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भाग्य की जमीं पर बोये कर्म के बीज

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भाग्य की जमीं पर बोये कर्म के बीज

सबगुरु न्यूज। भाग्य की भूमि पर कर्म का हर बीज भले ही अंकुरित हो जाएं पर वे भूमि अपने अनुसार ही फल देती है और मानव की इच्छा को दरकिनार कर देती है। कर्म और ज्ञान के अखाडे देखते ही रह जाते हैं तथा भाग्य फलीभूत हो जाता है।

कहा जाता है कि भूमि तीन दिन में बोये हुए बीजों को अंकुरित कर देती है तथा बीज की किस्म का परिचय मिल जाता है। यदि कोई बीज अंकुरित नहीं होता है यह बीजों की ही कमी होती है तथा जमीन का कोई दोष नहीं होता है।

अंकुरित होने वाले व ना होने वाले बीजों का भी अपना भाग्य होता है। अंकुरित होने वाले बीज फसल के रूप में फल को देता है, वहीं जमीन में पडे बीज पानी को ग्रहण कर कर सडते रहते और कई कीटाणुओ को पैदा कर फसल को हानि पंहुचाती।

कर्म के बीज जब भाग्य की भूमि पर बोये जाते हैं तो हर बीज अंकुरित होता है, कोई भी बीज भाग्य की भूमि पर दबकर सडता नहीं है क्योंकि कर्म के चयन उसे उजागर करते हैं भले ही वे बीज फसल रूपी धन को ना दे। कर्म चाहे सकारात्मक हो या नकारात्मक वे सब भाग्य की भूमि पर कब्जा करने के प्रयत्न करते हैं और कर्म के बीजों की फसल अपने अनुसार लेने का प्रयास करते हैं।

कर्म भले ही कैसी भी कितनी भी उछल कूद कर ले पर वह भाग्य की मिट्टी के गुणों को बदल नहीं सकता। इस कारण कर्म की कुछ फसल फल को देती है और कुछ फसल बढने के बाद भी फल दिए बिना ही गिर जाती है। भाग्य की भूमि कर्म के बीजों अंकुरित तो कर देती है पर अपने गुणों की प्रधानता रखते हुए कर्म के बीजों की सकारातमकता व नकारात्मकता को अलग कर देती है।

महाभारत के महायुद्ध में उस समय गहरा सन्नाटा छा गया जब भीष्म पितामह युद्ध के मैदान में मरे नहीं पर उनका शरीर तीरों से बींध दिया गया। वे तीरों की शय्या पर सो गए और इच्छा मृत्यु वरदान के कारण मर नहीं पाए तथा अपने साम्राजय के वीरों की हार देखते रहे। उनके स्थान पर सेनापति बदल गया पर शनै: शनै: वे सब हारते गए। विशाल और मजबूत बना हुआ भारी साम्राजय ढह गया।

भाग्य रूपी महाभारत के युद्ध की भूमि पर भले ही वीर रूपी कर्म के बीज कितने भी अंकुरित हो गए लेकिन जीत की फसल उनके ही खाते में गई, जिस कर्म के बीजों को भाग्य की मिट्टी ने अपने गुणो के अनुसार ही ऊपजाया।

संतजन कहते हैं कि हे मानव, कर्म के बीजों की नकारात्मक किस्म भले ही बढती रहे और फैलती रहे लेकिन वह हरियाली करने तक ही कामयाब होती है उन पर फसल रूपी धन उपज नहीं पाता है।

इसलिए हे मानव तू कर्म के बीजों की किस्म को केवल शान शौकत, ऐश आराम और दिखावटी चमचमाने वाली रोशनी में चकाचोंध करने के लिए ही अपभ्रंश मत कर। उसके मूल गुणों में परिवर्तन को भाग्य की भूमि भले ही ऊपजा देगी लेकिन फल देने लायक नहीं रखेगी।

सौजन्य : ज्योतिषाचार्य भंवरलाल, जोगणियाधाम पुष्कर