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सामाजिक व आर्थिक संकट पर विजय का पर्व दुर्गा अष्टमी

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सामाजिक व आर्थिक संकट पर विजय का पर्व दुर्गा अष्टमी

सबगुरु न्यूज। मानव सामाजिक प्राणी होता है। वह संतान की उत्पत्ति के साथ ही अपने समाज का निर्माण शुरू कर देता है और इस समाज में विस्तार के साथ ही अनेक बाधाएं दानव की तरह विध्न उत्पन्न कर समाज को तोडने पर ऊतारू हो जातीं हैं तथा आर्थिक क्षेत्र को प्रभावित कर देतीं हैं।

सामाजिक व आर्थिक बाधाओं से घिरा मानव इस संघर्ष का अंत करने के लिए कठोर श्रम करता है। दुनिया को देख कर समझ कर अपने मजबूत बनाने के लिए सांसारिक मोहमाया को छोड़ कर अपने को योग्य बनाता है ताकि वह सामाजिक व आर्थिक बाधाओं पर विजय पा सके।

अपनी इस योग्यता के आधार पर अपने ज्ञान को बांटता हुआ प्राणी फिर सबको सृजन करने की ओर बढाता है और सभी आवश्यक वस्तुओ को उत्पन्न करता है, फिर स्वयं त्याग कर अपने कुनबे को पालता है।

इसके बाद वो सामान्य जन को मदद करता हुआ सबको संकटों से बचाता है। मानव मे उपजे संघर्ष को खत्म कर प्रेम भाव बढाता है इसी प्रेम भाव से सामाजिक व आर्थिक बाधाओं पर प्राणी विजय पाकर शक्ति सम्पन्न हो जाता है। बस यही से नवीन चेतना प्राणी को नए विकास के मार्ग पर ले जाती है।

सामाजिक व आर्थिक बाधाओं पर प्राणी की यह दुर्गम विजय दुर्गा अष्टमी पर्व बन कर समाज़ मे स्थापित हो जाता है। सामाजिक व आर्थिक क्रियाओं सम्बन्ध मूलतः प्रकृति पर आधारित होता है और चैत्र के मास में सूर्य अपनी धुरी पर भ्रमण करता हुआ मीन राशि से मेष की ओर बढता है ओर सूर्य की यात्रा की एक परिक्रमा पूर्ण हो जाती है और बसंत ऋतु नवीनता का उदय कर शक्ति का संचय कर प्राणी को आगे बढाता है।

सूर्य परिक्रमा करते हुए जब कन्या राशि से तुला राशि की ओर बढता है तो आश्विन मास मे सूर्य की आधी परिक्रमा समाप्त हो कर तुला राशि में प्रवेश के साथ शरद ऋतु का आगाज़ करते हुए पुनः प्राणी को शक्ति सम्पन्न बनाने के संदेश दे कर ऋतु परिवर्तन के आधार पर सामाजिक व आर्थिक बाधाओं से निपटने के लिए तैयार करता है ताकि प्राणी इस दुर्गम बाधा पर विजय प्राप्त कर ले।

बंसत व शरद ऋतु के नये चांद की आठवीं कला अर्थात अष्टमी अपने योवन के बल पर होती हैं और बसंत व शरद ॠतु की पूर्णिमा इसी बल से आगे बढ़ती है। दोनों पूर्णिमा का चन्द्रमा पूर्ण होकर भी अगली यात्रा मे कमजोर हो कर क्षय की तरफ बढ़ जाता है।

इसलिए चन्द्रमा की यह आठवीं कला शक्ति सम्पन्न हो जाती है और अंधेरे से संघर्ष कर नए उजाले की ओर बढ जाती हैं। सूर्य का ऋतु परिवर्तन ओर चन्द्रमा का बल प्राणी की सामाजिक व आर्थिक बाधाओं से नए मार्ग पर दुर्गम विजय का पर्व दुर्गा अष्टमी के रूप मे मनाता है।

धार्मिक मान्यताओं में यही पर्व नवरात्रा बन जाता है। मातृ शक्ति की उपासना के लिए रात्रियां प्रधान मानी गई है। ऐसा कहा जाता हैं कि दिन के समय शिव पुरूष रूप मे व रात्रि के समय शक्ति प्रकृति के रूप में होती है। शिव का अस्तित्व उसकी शक्ति पर आधारित है।

