सबगुरु न्यूज। नागपाश के बंधन को श्रद्धा, आस्था, तर्क और न्याय की संस्कृति से नहीं काटा जा सकता क्योंकि नागपाश इन सबके बल से भारी होता है। इन सबके बल नागपाश के प्रहारों से केवल आंसू ही बहाते रहते हैं और अपने आप को भटकाते रहते हैं।
कथाएं बताती हैं कि जब रावण ने राम और लक्ष्मण को युद्ध में नागपाश से बांधा तो वीर हनुमान जैसे महाबली भी चिंता के सागर में डूब गए तथा नागपाश के प्रभाव से राम व लक्ष्मण को बचाने के लिए गरूडों की संस्कृति का सहारा लिया और नागों के बंधन को कटवा डाला। गरूड़ और नागों के बैर ही नागपाश को ध्वस्त कर सकता है, इसके सिवा कोई भी संस्कृति नागपाश का अंत नहीं कर पाई।
नागपाश में बंधा योद्धा बलहीन हो जाता है और हर सांस उसे मौत के नजदीक ले जाती है। उसके हर अस्त्र शस्त्र आत्मसमर्पण कर देते हैं। शंतरज की गोटियों के वीर चीखते चिल्लाते रह जाते हैं तथा सीधी शह और मात के साथ खेल खत्म हो जाता है। नागपाश वह शस्त्र होता है जो शत्रु को अपने कब्जे में लेकर जकड़ लेता है, जकडन को बढाता रहता है, शरीर को कसती हुई जकडन शत्रु का अंत कर देती हैं।
नागपाश अस्त्र महाशक्तिशाली कुछ गिने चुने योद्धाओं के पास ही होता है तथा वे अपने को सुरक्षित करने के लिए सबसे अंत में ही इसे चलाते हैं। नागपाश के प्रभाव को केवल गरूड़ ही दूर कर सकते हैं, बाकी सभी मरने वाले के गवाह बन कर चीखते चिल्लाते रह जाते हैं।
बसंत रूपी नायिका के मोह में फंसा ऋतु चक्र जब भारी गर्मी के जाल में फंस जाता है तो वह प्रचंड तूफान, वर्षा के पानी से ठंडा होने की कवायद करता है और कुछ राहत महसूस करता हुआ अंदर से डरकर बाहर से शक्तिशाली होने का प्रदर्शन कर शरद ऋतु के महारास के डांडिया नृत्य की आवाज से सब को बेबस बनाने में जुट जाता है।
सर्दी के लिबास पहनकर अपने को फिर गर्म बनाने की कवायद करता है लेकिन हेमंत और पतझड़ ऋतु उससे सब कुछ छीन शून्य पर ले आती है।
संत जन कहते है कि हे मानव वर्षा रूपी नागपाश में फंसा मानव जब अपने अवशेष छोड़ जाता है और एक युग का अंत हो जाता है।
इसलिए इसलिए हे मानव तू नागपाश की संस्कृति से बचने के लिए अपने आप को गरूड़ रूपी संस्कृति में ढाल। यही संस्कृति नागों के जाल को काट सकती है ना कि श्रद्धा, आस्था, तर्क और न्याय की चौपाले। गरूड़ संस्कृति सत्य और सहयोग का चोला ओढ़कर राज करती है और सभी को सुखी और समृद्ध बनाती है।
सौजन्य : ज्योतिषाचार्य भंवरलाल, जोगणियाधाम पुष्कर