सबगुरु न्यूज। परमात्मा ने प्रकृति और जीव जगत की रचना की। प्रकृति व जीव जगत तो प्रत्यक्ष रूप से नजर आते हैं पर परमात्मा इनकी रचनाओं में छिपा हुआ रहता है, वह नजर नहीं आता। बस यहीं से परमात्मा के होने या न होने के मत अलग-अलग रास्तो की ओर बढ़ जाते हैं।
यही मत अपने अपने तरीकों से समाज व संस्कृति की रचना करते हैं और एक मत भय और अज्ञात चमत्कार के रूप में परमात्मा के नाम पर मानव और समाज को बांधे रखता है।
दूसरा मत उस समाज व संस्कृति का निर्माण करता है जहां सभी व्यक्ति खुलकर अपने जीवन को जी सकता है और अज्ञात भय ओर अज्ञात चमत्कार जैसे शब्दों से परहेज करता है।
अज्ञात भय ओर अज्ञात चमत्कार वाले मत का समाज, व्यक्ति पर कई तरह के प्रतिबंध लगा उसे मूल्यो विश्वास पाप पुण्य श्रद्धा के मापदंडों से जकड़ देता है और इन्हें धर्म का जामा पहना कर राज करने की नीति के सिद्धांत बना कर राज करता है।
इस मत की कठोरता से व्यक्ति शनै: शनै: पीडित होकर संघर्ष की राह पर चल पडता है और अज्ञात भय और अज्ञात चमत्कार की संस्कृति पर प्रहार कर स्वतंत्र होने की आधार शिला को रख देता है।
एक समय बाद ये स्वतंत्रता तर्क के आधार पर इस मत के समाज को खारिज कर देती हैं और उस समाज की ओर बढ जाती है जहां सब कुछ स्वतंत्र होता है जहां ना तो अज्ञात भय और अज्ञात चमत्कार की संस्कृति के मूल्य विश्वास मानयताएं धर्म और आध्यात्म कोई मायने रखतीं हैं।
संतजन कहते हैं कि हे मानव व्यक्ति प्रकृति का अंश होता है जिसे सदा अज्ञात भय और अज्ञात चमत्कारों की संस्कृति से नहीं बांधा जा सकता है, ना ही किसी पर योग्यता या अयोग्यता की कालिक पोती जा सकती है। इसे ना ही जाति, वर्ग, धर्म और समाज के दायरे मे बांध कर रखा जा सकता है और ना ही अत्याचार ओर जुल्म ढोने को मजबूर किया जा सकता है। सभी को खुली हवा में सांसे लेने के अधिकार कुदरत ने बख्शे हैं।
मानव विश्व स्तर पर इस प्रकृति के महापरिवर्तन को देख जहां प्रकृति बाढ़, भूकंप, भूसखलन, ज्वालामुखी और तूफान के खतरनाक खेल को अंजाम देकर तथा महामानव को खुले आम चुनौती दे रही है कि अब महा परिवर्तन के महायुग युग की दस्तक पड चुकी हैं जहा अज्ञात भय और अज्ञात चमत्कारों का कोई स्थान नहीं है। इसलिए हे मानव तू सभी को अपने ही तरीके से जिन्दा रहने की सांसे लेने दे।
सौजन्य : ज्योतिषाचार्य भंवरलाल, जोगणियाधाम पुष्कर