सबगुरु न्यूज। साक्षात लक्ष्मी स्वरूप सीता का हरण करने वाला रावण बहुत खुश था कि मैंने इस जगत को संकट में डाल दिया और अपना वर्चस्व स्थापित कर लिया। उसके मन की खुशियां तब बेहाल हो गईं जब उसके अहंकार के राज्य का एक हिस्सा महाबली हनुमान ने जला दिया तथा रावण और उसकी सेना को बता दिया कि छल का बल ज्यादा बलवान नहीं होता। छल के बल की उम्र ज्यादा नहीं होती चाहे वह कोई भी रूप धारण कर ले।
सत्य के बल को भले ही संकट में डाल दिया जाए या उस पर लांछन लगाकर कैद कर दिया जाए अथवा उसे हर तरह से अपमानित कर दिया जाए तब भी हर बाधाओं, संकट को पार करता हुआ अंत में वह विजेता ही रहता है। हनुमान जी के लंका में प्रवेश के साथ ही रावण को भान हो गया कि छल बल से लक्ष्मी रूपी सीताजी का हरण अब उसके काल का कारण बनेगी तो वह अपनी सेना ओर योद्धाओं को तैयार करने लगा। शक्ति के जागरण कर मन्नतों के धागे बांधने लगा। इससे कमजोर और निर्बल समझे गए कि बलशाली को सत्य ने धराशायी कर दिया तथा सदा के लिए उसके खेल का अंत कर दिया।
संत जन कहते हैं कि हे मानव, इस जगत को उत्पन्न करने वाली अदृश्य शक्ति ही बलवान होती है। अपने को सदा बलवान समझने वाला रावण जब पर्वत कैलाश उठाकर ले जाने लगा तो कैलाशपति शिव ने उसका हाथ पर्वत मे ही फंसा दिया।
रावण ने जब अनुनय-विनय की तब शिव ने उसे उस जघन्य कृत्य के लिए माफ कर दिया लेकिन जब दूसरे जघन्य अपराधों में रावण लग गया तो अंत में उसने इस जगत मे जैसी चाकरी की उसे उसी श्रम का फल जगत की अदृश्य शक्ति ने चुका दिया और मजदूरी में उसे मौत मिली, लंकापति कोई ओर बन गया।
इसलिए हे मानव तू उस जगत के सत्ताधीश को राम राम बोल और अपनी की गई चाकरी अर्थात जैसा कर्म किया उसका फल भोग। सत्य का फल बल के रूप मे मिलेगा और झूठ का फल मिथ्या सपने के रूप मे मिलेगा। इसलिए हे मानव, सत्य के मार्ग पर चल ओर जीवन सफल बना। दीवाली की राम राम सा।
सौजन्य : ज्योतिषाचार्य भंवरलाल, जोगणियाधाम पुष्कर