Warning: Constant WP_MEMORY_LIMIT already defined in /www/wwwroot/sabguru/sabguru.com/18-22/wp-config.php on line 46
लक्ष्मीजी का प्रकट काल सर्द 'फसल धन' के रूप में - Sabguru News
होम Religion लक्ष्मीजी का प्रकट काल सर्द ‘फसल धन’ के रूप में

लक्ष्मीजी का प्रकट काल सर्द ‘फसल धन’ के रूप में

0
लक्ष्मीजी का प्रकट काल सर्द ‘फसल धन’ के रूप में

सबगुरु न्यूज। किसान अपने ज्ञान कर्म ओर भक्ति की सोच से धरती को देखता है और उससे आशा रखता है कि हे धरती मेरे मन की मुट्ठी में बंद ये तीनों इच्छाओं को तू फलीभूत कर सकती है। हे धरती, तू मेरी इच्छाओं को पूरा करने का संकल्प ले ताकि मेरा इस जगत में उत्पन्न होना सफल हो जाएं।

इन तीनों सोच के सहारे किसान धरती में कुछ बीज खाद्यान फूल फल तरकारी और ओषधियों के डालता है और धरती इन तीन पग सोच अर्थात ज्ञान, कर्म, और भक्ति को दान देने के लिए सब बोये हुए बीजों को अंकुरित करती है और किसान अपने पूर्ण ज्ञान से खेती की हर तकनीक को लागू कर कडा श्रम रूपी कर्म को करता है।

जब तक फसलें पक नहीं जातीं तब तक उनकी हर तरह से देखभाल कर कठोर भक्ति जैसा कार्य करता है। जब धरती फसलों, फूल, फल, सब्जी व हर तरह की औषधियों के असंख्य उत्पादन को उत्पन्न कर अपना सब कुछ किसान को राजा बलि की तरह दे देती हैं और किसान वामन अवतार की तरह सब कुछ उत्पादन का स्वामी बन जाता है। धरती ख़ाली हाथ रह जाती हैं और गुप्त धन के रूप में लक्ष्मी फसल धन के रूप में प्रकट हो जाती है।

लक्ष्मी के रूप में प्रकटे इस फसल धन उत्पादन को देखकर किसान, उद्योगपति, व्यापारी और आमजन सभी खुश हो जाते हैं। कारण तमाम अर्थव्यवस्था में कृषि की पहली प्राथमिकता होती है और उस आधार पर ही बाजार और धन की व्यवस्था टिकी हुई होती है। जनसंख्या का आधे से ज्यादा भाग कृषि और कृषि उत्पादन के धंधों से ही जुडा होता है।

किसानों का यह घरेलू उत्पाद ही देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाता है और अर्द्ध विकसित व विकासशील व्यवस्था के लिए यह अमृत की तरह होता है। किसान के यही तीनों सोच ज्ञान से देश में उन्नत शिक्षा, कर्म से विकास और भक्ति से जन कल्याण के कार्यो को किया जा सकता है। फसल रूपी धन से सभी आवश्यकता की पूर्ति हो जाती है। इस कारण सर्दी की ऋतु में प्रकट हुए जमीन से फसल धन रूपी लक्ष्मी सभी के लिए पूजनीय बन जाती हैं और खुशियों के दीप दान होते हैं।

23 अक्टूबर से सायन मत में सूर्य वृश्चिक राशि में प्रवेश कर राष्ट्रीय कार्तिक मास का आगाज़ करेंगे और सूर्य दक्षिण गोलार्द्ध में रह कर शरद ऋतु को सर्दी की चूनर ओढाकर हेमन्त ऋतु प्रारम्भ करेंगे इसके साथ ही 23 नवंबर के बाद प्रचंड सर्दी की ऋतु भारी पडने लगेगी। शरद का समापन करता हुआ सूर्य तुला राशि में भ्रमण करता हुआ जब अमावस्या के दिन तुला के चन्द्रमा से संयोग करता है तो धार्मिक मान्यताओं में यही काल दीपावली कहलाता है और इस दिन धन की देवी महालक्ष्मी जी की पूजा उपासना व दीपदान कर दिवाली मनाते हैं।

पौराणिक कथाओं में बताया गया है कि जब तीनों लोको में दैत्य राजा दानवीर बली का राज़ हो जाता है तब देवताओं की माता अदिती की प्रार्थना से भगवान विष्णु वामन अवतार लेते हैं और बली के द्वार पहुंच जाते हैं तथा उनसे तीन पग भूमि दान में मागते हैं। राजा बली दान लेने का संकल्प करते हैं तब वामन अवतार अपना विशाल रूप बना उसके तीन लोको को तीन पगो से नाप लेते हैं।

राजा बलि को इस एवज में विष्णु जी वरदान देते हैं कि हे राजन तेरा राज दान में लेने के पांच दिन तक जो दीपदान करेगा उसकी लक्ष्मी सदा विकास करने वाली होगी और यह पांच दिन यम, पंचक, धनतेरस, रूप चौदस, दीपावली, गोवर्धन पूजा व यम द्वितीया कहलाएंगे। बहुत सी मानयताएं इस दीपावली पर्व के साथ जुड़ी हुई है।

संतजन कहते हैं कि हे मानव, मान्यताएं जो भी हो लेकिन अक्टूबर औशरद ऋतु के अंत तक सभी फसलें लगभग कट जातीं हैं और धान्य व बेचे हुए धन्य की नकदी घरों में आ जाती है। यही लक्ष्मी प्रकट और अप्रगट रूप से फसल रूपी लक्ष्मी बनकर घर, परिवार, समाज व देश को आर्थिक दृष्टि से मजबूत बनातीं है।

इसलिए हे मानव, तू लक्ष्मी के इस फसल रूपी प्रकट काल में खुशियों के दीप जला क्योंकि यह लक्ष्मी बाजार, कामधंधों, व्यापार, उद्योग धंधों को गति देकर मानव की हर आवश्यकताओं को पूरा करती है। फसल रूपी इस लक्ष्मी जी के प्रकट ना होने से सभी आर्थिक स्थितियां ठंड की मार खाकर सब को भारी जुकाम से जकड़ देती हैं।

सौजन्य : ज्योतिषाचार्य भंवरलाल, जोगणियाधाम पुष्कर