सबगुरु न्यूज। नाग पाश वह शस्त्र होता है जिससे शत्रु को नाग से लपेट दिया जाता है और शत्रु के शरीर से लिपटा हुआ नाग शनै: शनै: अपने बल को बढाकर शत्रु के प्राण घोंटने लगता है, आखिर में इस नाग की अंतिम कसावट शत्रु को मौत के घाट उतार देती है। बचाने वाले योद्धा खडे खडे चीखते चिल्लाते रहते हैं लेकिन नागपाश में बंधे उस योद्धा को बचा नहीं पाते हैं। शत्रु पर नाग पाश का प्रहार करने वाला योद्धा इसे अपनी अंतिम जीत मान कर बेफिक्र हो जाता है।
महाशक्ति शाली चुनिंदा कुछ योद्धाओ के पास ही यह शस्त्र होता है। भले ही यह नाग पाश शस्त्र प्रचीन ग्रंथों की कथाओं में बताया गया हो जिसका आज कोई अस्तित्व नहीं है फ़िर भी शत्रु को नाग पाश में बांधने की नीति अपना महत्वपूर्ण स्थान बना गई।
कथाएं बताती है कि जब रावण ने राम और लक्ष्मण को युद्ध में नागपाश से बांधा तो वीर हनुमान जैसे महाबली भी चिंता के सागर में डूब गए ओर नागपाश के प्रभाव से राम और लक्षमण को बचाने के लिए गरूड पक्षियों की संस्कृति का सहारा लिया तथा नागों के बंधन को कटवा डाला। गरूड़ व नागों का बैर ही नागपाश को ध्वस्त कर सकता है और कोई भी संस्कृति नागपाश का अंत नहीं कर पाई। गरूड़ पक्षी नागों का दुश्मन होता है और वे नाग के टुकड़े टुकड़े कर उसके प्राणों का अंत कर देते हैं। अतः नाग पाश के दुखों से गरूड़ ही बचा सकते हैं और कालांतर में यह गरूडो की नीति भी अमर हो गई।
ऋतु शरद की थी और वे आमजन जीवन को अमृत तुल्य ठंडक पहुंचा रही थी साथ ही गर्मी और बरसात की दी हुई यातनाओं से राहत दिला रही थीं। शरद ऋतु को इस तरह देख सर्द ऋतु ने अपना कठोर रूख अपनाना शुरू कर दिया तथा ऐलान कर दिया कि हे शरद तू अपने परवान पर पहुंचती जा रही है और अपनी पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा बना रही है।
हे शरद जरा ओर खुश हो ले क्योंकि तू भूलतीं जा रही है कि केवल तेरा ही अस्तित्व सदा बना रहेगा और तू सोचे जा रही है कि तू ही सबको आनंद देने वाली है और अमृत को बरसाने वाली है। हे शरद तू शनैः शनैः प्रकृति के खेल में फंसती जा रही है और मनमानी करते हुए शक्तिशाली बन आगे बढ़ती जा रही है। बस तेरे विस्तार का समय अब पूरा होने जा रहा है और तू शनैः शनैः मेरे नाग पाश में फंसती जा रही है। मुझे सर्द ऋतु कहते हैं, मैं तूझे और तेरे प्रभाव क्षेत्र को बर्फ की तरह बना दूंगी।
संतजन कहते है कि हे मानव, अब शरद ऋतु के काल का अंत होने जा रहा है और सर्दी की ऋतु अपने भारी नाग पाश से इस काल को जकडने की ओर बढ रही है। नाग पाश की संस्कृति केवल शनैः शनैः मारने का ही काम करती है और रहम इसके पास नहीं होता है। आने वालीं बंसत ऋतु ही अपनी गरूड संस्कृति से इस सर्द के नागपाश को खत्म कर देगी।
इसलिए हे मानव, सर्द ऋतु अब आने की ओर अग्रसर हो रही है। हेमन्त और शिशिर के प्रहार से जनजीवन को नाग पाश की तरह जकड़ने वाली है। इसलिए अब अपना रहन सहन, खानपान ऋतु के अनुसार कर और नाग पाश से बचकर रह, क्योंकि यह अपनी इच्छा के अनुसार सब कुछ करती है और अपना परचम लहराती है।
सौजन्य : ज्योतिषाचार्य भंवरलाल, जोगणियाधाम पुष्कर