सबगुरु न्यूज। बिखरते हुए ढांचे पर मिट्टी का लेपन कर उसे मजबूत बनाने की कवायद की जाती है तो वह ढांचा बाहर से कुछ सुन्दर सा दिखाई देने लग जाता है पर उस ढांचे का बल नहीं बढ सकता है। कुछ समय बाद ही चरमाराकर कर वह गिर जाता है और उस पर चढ़ाई मिट्टी के लेपन का खर्च भी डूब जाता है। जर्जरित ढांचे को छल की नीति से भले ही बलवान घोषित कर दिया जाए पर उसे बलवान नहीं बनाया जा सकता।
बल और नीति स्वयं अपने आप को प्रकाशित कर जमीन पर अपना पूर्ण अस्तित्व दिखाती है जिसे बखाना नहीं जाता क्योंकि यह प्रकट रूप में होती है। अपनी नीति के जर्जरित ढांचे पर जब रावण और दुर्योधन ने छल से अपने बल को प्रकट करने की कवायद की थी तो कुछ ही समय बाद दोनों ही नीतिकारों की नीतियों का ढांचा जर्जरित होकर गिर पड़ा। नीति छल और बल धराशायी होकर ओंधे मुंह गिर पड़े। छल द्वारा बनाई नीति और बल की उम्र कम होती है साथ ही यह चरित्र का निर्माण नहीं कर सकती।
चरित्र निर्माण छल, बल और बिखराव की नीति से नहीं होता बल्कि चरित्र निर्माण के इर्द-गिर्द स्वत: ही भावनाओ का वातावरण निर्मित हो जाता है और जंगल के उस एकलव्य की तरह मिट्टी के गुरू में आस्था ही उसे रोशन कर देतीं हैं। आस्था ही चरित्र निर्माण का मूल मंत्र होता है वहां भावनाएं ही बलवान होती है। जब द्वापर युग में श्रीकृष्ण की बांसुरी बजती थी तो स्वत: ही उस वातावरण का निर्माण हो जाता था जहां सब अपनी सुध बुध खोकर भावनाओ से मोहित हो जाते थे।
संत जन कहते हैं कि हे मानव, भावनाएं आस्था के उस ढांचे का निर्माण करती है जहां छल, बल, और नीति अपने कितने भी करतब दिखा ले, उस ढांचे को जर्जरित नहीं कर सकतीं। ढाई अक्षर प्रेम के उस वातावरण का निर्माण कर देते हैं जहां बल, छल और नीति भी जर्जरित हो गिर जाती है तथा प्रेम दुनिया में मिशाल बनकर अपना चरित्र स्थापित करता है, जहां भावनाएं ही बलवान होती हैं।
इसलिए हे मानव तू अपने सम्बंधों के ढांचों में प्रेम का लेपन कर ताकि समाज के रिश्ते नाते सदा बने रहें। छल, बल और नफ़रत की नीति के ढांचों को गिरा कर इनका अस्तित्व मिटा दे।
सौजन्य : ज्योतिषाचार्य भंवरलाल, जोगणियाधाम पुष्कर