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संस्कृति की धरोहर होती है 'सेवा' - Sabguru News
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संस्कृति की धरोहर होती है ‘सेवा’

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संस्कृति की धरोहर होती है ‘सेवा’

सबगुरु न्यूज। सभ्यता और संस्कृति का निर्माण मानव करता है, इसी कारण वह एक वातावरण का निर्माण कर अभौतिक संस्कृति के रूप में रहन सहन, खान पान, व्यवहार करने का तरीका श्रद्धा और विश्वास, मानवीय मूल्यों का महत्व, आपसी प्रेम, भाईचारा, आचार विचार, आचरण आदि के बारे एक सोच तैयार कर परिवार और समाज को जन्म लेने के साथ ही सिखाने लग जाता है।

यही सभी बातें एक मानव को दूसरे मानव से जोड़ती हैं और मानव ज्ञान कर्म और भक्ति से जुड़ जाता है तथा समाज को सेवा देना शुरू कर देता है। भौतिक संस्कृति के रूप में मानव उन सभी कार्यों को करने लग जाता है जिनका भौतिक अस्तित्व होता है। वह सभी सुख सुविधाओं का विकास कर प्रगतिशील बनता है। इस भौतिक संस्कृति में रहने को मकान, पहनने के वस्त्र तथा खाने के लिए वनस्पति और खाद्यान्न, शिक्षा के लिए शिक्षण संस्थान, व्यापार के लिए व्यापारिक स्थल तथा उधोग धंधों के लिए कारखाने फैक्टरियां तथा आवागमन के लिए सड़क रेल और वायु यातायात के साधन और उनके मार्ग आदि तैयार करता है। अभौतिक संस्कृति में मूल्यों और व्यवहारों को सीखता हुआ मानव भोतिक संस्कृति को हर दिन विकास की ओर बढता रहता है।

अभौतिक व भौतिक संस्कृति के निर्माण में लिए सेवा भाव का होना ही जरूरी होता है चाहे यह सेवा सशुल्क हो या फिर निशुल्क। बिना सेवा भाव के दोनों ही संस्कृतियां अपने मूल्यों को कभी भी स्थापित नहीं कर सकतीं। आदि काल से दोनों ही संस्कृतिया सेवा भाव से ही आगे बढ़ती गई और आज विकासशील ओर विकसित होने की परिभाषा को प्राप्त कर चुकी हैं।

जहां पर गरीबी अधिक और शिक्षा कम रहती है तो वहां पर हर क्षेत्र में एक श्रेष्ठ जागरूकता का अभाव पाया जाता है। चाहे सामाजिक, धार्मिक, राजनैतिक, आर्थिक व वैज्ञानिक तथा कानूनी क्षेत्र में ही क्यो ना हो। हालांकि सरकार मीडिया गैर सरकारी संस्थान तथा जन कलयाण से जुडे संगठन तथा संस्थान दिन रात मानव को हर क्षेत्र में लगातार जागरूक करते रहते हैं।

फिर भी बढ़ती हुई भारी जनसंख्या तथा अभौतिक संस्कृति के मूल्य और अंधविश्वास जमीनी हकीकत जानने के बाद भी व्यक्ति को हर क्षेत्र में जागरूक नहीं बनने देते। सामाजिक और आर्थिक विषमताएं भी इसको प्रभावित करती है और जनसंख्या एक बडा तबका जागरूक बनने के बाद भी जागरूक नहीं हो पाता।

भले ही सोशल मीडिया गांव ढाणी और मगरे तक पहुंच गया लेकिन व्यक्ति की सोच को सही दिशा की ओर बदल नहीं पा रहा। सोशल मीडिया के जरिए प्रभावशाली व्यक्ति एक बड़े तबके को अपनी और ले जाता है चाहे यह प्रभावशाली व्यक्ति सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक या फिर किसी भी क्षेत्र से क्यो ना जुडा हुआ हो। सोशल मीडिया के जरिए बदली इस तरह की सोच व्यक्ति को केवल एक तरफा बना देती है।

सोशल मीडिया जागरूकता बढाने का एक श्रेष्ठ जरिया है जिसके माध्यम से हर क्षेत्र की हमें घर बैठे जानकारी मिलती है फिर भी इसकी प्रसिद्धि कुछ क्षेत्रों तक ही सिमटी हुई है कारण यह केवल अपनी रुचि तक ही आकर रह जाता है।

जागरूकता एक मां की तरह होती है जो अपने बच्चे को उसके जन्म से लेकर अपनी मृत्यु तक कुछ ना कुछ सीखाती रहती है और अपने बच्चे के कार्य का हर स्तर पर मूल्यांकन कर उसे हर बार सत्य के दर्शन करवाती हैं। भले ही बच्चा अपनी रूचि और मन के अनुसार कुछ भी करता रहे। मां को यह सेवा का संकल्प उसे कोई देता नहीं है फ़िर भी जागरूक होती है और अपनी निस्वार्थ सेवा अपने बच्चे को देकर संस्कृति में एक महान योगदान देती है और जहां मां न हो तो वह भी मां की भूमिका के निर्वाह को देख देखकर शनेः शनैः जागरूक हो जाता है और जरूरत वाले व्यक्तियों को जागरूक बनाने के लिए हर तरह से तत्पर रहता है।

संतजन कहते हैं कि हे मानव सेवा चाहे ज्ञान से करे या कर्म से अथवा भक्ति से करे यह सब अपनी अपनी तरह से ही जागरूक करती हैं और मनोवृत्ति के अनुसार मानव इन सेवा का लाभ लेता है। यह तीनों ही मार्ग जागरूकता को बढाने वाले होते हैं बशर्ते कि यह सब निष्पक्ष हो।
इसलिए हे मानव, तू प्राकृतिक न्याय सिद्धांत के अनुसार ही अपनी सेवा कर्म को अंजाम दे, भले ही यह सेवा राज़ दरबार में की गई हो या फिर गरीबों की झोपड़ी में।

सौजन्य : ज्योतिषाचार्य भंवरलाल, जोगणियाधाम पुष्कर