सबगुरु न्यूज। चैत्र शुक्ल पूर्णिमा मंगलवार के दिन वानर राज केसरी की पत्नी अंजना के गर्भ से वायुदेव के माध्यम से भगवान शंकर ने एकादश रूद्र अवतार लिया। वह रूद्रा अवतार ही जगत में महाबली हनुमान जी के रूप में प्रकट हुआ। कल्प भेद से कहीं पर हनुमान जी का प्राकटय काल कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी शनिवार को मनाते हैं।
राजस्थान व कई राज्यों में चैत्र मास की शुक्ल पूर्णिमा को ही हनुमान जी का जन्मदिन मान कर उत्सव मनाया जाता है। धार्मिक ग्रंथों में हनुमान जी की उत्पत्ति की कई कथाएं बताई गईं फिर भी सार यही है कि हनुमान जी की उत्पत्ति शंकर भोले नाथ के अंश से हुई है और हनुमान जी को एकादश रूद्र अवतार माना गया है।
एक बार भगवान शंकर भगवती सती के साथ कैलाश पर्वत पर विराजमान थे। भगवान शंकर ने सती से कहां प्रिय! जिनके नामों को रटकर में गदगद होता रहता हूं वही मेरे प्रभु अवतार ग्रहण करके संसार में आ रहे हैं। सभी देवता उनके साथ अवतार करके उनकी सेवा सुयोग प्राप्त करना चाहते हैं। तब मैं क्यों उस से वंचित रहूं? मैं भी वही जाऊ और उनकी सेवा कर के अपनी युग- युग की लालसा पूर्ण करू।
भगवान शंकर की यह बात सुनकर सती ने सोच कर कहा- प्रभो! भगवान का अवतार इस बार रावण को मारने के लिए हो रहा है। रावण आपका अनन्य भक्त है। यहां तक कि उसने अपने सिर को काट कर आपको समर्पित किया है। ऐसी स्थिति में आप उसको मारने के काम में कैसे सहयोग दे सकते हैं।
यह सुनकर भगवान शंकर हंसने लगे, उन्होंने कहा देवी! जैसे रावण ने मेरी भक्ति की है। वैसे ही उसने मेरे एक अंश की अवहेलना भी तो की है। तुम तो जानती हो मैं ग्यारह स्वरूपों में रहता हूं जब उसने दस सिर अर्पित कर मेरा पूजन किया था, तब उसने मेरे एक अंश को बिना पूजा किए ही छोड़ दिया था। अब मैं उसी अंश से उसके विरुद्ध युद्ध करके अपने प्रभु की सेवा कर सकता हूं।
मैंने वायु देवता द्वारा अंजना के गर्भ से अवतार लेने का निश्चय किया है यह सुनकर भगवति प्रसन्न हो गई पर्वत श्रेष्ठ सुमेरु पर केसरी राज्य शासन करते थे। अंजना उनकी एक प्रियतमा पत्नी थी। वानर पति केसरी और अंञ्जना मनुष्य का वेश धारण कर पर्वत शिखर पर विहार कर रहे थे।
अंजना का मनोहर रूप देखकर पवन देव मोहित हो गए और उन्होंने उसका आलिंगन किया। साधु चरित्रा अंञ्जना ने आश्चर्यचकित होकर कहा कौन दुरात्मा! मेरा पतिव्रत्य धर्म नष्ट करने को तैयार हुआ है। मैं अभी शाप देकर उसे भस्म कर दूंगी।
सती साध्वी अंजनी की यह बात सुनकर पवन देव ने कहा-सुश्रोणि! मैंने तुम्हारे पातिव्रत्य नष्ट नहीं किया यदि तुम्हें कुछ भी संदेह हो तो उसे दूर कर दो। मैंने मानसिक संसर्ग किया है। इससे तुम्हे एक पुत्र होगा जो शक्ति व पराक्रम में मेरे सामान होगा, भगवान का सेवक होगा और बल बुद्धि में अनुपमेय होगा। मैं उसकी रक्षा करूंगा।
इस प्रकार भगवान शंकर के अंश से वायु देव का माध्यम लेकर अंजना के गर्भ में पुत्र उत्पन्न किया जो भविष्य में शंकरसुवन, पवन पुत्र, केसरी नंदन, अंजनेय आदि कहलाये। वे ही श्री हनुमान अपनी अद्वितीय सेवाचर्या से भगवान श्री राम के अभिन्न अंग बन गए।
ऐसी मान्यता है कि हनुमान जी के चमेली का तेल सिन्दूर ओर चांदी का वर्क लगा कर चोला चढावे तथा पान बीडा व मोतीचूर के लड्डू, लाल फल, लाल फूल, लाल झंडा व नारियल अर्पण करे तथा सरसों के तेल का दीपक जलाए गूगल का धूप अर्पण करे तो सदा हनुमान जी की कृपा बनीं रहतीं है और विपदाओं से छुटकारा मिलता है।
प्रात सूर्योदय के पूर्व सवा पाव आटे की बिना नमक की रोटी बनावे तथा शुद्ध घी से चोपडे व गुड की डली रखे। इसे कोरे लाल वस्त्र मे बांध कर हनुमान जी के अर्पण करे तो कई प्रकार के संकट दूर होते हैं और घर पर लक्ष्मी जी की कृपा बनी रहतीं हैं। यह सभी आस्था व श्रद्धा के विषय है और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से अंध विश्वास।
सौजन्य : भंवरलाल