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प्रकृति का संदेश, ऋतुओं के नाम - Sabguru News
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प्रकृति का संदेश, ऋतुओं के नाम

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प्रकृति का संदेश, ऋतुओं के नाम

सबगुरु न्यूज। प्रकृति अपना संदेश ऋतुओं को देकर कहने लगी कि हे ऋतुओं जरा संभल कर अपने गुण धर्म को लागू करना अन्यथा सृष्टि का संतुलन बन नहीं पाएगा। अपने आधार को मजबूत रखना ताकि बदलते हुए आकाशीय ग्रह नक्षत्रों व पिंड तुम्हारे गुण धर्म को प्रभावित ना कर सकें।

हवाओं तुम्हें भी ऋतुओं के अनुसार ही बहना होगा। ऐसा नहीं होगा तो तुम भी तुम्हारा आधार खो बैठोगी और तुम्हारी शीतलता शीत लहर में बदलकर सर्दी के परचम को बढा देगी। ऐ हवाओं तुम सदा सुखी और समृद्ध बनाने वाली नहीं हो सकतीं क्योंकि तुमने ही गर्मी में मेरी सृष्टि को झुलसाया है। इस लिए हे हवाओं तुम सर्दी के साथ सियासत ना करना क्योंकि सृष्टि में सियासत तो मेरी ही होती है।

वे बड़े इत्मीनान से खडे थे कि हमारी जडें गहरी हैं क्योंकि वे बडे और घने पत्तेदार वृक्ष हैं। हम आने जाने वाले लाखों लोगों का रेन बसेरा हैं। हम छाया और फल देकर कल्याण का काम करते हैं साथ ही हर तूफान से टकराकर भी हम अपनी शान से खडे हैं। धर्म भी हमें वृक्ष विशाल मान हमारी अगुवाई करते हैं। यह सोचते सोचते वृक्ष जहरीली मुस्कराहट से अपनी महिमा बताने लगा तथा अपनी आप बीती धरती और आकाश को सुनाने लगा।

अचानक हवा का झोंका तेज़ गति से आया और पूरे वृक्ष को हिला गया। वृक्ष की जड़ों को ढीला कर गया। ये तो ठीक था कि वो हवा का मामूली झोंका था, उसका पहला खुला वार था। इसलिए वह वृक्ष गिरते-गिरते बच गया और बाद में अपनी साख बचाते हुए कह गया कि नादान चूहों ने मेरी जडों की मिट्टी को भूमि के अन्दर से खोखला कर दिय़ा।

इतने में एक चूहा पेड़ पर चढ़ गया और बोला कि हे वृक्ष भैया जरा संभल कर रहना आगे तूफान बुलंद आने वाला है, तू अब तेरी जमीन से उखडने वाला है। अभी तो तू हम पर इलज़ाम लगा रहा है बाद में तू हवन की लकड़ियां बनने वाला है और यहां पर चमन बसने वाला है। अभी तो बागवानों ने तेरे तने में अपनी ग्राफ्टिंग की है बाद में तेरा फल भी बदलने वाला है।

परवाना बैखोफ था लेकिन विशाल रोशन शमां डर रही थी कि ये नादान परवाना कहीं मुझे बुझा न दे। शमां डर से कांपने लगीं और कांपते हुए हिलने लगीं और परवाना भी चूक गया। तब शमां कहती है कि मैंने कई परवानों को मिटा दिया है। इतनें में दूसरे परवाने एकदम शमां से लिपट गए ओर शमां बुझ गई। शमां और परवाने के खेल को देख हवाएं भी मुस्कुराने लगीं और कहने लगी हे परवाने जरा ठहर अभी आगे तूफान बुलंद होगा।

जीवन की जमीनी हकीकत यही होती है, व्यक्ति जब बैखोफ होकर भारी चुनौतियों का सामना करता है तो निश्चित रूप से अपनी भावी सफलता की राह को आसान बना लेता है भले ही वर्तमान उसका कितना भी कमजोर क्यो न हो। कमजोर वर्तमान ही उसकी आशा की किरण होती हैं जो भारी पेड़ों को हिला देता है और भविष्य में वह बुलंद तूफान बन उस वृक्ष को जमीन पर गिरा देता है। वृक्ष कितना भी भारी क्यों न हो लेकिन जब उसके नीचे से जमीन खुदने लग जाती है तो उसके आधार को कमजोर बना देती हैं ओर उसे जमीन पर गिरा देते हैं।

संत जन कहते हैं कि हे मानव, काल बल और स्थान बल, बलवान को भी धराशायी कर देता है और उसका आधार कमजोर कर उसे जमी पर गिरा देता है। काल बल कमजोर को भी मजबूत बना डालता है और शक्तिमान के आधार को कमज़ोर बना उसे निर्बल बना धराशायी कर देता है।
इसलिए हे मानव, अपने आधार को सदा ही मजबूत बनाए रख तथा मैं सदा ही बलवान रहूंगा या हूं इस मिथ्या में नहीं रहना चाहिए।

सौजन्य : ज्योतिषाचार्य भंवरलाल, जोगणियाधाम पुष्कर