सबगुरु न्यूज। आग का गुणधर्म जलाना होता है। वह यह निर्णय नहीं करतीं कि कौन जल रहा है। सूखा है या गीला है या फिर सही और गलत क्या है। हां, इतना जरूर होता है कि सजीव जब जलता है तो वह चीखता चिल्लाता है और निर्जीव जलता है तो किसी को अहसास नहीं होता है।
कोई गीला यदि आग में जलाने के लिए डाल दिया जाता है तो आग उसे सुखा कर जलाती रहती है और उसके धुएं को बाहर करती जाती है। हवा इस धुएं को उडाकर चारों तरफ फैला देती है और यही वह धुआं कई सवाल छोड़कर चला जाता है।
श्मशान घाट पर मुर्दे को लकड़ी की चिता पर रखा गया और अंतिम संस्कार में आग के हवाले कर दिया गया। थोड़ी देर बाद आग कम जल रहीं थी और धुआं ज्यादा उठ रहा था। श्मशान की खामोशी तोडते हुए एक व्यक्ति बोल पडा कि गीली लकड़ियां जल नहीं पा रही हैं और धुआं बढता जा रहा है।
इतने में दूसरा बोल उठा कि गत रात की बरसात से यह लकड़ियां गीली हो गईं होंगी। यह बात सुनकर तीसरा बोला अरे कोई फर्क नहीं पडता है गीली हो या सूखी। यह सब धीरे धीरे जल जाएंगी नहीं तो घी, कपूर, घास फूस के द्वारा इन्हें जला दिया जाएगा।
इतने में एक और बोला हां आखिर दाग़ तो हो ही जाएगा। किसी ना किसी तरह से कोशिश कर आग की आंच को बढा दिया गया और गीली लकड़ियां जलते हुए धुआं उडाती रही। आखिर दाग़ हो गया ओर सब के चेहरों पर संतोष आया।
संतजन कहते हैं कि हे मानव, आग न्याय का नहीं वरन अपने स्वभाव का ही पालन करती हैं
चाहे उसमें गीला जल रहा हो या फिर सूखा। धुआं उडकर बहुत सवाल छोड़ जाता है। अनबुझी पहेलियों की तरह आग अपने जवाब में पतंगों की लाश का जवाब छोड़ जाती है कि इस पंतगे ने जलती शमां को बुझा डाला तथा खुद को लाश बना डाला।
इसलिए हे मानव, मन की आग पर नियंत्रण रख क्योंकि यह निर्णय नहीं करती बल्कि अपने अस्तित्व को बचाने के लिए कुछ भी जलाकर राख कर सकती है। इसलिए धैर्य और बुद्धि से काम कर तभी किसी निर्णय तक पहुंच सकता है।
सौजन्य : ज्योतिषाचार्य भंवरलाल, जोगणियाधाम पुष्कर