सबगुरु न्यूज। ढोल मजीरे बज रहे थे। बहुत सारी महिलाएं एकत्रित होकर जा रही थीं तथा गा रही थी —
आज सोने को सूरज
उगियो म्हारी सखियां…
मैं समझ नहीं पा रहा था कि सोने का सूरज क्या होता है, जबकि आज तो अमावस्या का सूरज उदय हुआ है और कभी परवान पर चढा वो चांद जो पूर्णिमा का था धीरे धीरे अपनी चांदनी को खोकर अपने अस्तितव को खत्म कर चुका है, अस्त हो चुका है। सितारों की दुनियां भी सूरज पर बीती रात आरोप लगा रही थी कि इस सूरज ने चांद को गायब कर दिया है सवा सौ गुणा मजबूत होकर मुस्कराता हुआ अपनी रोशनी फैला रहा है।
महिलाओं के गीत को सुनते सुनते मुझे समझ में आ गया कि ये सब आज खुशियां मना रही है और किसी उत्सव में भाग लेने जा रही है। यह भी समझ आ गया कि ये आज अमावस्या के सूरज को सोने का सूरज क्यों बता रही है। सही मायने में जब नई खुशियों की आशा जागने की शुरूआत होती है तो उस दिन सूरज का उदयी स्वरूप सोने की धातु जैसा खरा लगता है।
वास्तव में आकाश की स्थिति भी यही होती है अमावस्या के दिन और रात को। सूरज के आगोश में अस्त होता हुआ चन्द्रमा अपनी सभी तीस कलाओं को खोकर अस्तित्व हीन हो जाता है तथा सूरज फिर नए चन्द्रमा का उदय करता है। फिर से नए ऋतु मास की व्यवस्था करने के लिए। अमावस्या का सूरज इसलिये सोने का कहलाने लग जाता है।
आंधी, तूफान और बाढ के बाद जब सब कुछ नष्ट हो जाता है तब पुनः नवनिर्माण एक आशा जगाते कि अब सर्वत्र हरियाली खुशहाली छा जाएगी ओर भूमि भी नई फसल के साथ लहलहाने लग जाएगी ओर सभी सुखी और समृद्ध हो जाएंगे।
संतजन कहते हैं कि मानव हर नई खुशी का क्षण जो बर्वादी के बाद आता है वह खरे सोने की तरह ही होता है जो खूब तप तप कर अपना रूप निखारता है। यही क्षण नए सूरज को सोने का सूरज मान कर उत्सव मनाता है। इसलिए हे मानव, नई खुशी को तू उत्सव की तरह मना और नए धान की पनोति देख तथा बीते कल की अहंकारी गर्मी को भूल जा।
सौजन्य : ज्योतिषाचार्य भंवरलाल, जोगणियाधाम पुष्कर