सबगुरु न्यूज। प्रतिमाएं चाहे अदृश्य और काल्पनिक देवों की हो या जीवित या मृत व्यक्तियों की हो, इनमें केवल आस्था और श्रद्धा का ही निवास होता है क्योंकि प्रतिमाएं चमत्कार नहीं करती लेकिन विश्वास चमत्कार बन जाता है। आत्मा, परमात्मा और आध्यात्मिकता ऐसे ठिकाने होते हैं जिसकी नींव आकाश के तारों की तरह होती हैं जो दिन के उजालो में नजर नहीं आती है तथा रात के अंधेरों में छुप नहीं जाती।
समाज को केवल आस्था और श्रद्धा ही नियंत्रित व निर्देशित करती है। हर शास्त्र अपने ज्ञान के पुलिंदे ले कर मौन ही खडा नजर आता है। इस कारण विज्ञान आज भी आस्था और श्रद्धा को परास्त नहीं कर पाया। विश्व की सभ्यता और संस्कृति में इसी आस्था व श्रद्धा को आज भी जीवित देखा जा सकता है।
आस्था और श्रद्धा को देखकर धर्म भी अपना मूल स्वरूप छोडने लगा तथा मानव कल्याण की राह छोड़कर आस्था, श्रद्धा को अति विश्वास व अंधविश्वास की ओर ही धकेलता रहा। वह चमत्कार के साहित्यों में उलझाता रहा जिनका जमीनी स्तर पर कोई वजूद नहीं था।
समाज को नियंत्रित ओर निर्देशित करता हुआ धर्म जब राज़ व्यवस्था में घुसा तो वहां की शान शोकत ने उसके आस्था और श्रद्धा के सैलाब को राज करने की ओर मोड़ दिया। वह राजा का संरक्षक बनने लगा। बस मूल आस्था और श्रद्धा में बंटवारा शुरू हो गया। एक तो राज दरबार में तथा दूसरा धर्म स्थलों में बैठ गया। जो भी हुआ फिर भी आस्था और श्रद्धा की प्रतिमाएं आज तक समाज में पूजी जाती है, भले ही यह चमत्कार करें या नहीं करें।
इस जगत की साक्षात माता जिसने हमारे कुल को जन्म दिया, जिस में सभी दस महाविद्याएं विराजमान हैं उसे जन्म देने वालीं, पालने वालीं और संरक्षण देने वाली ममता और करूणा की जीवित मूरत है उसे माता तक ही सीमित रख दिया जाता है। श्रद्धा और आस्था उस अदृश्य शक्ति की मूरत को पूजता है जिसने इस जगत को उत्पन्न किया है।
संत जन कहते हैं कि हे मानव प्रकृति की ये जगत माता अब शरद ऋतु की ओर बढते हुए अपनी भूमि पर उगे वनस्पति और फलों तथा समस्त उपज को महानवमी की शक्ति बनकर दोनों हाथों से बांट रही है तथा जगत को नव निधि देने वाली माता कहला रही हैं। हमारे कुल को जमीनी स्तर पर जन्म देने वाली माता कुल की वृद्धि के लिए हर संभव प्रयास कर अपने जीवन के अनमोल पलों अपने कुल की वृद्धि में ही बांट देती है।
इसलिए हे मानव तू आस्था और श्रद्धा की प्रतिमाओं में भले ही जगत की माता को निहार लेकिन अपने को जन्म देने वाली माता को भी तू इन्हीं चश्मों से देख, तुझे उसमे दस विद्याओं की दस माता साक्षात नजर आएगी और शक्ति के संचय से डांडिया रास में तेरी भी महिमा को बढा जाएंगी।
सौजन्य : ज्योतिषाचार्य भंवरलाल, जोगणियाधाम पुष्कर