सबगुरु न्यूज। इच्छाएं अपना आकार फर्श से अर्श तक बडा लेती है और उसके बाद भी उसकी आग की लपटें रुकती नहीं है और धारा के विपरीत बहती हुई शाश्वत सत्य को भूल जाती है तथा मिथ्या के गलियारों में भटकने को मजबूर कर देती हैं।
मिथ्या के गलियारे मृग मरीचिका बन उन इच्छाओ को पूरा करने के लिए भ्रम में भटकाते रहते हैं और भटकते भटकते इच्छाएं जमीदोज हो जाती है फिर मिथ्या का गलियारा मरुस्थल बनकर अट्टहास करता है। सभी इच्छाओं को धूल का बंबडर बना उसे उडा कर दूर दूर तक ले जाता है और अंत में धूल का बवण्डर अपना अस्तित्व खोता हुआ कण कण में बिखर जाता है।
मिथ्या के गलियारे केवल मृग मरीचिका की तरह भटकाते हैं और व्यक्ति की कद काठी को छोटा बनाकर आंख मिचोली के खेल में लगा देते हैं। सच का बौनापन और झूठ की परछाईयां जब व्यक्ति को नजर आने लगती है तो वह मिथ्या के गलियारों को लात मारकर उसे मिटा देता हैं और भ्रम की दुनिया से बाहर निकल जाता है। जीवन की शाश्वत धारा में बह निकलता है और मिथ्या के गलियारे से झांकती वह हसीन मृग मरीचिका अपने जाल से निकलते हुए शिकार को देखते ही रह जाती है।
मिथ्या के गलियारे व मृग मरीचिका एक भारी मोह माया होती है जो व्यक्ति को जन्मते ही अपने जाल में फंसाने लग जाती है और व्यक्ति इस भ्रम का आनंद लेता हुआ धृतराष्ट्र बन जाता है। राज पाने की लालसा में अपने की कुल के मान को घटाने लग जाता है। सत्य का बौनापन और झूठ की परछाई व्यक्ति को जीवन के शाश्वत सत्य का भान कराती है और यही शाश्वत सत्य “राम” बन कर व्यक्ति को मोह माया से विरक्ति कराने लग जाता है।
संत जन कहते हैं कि हे मानव मोह, माया अपना जाल बिछाकर व्यक्ति को फंसाने लग जाती है और मिथ्या के गलियारों में भटकाने लग जाती है। सत्य पर पर्दा डाल खुद सत्य का रोल निभाने लग जाती है और वह इस मोह माया के मंच पर झूठ, फरेब, लालच और अहंकार की भीड़ इकट्ठा कर तेरी हौसला अफजाई करती हुई तुझे गुमराह करती रहेगी और अपना हित साधने में लगी रहेगी।
इसलिए हे मानव तू इस मिथ्या के गलियारे से बाहर निकल क्योंकि सत्य बौना हो चुका है और झूठ की परछाईयां अपना विकराल रूप धारण कर चुकी है। बाहर निकलते ही तुझे शाश्वत सत्य के राम नजर आएंगे और दुनिया में कही नहीं केवल तेरे मन रूपी मंदिर में ही मुस्कराते हुए नज़र आएंगे।
सौजन्य : ज्योतिषाचार्य भंवरलाल, जोगणियाधाम पुष्कर