सबगुरु न्यूज। वर्षा ऋतु में छक कर नहाई हुई धरती पूर्ण उपजाऊ बन कर फूलों, फलो, खाद्यान्नों और हर तरह के वनस्पति उत्पादन से ढंक जाती हैं। शरद ऋतु इन सब उत्पादों में ठंडे चन्द्रमा की चांदनी के साथ ओस को बिखेरती हुई उनके गुण अनुसार उन्हें परिपूर्ण कर अंतिम अंजाम तक पहुंचा देती हैं।
दिन को सूर्य की मध्यम ऊर्जा उन्हें पकाती रहती है वहीं रात में चन्द्रमा की चांदनी उन के गुणों के रस को अपनी ओस की बूंदों से तृप्त करती है। शरद पूर्णिमा को इन उपजाए और स्वत: ही उपज गए उत्पादनों की स्थिति मजबूत सी हो जाती है। शरद पूर्णिमा के बाद उत्पादनों को वर्षा की आवश्यकता नहीं होती है, यदि बरसात ज्यादा हो जाती है या ओले गिरते हैं तो इससे फसल को नुकसान होने का खतरा रहता है।
शरद ऋतु की पूर्णता और सर्द ऋतु आने से पूर्व पृथ्वी को फूलों, फलों, खाद्यान्नों से श्रृंगारित देख चन्द्रमा भी मानो धरती पर प्रसन्न हो जाता है और अपनी ठंडी चांदनी से बनी ओस की बूंदो से धरती को शनै: शनै: तृप्त करता रहता है। ऐसा लगता है कि चन्द्रमा हाथ में जल का करवा लेकर धरती की थोड़ी सी प्यास को जल पिला रहा है। धरती भी फ़सल उत्पादनों के बीच में से चांद को निहारती रहती है और प्रकृति के देव को कहती है कि हे देव, दया करना मेरे फसल उत्पादन को पूर्ण आयु तक सलामत रखना, कहीं वर्षा, ओले और पाले से मेरा उत्पादन नष्ट ना हो जाए।
शरद ऋतु का चन्द्रमा अपनी पूर्णिमा और पूर्णता के बाद क्षय करता हुआ अपनी कला का लगभग चौथाई हिस्सा ही रह जाता है और इस ठंडी चौथाई कला को अमर रखने के लिए धरती पर शरद ऋतु आ ज़ाती है। चन्द्रमा की क्षय अमावस्या रात्रि भी एकदम सर्दी का श्रृंगार कर ठंडे चांद को और भी ठंड की ओर ले जाकर नया ठंडा सर्दी का चांद बनाकर उस ठंडे चांद का जीवन बढा देती है। चन्द्रमा की चांदनी से शरद ऋतु में धरती पर गिरती ओस की बूंदे आभास कराती हैं जैसे वे करवा चौथ मनाकर प्रकृति के पुरूष को अमर बना रही है ताकि प्रकृति की रचना व कार्य योजना में कोई व्यवधान ना हो।
धार्मिक मान्यताओं में चन्द्रमा जब श्रापित होकर खत्म होने वाले थे तब चन्द्रमा की पत्नी ने महादेव की पूजा उपासना की तथा महामृत्युंजय ने उस चन्द्रमा को पुर्न: जीवन प्रदान किया। चन्द्रमा की इस अमरता के लिए फिर चन्द्रमा का पूजन किया गया। कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष का चौथ का चन्द्रमा जब क्षीण होने लगता है तब मान्यता बन गई कि चन्द्रमा की इस दिन पूजा उपासना यदि स्त्रियां करती है तो चन्द्रमा की तरह उनके पति की भी दीर्घ आयु हो सकते हैं।
संतजन कहते हैं कि हे मानव मान्यताएं जो भी हो लेकिन प्रकृति रूपी स्त्री और सूर्य रूपी पुरुष में सदा प्रेम, सहयोग, विश्वास होना जरूरी होता है तब ही घर परिवार सुखी और समृद्ध बनाता है। आयु भले ही जो भी परमात्मा दे तब भी वह दीर्घायु की तरह होती है। इसके लिए जरूरी है मन रूपी चन्द्रमा का संतुलित रहना। अन्यथा घर मे थुक्का फजिती अविश्वास लडाई झगड़े दीर्घायु को भी विषैला बना देते हैं।
इसलिए हे मानव, तू प्रकृति रूपी स्त्री या पुरुष रूपी सूर्य जो भी है इस धरती और सूर्य में प्रेम बढाने व बनाए रखने के लिए तू मन रूपी चन्द्रमा को संतुलित रख और बिना पूजा उपासना के भी जीवन में करवा चौथ जैसे मधुरं व शीतल रस घुल जाएंगे अन्यथा यह समय हर साल यू ही गुजरता चला जाएगा।
सौजन्य : ज्योतिषाचार्य भंवरलाल, जोगणियाधाम पुष्कर