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कुचलने लगे समाज को नकारात्मक मूल्य - Sabguru News
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कुचलने लगे समाज को नकारात्मक मूल्य

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कुचलने लगे समाज को नकारात्मक मूल्य

सबगुरु न्यूज। सदियों से विश्व में अपनी संस्कृति की अमूल्य एवं सकारात्मक छाप छोड़ने तथा नारी को सदा देवी का दर्जा देकर पूजने वाली हमारी संस्कृति, जिसकी महिमा ना केवल धर्म ग्रंथ गाते हैं वरन दुनिया के हर देश गाते हैं। आज उस नारी के गौरव को नकारात्मक मूल्य निगलते जा रहे हैं और हर सवेरा रोती सिसकती नारियों का ही मिलता है।

जन्म के कुछ महीनों बाद की कन्या से लेकर विवाहित महिलाओं को दिनों दिन यह भारी नकारात्मक मूल्य निगलते जा रहें हैं और समाज को ग्रहण लगा कर उनके यश मान प्रतिष्ठा और सम्मान को मिट्टी में मिला रहे हैं।

जिस धरती पर लाखों संत, महात्मा और आध्यात्मिक चिंतक, उपदेशक और हजारों लाखों सेवा संस्थान व संगठन व देश की रखवाली करने वाले लोग जो सदा संस्कृति की गौरव गाथा गाते हैं और महिला सशक्तीकरण का गुणगान करते हैं।

सवाल यह है कि हजारों लाखों चिंतक, विश्लेषक व समाज की दशा बदलने के लिए काम करने वाले तथा जो सदा ही आदर्शवाद के गीत गाते हैं क्या नकारात्मक मूल्य इन सबसे भी आगे निकल गए हैं, जो हर रोज नारी का चीर हरण कर रहे हैं तथा बिना किसी राजभवन के जुए के खेल में जीते हुए उन कौरवों की तरह अत्याचार कर रहे हैं।

समाज पर होने वाले यह प्रहार आखिर कब तक चलेंगे, कब सामाजिक चिंतन इस खेल की दिशा और दशा को बदलेंगे। कब सक्षम लोग इस घिनौने नकारात्मक मूल्यों को कुचलने का साहस करेंगे तथा बिना सामाजिक भेदभाव के इस गंदे प्रदूषण से मुक्त करने में अपनी महती भूमिका का निर्वाह करेंगे।

संतजन कहते हैं कि हे मानव, प्रकृति की सियासत और समय के पांसे तो समझ में नहीं आते लेकिन मूल्यों की सियासत को ही अपना सकारात्मक रूख अपनाना पडेगा तब समाज को कुचलने वाले नकारात्मक सोच के दानव को कुचला जा सकता है। सकारात्मक मूल्यों की सियासत में जाति, वर्ग, समुदाय, धर्म, भाषा, लिंग, अमीर, गरीब इन सबका कोई स्थान नहीं होता है तब वह इस तरह के घिनौने नकारात्मक मूल्यों को खूब अच्छी तरह से कुचल सकती है।

इसलिए हे मानव, साहस और धैर्य को धारण कर तथा अपने ऊपर होने वाले अत्याचारों को दबा मत, खुलकर विरोध कर, निश्चित रूप से हर व्यवस्था तुझे न्याय ही दिलाएगी और सबको सुरक्षित रखने के लिए हर यत्न करके अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेगी।

सौजन्य : ज्योतिषाचार्य भंवरलाल, जोगणियाधाम पुष्कर