ब्रहमा, विष्णु व महेश तीनों ही शक्तियों का संक्षिप्त रूप भगवती दुर्गा है। आश्विन मास की शुक्ल प्रतिपदा से नवमी तक शारदीय नवरात्रा तथा समापन पर विजया दशमी होती है। यह दुर्गा नवरात्रि कही जाती है।

शक्ति के मूल में शांति आराधना है, वह मनुष्य को बुद्धि, धर्म, यश, बल, धन, धान्य, अर्थ व मोक्ष प्रदान करती है। नवरात्रा में शक्ति का संदेश होता है कि वह नौ चरणों में उत्पति व पूर्ण विकास की पराकाष्ठा पर व्यक्ति को ले जाकर छोड़ देती है जहां मानव सुखी और समृद्ध होकर मोक्ष को जीते जी पा लेता। मानवी तृष्णा का अंत इन नौ चरणों में हो जाता है और वह ही जीते जी मोक्ष की स्थिति है।

ऋषि मुनियों ने धार्मिक आस्था व उपासना के माध्यम से नौ दिन तक विशेष संयम में रहकर प्रकृति देवी की उपासना को बताया जो संकेत देती है कि हे मानव आने वाली तेरी कुल आयु के नौ चरणों में तू पूर्णता को पा सकता यदि स्वयं को उम्र के अनुसार संतुलित रखें।

प्रथम शैल पुत्री जो पर्वतों पर रहकर अपने जीवन का प्रारम्भ कठोर श्रम से करती हुई प्रकृति को देख समझकर सब कुछ सीखती हैं और दूसरे चरण में सांसारिक जीवन से दूर रह त्याग तप व कठोर श्रम से योग्यता को धारण कर ब्रहम चारिणी तथा चन्द्र की तरह सभी को ज्ञान बांटने के के लिए यशस्वी बन चन्द्र घंटा फिर फिर प्राणियों के कल्याण के लिए साधनों को उतपन्न कर कूषमाडां तथा पांचवे चरण में मां की तरह त्याग की मूरत बन सभी को हर तरह से पालती है ओर स्कंदमाता कहलाती हैं।

छठे चरण में जन सामान्य को अभय दान व विघ्नों से बचाने वाली देवी की तरह कात्यायनी तथा सातवें चरण में मानव भारी बैर विरोधी को समाप्त कर सभी को सुखी और समृद्ध बना कर काल रात्रि तथा आठवें चरण में सभी की समस्या सामाजिक और आर्थिक का अंत कर नए मार्ग खोलती है।

यही मजबूत स्थिति महागोरी शक्ति के रूप मे प्राणी पा लेता है और अंत से दूसरों को नव सृष्टि में प्रवेश का ज्ञान दे व्यक्ति सभी से मुक्त होकर परम सिद्ध हो जाता है और अपने आशीर्वाद से सभी को सुखी और समृद्ध बना मोक्ष को पा लेता है यही एक अवस्था व्यक्ति की सिद्धी दात्री के रूप में हो जाती हैं।

शक्ति के मूल में यही नौ चरणों की व्यवस्था मानव जीवन का सुखी और समृद्ध बनाती है। नवरात्रा में नौ दिन की कथाओं का यही सार है और मूल मंत्र कन्या पूजन अर्थात घर में कन्या के साथ देवी की तरह व्यवहार सदा करे तथा सभी पुरूष का आधार स्त्री ही है और वह सभी समस्याओं का अंत करने मे सक्षम हैं इसलिए सदा महिलाओं की शक्ति मान आदर पूर्वक रखना चाहिए।

संत जन कहते हैं कि ये मानव प्रकृति यह संदेश देती है कि शक्ति के रूप में यदि कन्या और स्त्रियों का जहां सदा सम्मान रहेगा वहा धर्म, अर्थ, मोक्ष सभी सहज में मिल जाएंगे अन्यथा नौ दिन पूजा, उपासना करना एक बेकार व अनावश्यक श्रम ही रह जाएगा।

सौजन्य : ज्योतिषाचार्य भंवरलाल, जोगणियाधाम पुष्कर