सबगुरु न्यूज। उदारता, कोमल स्वभाव, सन्तोष, दोष दृष्टि का अभाव, गुरू – शुश्रूषा, प्राणियों पर दया और चुगली न करना इन्हीं को शांत बुद्धि वाले संतों और ऋषियों ने “दम” कहा है। धर्म, मोक्ष तथा स्वर्ग ये सभी दम के अधीन है। जो इन्द्रियो का दमन करना नहीं जानते, वे व्यर्थ ही शास्त्रों का अध्ययन करते हैं, क्योंकि मन और इन्द्रियो का संयम ही शास्त्रों का मूल है। सम्पूर्ण व्रतों का आधार ही दम है। दम से हीन पुरूषों को वेद भी पवित्र नहीं कर सकते है। जिसने इन्द्रियों का दमन नहीं किया उसके सांख्य, योग, उतम कुल, जन्म व तीर्थ स्नान सभी व्यर्थ हैं।
अपमान करने वाला व्यक्ति स्वयं नष्ट हो जाता है और जो अपना अपमान होने पर भी क्रोध नहीं करता और सम्मान होने पर खुश होकर फूलता नहीं है, जो सुख और दुख में समान दृष्टि रखता है, उस धीर पुरुष को प्रशान्त कहते हैं।
एक दिन प्रकृति अपमान करने वाले को मिट्टी में मिला देती है और जिसका अपमान हुआ है उसकी राजसिंहासन पर ताज पोशी हो जाती है। प्रकृति की यही खूबी उसके न्याय सिद्धांत को प्रकाशित करती है।
सुख, दुख, हानि, लाभ, सफलता ओर असफलता इनका मूल्यांकन कागज के टुकड़े से नहीं वरन भूतकाल में दिल पर पडे थपेडों से बने रेखा चित्र ही बता सकते हैं। इन का सही मायने मे बयान पीड़ित ही कर सकता है, हवा से बजने वाले शंख नहीं।
हालातों से पिटा पीड़ित ना चाहते हुए भी अपने अपमान का बदला किसी की हौसला अफजाई बढ़ाने के लिए सम्मान मे कर देता है, क्योंकि उसे अपने को फिर से बेवजह कुचले जाने का डर होता है। उसे चलित न्याय सिद्धांतों पर नहीं वरन् प्रकृति के न्याय सिद्धांतों पर भरोसा होता है।
एक बार सप्त ऋषिगण ज्ञान व धर्म की महिमा गाते गाते पुष्कर तीर्थ में पहुंचे वहां एक विस्तृत जलाशय को देखा जो कमल के पुष्पों से आच्छादित था। उस सरोवर में वे ऋषिगण उतरे और मृणाल उखाड उखाड कर ढेर कर दिया। सरोवर में स्नान आदि कर वह बाहर निकले, लेकिन वहा मृणाल नहीं देखकर परेशान हो गए और बोले कि जिसने भी मृणालो की चोरी की वह पापी है।
सभी में से शून्य:सख ऋषि बोले जिसने भी मृणालों की चोरी की है वह न्यायपूर्वक वेदों का अध्ययन करें, अतिथियों में प्रीति रखने वाला गृहस्थ हों, सदा सत्य बोलें। ऋषियों ने यह सुनकर तुरंत कहा कि शून्यः सख तुम्हारी बातों से हम समझ गए किे तुमने ही हमारे मृणालों की चोरी की है। तुमने ऐसा क्यों किया। इतने में शून्यःसख बोले आप सभी से ज्ञान का उपदेश लेने के लिए मैने ऐसा किया। आप मुझे इन्द्र समझे में शून्यः सख नहीं हू।
कमल की नाल को मृणाल माना जाता है। देवराज इंद्र ने सप्त ऋषियों से ज्ञान व हितकारी उपदेश प्राप्त कर लिया। पद्म पुराण के सृष्टि खंड में सप्त ऋषियों तथा देवराज इंद्र की यह कथा बताई गई हैं जो तीर्थ स्थल पुष्कर का पौराणिक महत्व बताती है।
सौजन्य : ज्योतिषाचार्य भंवरलाल, जोगणियाधाम पुष्कर