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धुन मुरली की थी पर द्वापर नहीं लौटा

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धुन मुरली की थी पर द्वापर नहीं लौटा

सबगुरु न्यूज। द्वापर युग में मोहन की मुरली ने जीव व जगत सभी को अपने मोह में वशीभूत कर लिया। सब अपनी सुध बुध खो बैठे और मुरली की धुन में मस्त होकर मोहन में ही समा गए। राजा, प्रजा, बालक, वृद्ध, जीव व जगत सभी ने अपनी बागडोर मोहन के हवाले कर दी।

ऐसा लगने लगा कि आने वाला कल सुख और वैभव का इतिहास लिखेगा तथा पृथ्वी पर पापाचार, अत्याचार और जुल्म ढाने के दानव का यह आखिरी क्रियाकर्म होगा। द्वापर युग शनै: शनै: निकलता गया और मोहन मुरली वाले कृष्ण भी मुरली को छोड़ अपने धाम को लौट गए।

द्वापर के मोहन तो चले गए पर मुरली कोई ओर बजाने लगा। देखते ही देखते पृथ्वी पर काले नागों को लेकर कलयुग का बादशाह आ गया। उसके हाथ में जहरीले नागों का पिटारा था। अपने पिटारे को खोल उसने सर्वत्र ज़हर से सने नागों को छोड़ दिया। ये नाग अपनी लीला दिखाने लगे तथा सर्वत्र जहर लेकर फुफकारने लगे। नागों की फुफकार और जहर ने सब कुछ काला बनाकर कलयुग का झंडा फहरा दिया। इस झंडे ने सब कुछ मिटा डाला, द्वापर युग के सुख वैभव सब को खत्म कर डाला।

आज के कलयुग में त्राहि त्राहि करने वालों ने फिर द्वापर के मोहन को पुकारा। पर श्याम सुन्दर बांके बिहारी मोहन तस्वीरों में ही मुस्कराते रहे साथ ही मानो इशारा कर रहे हैं कि मुरली अब कलयुग बजा रहा है और अपना रंग रूप दिखा रहा है। इस कलयुग की मुरली ने सुख, वैभव सब कुछ छीन लिया है। वह उस मुरली की धुन से सभी को बेहोश कर सबके होश को कैद करना चाहता है। आखिर वो कलयुग है, सबके कंधों पर खडा होकर सब के कंधे तोड़कर राज करना चाहता है।

संत जन कहते हैं कि हे मानव, मुरलियां तो बज रही है पर ये द्वापर युग के मोहन मुरारी मुरलीधर की नहीं है। ये काल की बेला है जो अपना बल दिखा रही है और जीव व जगत के होश उड़ा रही है। काल चक्र सबको यादें बनाकर छोड़ जाता है और वो कभी द्वापर तो कभी कलयुग कहलाता है।

इसलिए हे मानव तेरे मन में बसी आत्मा को तू द्वापर का मोहन मान और मन को उसके नियंत्रण का अर्जुन बना। तुझे हर काल में सुखद गीता का कर्म उपदेश ही सुनने को मिलेगा तथा इस कलयुग की मुरली स्वत ही टूट जाएंगी।

सौजन्य : ज्योतिषाचार्य भंवरलाल, जोगणियाधाम पुष्कर