में व्यापत कुरीतियों का अंत करने का बीड़ा उठाया। जाति पांति छुआ-छूत के खिलाफ उन्होंने अपने हर तरह के सुधार के कार्य किए। इस कारण उन्हें महान चमत्कारी संत और समाज सुधारक के रूप में काम किया।

बाबा रामदेव गरीब और दुर्बलों के वह महान मसीहा थे। इस धरती पर जब अवतारी प्रकट होते हैं तो वह सर्व प्रथम अव्यवस्थित समाज को व्यवस्थित करने कार्य करते हैं और सबके साथ समानता का व्यवहार करते हैं। समाज में पैदा हुए अहंकार का नाश कर प्रेम, सहयोग और समन्वय का कार्य करते हैं। केवल आपातकालीन स्थितियों में ही वह अपने चमत्कारी रूप को प्रकट करते हैं।

मक्का से पधारे पीरो को भी बाबा रामदेव जी ने अपना चमत्कार बताया था इस कारण पांचों पीरों ने उन्हें पीरों का पीर कहा और वह रामापीर के नाम से प्रसिद्ध हुए। यह बात विक्रम संवत 1409 की थी जिसे आज 667 वर्ष पूरे हो रहे हैं। आज विक्रम संवत 2076 चल रहा है। बाबा रामदेव जी का अवतरण विक्रम संवत 1409 मे भाद्रपद मास की शुक्ल द्वितीया को हुआ था।

विक्रम संवत 1442 मे बाबा रामदेव जी ने सभी लोगों को बुला कर बताया कि अब मैं इस दुनिया में नही रहूँगा इसलिए तुम धर्म और जाति पांति और छुआ-छूत जैसी बुराईयों को छोड़ो। यह बताकर बाबा रामदेव जी ने कहा अब हम अपनी आत्मा के मूल गांव में जा रहे हैं और तुम सब हिलमिल कर रहो। यह कह कर रामदेव जी ने ग्राम रूणीचा में जीवित समाधि ले ली और इस लोक से चले गए। केवल 33 वर्ष की उम्र तक के इस अल्प समय में बाबा रामदेव जी ने इस दुनिया से पर्दा ले लिया।

भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की दशमी के दिन बाबा रामदेव जी ने जीवित समाधि ले ली थी। आज भी भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया पर बाबा रामदेव जी का जन्म अवतरण मनाया जाता है है और ग्राम रूणीचा में बाबा का मेला शुरू हो जाता हैं। इसी मास की दशमी के दिन बाबा रामदेव जी ने समाधि ले ली थी अतः इसी दिंन मेले का समापन हो जाता है।

संतजन कहते है कि हे मानव, बाबा रामदेव जी का अवतरण इस बात का संदेश देता है कि अपने जीवन काल में समाज को जोड़ने का काम करना चाहिए। घृणा नफ़रत बंटवारा जलन ईर्ष्या को त्याग देना चाहिए। अंहकार और प्रतिशोध की भावना को सदा सदा के लिए छोड़ देनी चाहिए।

इसलिए हे मानव, तू केवल मानवीय मूल्यों का सम्मान कर ओर मानव धर्म की ही रक्षा कर और हा भले ही तू अपने हितों को साध पर दूसरों के हितों को कुचलने का काम मत कर।

सौजन्य : ज्योतिषाचार्य भंवरलाल, जोगणियाधाम पुष्कर