सबगुरु न्यूज। अदृश्य शक्ति के प्रकाश में खोता हुआ प्राणी जब अपने मन को उस शक्ति के साथ जोड़कर एक हो जाता है तब वह दुनिया के लोभ मोह माया से दूर हो जाता है। मन का यह रूप परिवर्तन ही आध्यात्म कहा जाता है।
आध्यात्म के इन ठिकानों पर सकारात्मक और नकारात्मक जैसे शब्दों का स्थान नहीं होता है वहां केवल शरीर जो रूह कहीं जाती है वह अदृश्य शक्ति में अपने मन की नीयत को जोड़ लेती है और यही रूहानियत आध्यात्म के ठिकानों पर बरसती हैं।
मन का रूझान जब दृश्य शक्ति की ओर हो जाता है तो उसकी परिभाषा में अदृश्य शक्ति कोरी काल्पनिक कथाएं बनकर रह जाती है। जमीनी हकीकत का बादशाह बनने के लिए वह भौतिकता के मंच पर बैठता है लेकिन समझ जाता है कि यहां के रास्तो को तय करना इतना आसान नहीं है।
वह मन में उठे इस विचार को बुद्धि के पास ले जाता है। बुद्धि उसे अदृश्य शक्ति की शरण में जाने के उपदेश देती है और मन विचारों में खोता हुआ आध्यात्मिकता के ठिकानों के परिधानों को तो ओढ लेता है पर उसके मन की नीयत में भौतिकता ही अपना ठिकाना बना लेती है।
दोनों ही बैमेल बाते एक साथ एकत्रित हो जाती है और आध्यात्म के परिधानों के रंग की आढ में मन की नीयत भौतिकता के मंच पर आसीन होकर सकारात्मक और नकारात्मक के उपदेश देकर सम्मान की चादर ओढती है जिस पर किसी के स्वार्थ पूरे करने के मैले रंग चढ़े हुए होते हैं।
संतजन कहते हैं कि हे मानव मैले मन के आँगन पर आध्यात्मिकता की चादर नहीं ओढी जाती लेकिन जब मन का रूझान ही भोतिकता पर इस आध्यातम की चादर से अपना अस्तित्व बनाये रखनें का होता है तों उस जंग में मैला मन कुछ क्षण आनंद की अनुभूति जरूर करता है पर यह अनुभूति फिर नये मायाजाल में फंसा देती हैं और मैले मन पर ओढी आध्यात्मिक चादर उड जाती है।
इसलिए हे मानव तू भोतिकता के मंच पर राज करने के लिए कर्म की चादर ओढ ओर मानव धर्म के हितों की रक्षा कर। आध्यात्मिकता के ठिकानों पर तो त्यागियो का ही प्रवेश होता है और उसे माया के मंच पर नहीं आध्यात्मिक मंच पर ही नवाजा जाता है।
सौजन्य : ज्योतिषाचार्य भंवरलाल, जोगणियाधाम पुष्कर