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जल बावड़ी का बालाजी
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जल बावड़ी का बालाजी

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जल बावड़ी का बालाजी

सबगुरु न्यूज। उस अहंकार को वक्त बीत जाने के बाद पछतावा हुआ लेकिन उस समय वह अपनी आखिरी सांसे ले रहा था और बार बार सोच रहा था कि काश मैं इस दुनिया के हित के लिए एक भी कल्याणकारी कार्य कर जाता तो यह मानव सभ्यता सदा सुखी हो जातीं। इसलिए उसका अंतिम उपदेश था कि कभी भी आज का काम कल पर मत टालो।

वह रावण था और उसकी योजना थी कि मैं समुद्र के पानी को मीठा बनाकर पीने लायक कर दूंगा। लेकिन वह हर बार अपने अहंकार का वर्चस्व स्थापित करने में ही रह गया और सभ्यता तथा संस्कृति को विनाश की ओर ले जाता रहा। इसी आपाधापी में हर बार अपने मूल उद्देश्य से भटक गया। समुद्र के पानी को मीठा नहीं बना पाया और अंत में जाते जाते उसके मन में यह कसक रहेगी।

जब उसने समुद्र के ऊपर आकाश में हवा से भी तेज गति से उडकर आते उस वानर को देखा तो वह घबरा गया कि वानर होते हुए भी इसने जल और वायु पर नियंत्रण कर रखा है तब उसे समुद्र के जल को मीठा करने का अपना उद्देश्य याद आया लेकिन तब तक वो अहंकार के जाल में मछली की तरह फंस गया था और इस दुनिया से उसका कार्य काल समाप्त हो गया।

ऋगवेद का ऋषि अग्नि का आह्वान करता है, महायज्ञ कराकर कहता है कि हे मेघों तुम आकर बरसों नहीं तो जल के बिना जीवन नहीं रह पाएगा। फिर भी बरसों तक अकाल पडते रहे और समुद्र का अथाह जल बेकार ही पडा रहा।

सूरज की भीषण गर्मी से सूखते जल स्रोत बच नहीं पाते हैं और मानव जल को धरती के अंदर से खोजने के लिए कुएं और बाबडी को बनाने की सोचता है। इस पूरे बाहुबल के कार्यो में वह वीर हनुमान जी का वहां ध्यान कर उसे एक आस्था के पत्थर के रूप में बिठाकर फ़िर उसी के प्रतिक बल के जरिये जल के कुएं और बाबडी खोदकर जल संकट से बचने का रास्ता ढूंढता है वही वीर हनुमान जल बाबडी के वीर बालाजी कहलाते।

उत्तर दिशा की ओर बढता सूरज सतह से सभी पानी को पी जाता है और आग जलती रहती है और जल बुझकर राख हो जाता है, अथाह जल से भरे समुद्र मृग मरीचिका बन कर रह जाते हैं। इसलिए यह मास कुएं व बावड़ी और भूमिगत जल स्त्रोतों पर ही आधारित हो जाता है। इस कारण जल दान का महत्व इस जगत में हो जाता है।

वह अहंकारी तो पछता कर चला गया और वीर हनुमान को बीडा चढा उसके बल को प्रतीक मान वीर हनुमान को जल बाबडी का बालाजी बना, कुएं बाबडी खोदकर मानव जल का संग्रहण करने लग गया।

संत जन कहते हैं कि हे मानव तू केवल अपने हित साधने में ही मत लगा रह, तेरी सोच को कुएं बाबडी की तरह गहरी बना ताकि आज और कल समेत सदा उसके लाभ मिले। परसों नहीं क्योंकि परसों के चक्रव्यूह में रावण फंस गया और समुद्र के जल को मीठा करने की उस की योजना धरी रह गई।

सौजन्य : भंवरलाल