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चंग को धमेडो मैं तो रोटी पोती सुनियो रे - Sabguru News
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चंग को धमेडो मैं तो रोटी पोती सुनियो रे

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चंग को धमेडो मैं तो रोटी पोती सुनियो रे

सबगुरु न्यूज। चौहदवी का चांद अपने पूर्ण यौवन पर आसमान की शोभा बढा रहा है और फाल्गुन मास की विशेषता लिए व​ह अपार उत्साह रूपी अमृत धरती पर बरसा रहा है। पृथ्वीवासी अति आनन्दित होकर मन की चेतना भूल रहे हैं। एक असीम आनन्द के कारण उसका तन मन एक हो गया है और उन्हें भान नहीं हो पा रहा है कि वे क्या कर रहे हैं। फाग राग और चंग की आवाज उसंके मन को आनन्दित कर रही है, मानो किसी सांप को बीन बजने का आभास हो रहा है और वह मस्ती मे नाच रहा, दुनिया की कोई फिकर नहीं है। जैसे ही चंग को बजाने वाला चंग पर थाप देता है तो मन शरीर को साथ ले जाकर नाच गान मे रम जाता है।

ग्रामीण संस्कृति में ये चौहदवी का चांद और चंग मन को असीम आनन्द में ले जाता है। व्यक्ति जो भी कर रहा है उसको छोड़ देता है चाहे रोटी भी बट रहा है वो भी छूट जाती है। चांद जानता है कि वह कल पूरा प्रकाशमान होगा और होली की मस्ती को अपनी चांदनी बिखेर सब को और मस्त कर देगा। हर्ष उल्लास के सामने खाना पीना सब भूल जाएगा।

होली तो जल जाएगी लेकिन अपार ऊर्जा पृथ्वी पर फैला जाएगी जो ग्रीष्म ऋतु को आने का संकेत कर जाएगी। हर्ष और उमंगों की होली की राग सबसे प्रेम प्रीति बढ़ा जाएगी। काम, क्रोध, लोभ, मोह, शत्रुता, वैमनस्य, विरोध को जलाकर अपने साथ ले जाएगी।

चंग का धमेडो (हाथ से चंग पर दी थाप) हमारे मन में बसे डर को दूर करेगा जैसे होली जलने के बाद नवजात शिशु को उसकी माता दहलीज पर लेकर बैठ जाती है और होली की गैर खेलने वाले वहां फाल्गुन राग गाकर, डंडे की आवाज करेंगे। ऐसा करने से वह बच्चा आवाज और धमाकों से डरेगा नहीं इसे बच्चे को ढूंढना बोलते हैं। ये भी एक संस्कार जैसा है। बडों को यह थाप सदमे से मुक्ति दिलाएगी।

संत जन कहते हैं कि हे मानव, वास्तव में शरीर रूपी चंग पर जब प्रकृति रूपी मौसम की थाप पडती है तो शरीर की ऊर्जा संचालन की गति प्रभावित हो जाती है। मौसम की थाप में विचलन होने पर शरीर स्वस्थ या बीमार हो जाता है। अतः शरीर रूपी चंग को कसा हुआ रखें, किसी भी विज्ञान के माध्यम से। अपना चंग जितना भी कसा हो उसी अनुरूप थाप पडे यही ध्यान रखना आवश्यक है।

इसलिए हे मानव, तू बदनामी के कीचड, कंलक वाला काला रंग, नफरत के अण्डे, यातना देने वाले पक्के रंग, छेड़खानी जैसे पानी के गुब्बारे, कांटों जैसे बोल इन सब को होली में दहन कर दे और विश्वास के रंग, प्यार की खुश्बू, खुशहाली जैसे समृद्ध विचार, खुशी जैसी गुलाल प्रशान्त महासागर जैसे फैला दे ,उसे बर्बादी के भंवर में न फंसने दे।

सौजन्य : ज्योतिषाचार्य भंवरलाल, जोगणियाधाम पुष्कर