सबगुरु न्यूज। हाहाकार मचाता हुआ अहंकार जब सब कुछ खत्म करने पर ऊतारू हो जाता है और मनमानी की अग्निवेदी पर प्राणी के जीवन के जीने के मूल्यों की आहुति देकर स्वाहा करने लग जाता है तब घुटन की कसमसाहट आग को बुझाने वाली हवन सामग्री बनकर प्रहार करती है और आग की लपटों की प्रचंडता को खत्म कर उसे धुआं बना देती है। शनै शनै आग अपना अस्तित्व खोने लग जाती है।
सदियों से आज तक की बस यही कहानी रही है कि अहंकार का दानव जब सब कुछ मिटाने पर ऊतारू हो जाता है तब केवल शक्ति ने ही अपने गुणों का विस्तार कर इस अहंकार को खत्म कर सारी व्यवस्थाओं को सामान्य किया।
पौराणिक कथाएं इस बात को साबित करती है कि अहंकार के दानव का जर्जर अंत स्त्री शक्ति ने ही किया है। कथाएं यह भी बताती है कि मधु, कैटभ, महिषासुर, शुंभ, निशुंभ, दुर्गमासुर, अरूणा सुर जैसे अहंकारी और हाहाकार मचाने मचाने वाले सम्राटों का अंत कोई भी पुरूष शक्ति नहीं कर पाई। तब स्त्री शक्ति ने अपने अस्तित्व और अहंकार की आग में जल रहे जगत को बचाने के लिए अपने हाथ में खडग ऊठाया।
अहंकारी जब अपना रूप, छल, बल और अश्लील भाषा के रूप में प्रकट हुआ तथा सभी मर्यादाओ को लांघते हुए स्त्री शक्ति को प्रताड़ित करने लगा तब स्त्री शक्ति की हुंकार तथा हाथ में उठाए खडग ने उन सभी अहंकारी अत्याचारी और हाहाकार मचाने वाले सम्राटों का अंत कर दिया। पौराणिक कथाओं में से यदि स्त्री शक्ति की भूमिका को हटा दी जाए तो सभी कथाओं का कभी विस्तार ही नहीं हो पाता।
वर्तमान में अब शक्ति जागरण की आवाजें आने लग गई है और जगत के अहंकारियों और हाहाकार मचाने वालों को संदेश दे रही है कि हे मानव तू अब अपनी मर्यादा में रह तथा अश्लीलता के खेल को बंद कर। स्त्री शक्ति को विकराल रूप धारण मत करने दे, नहीं तो सब कुछ खत्म हो जाएगा।
संत जन कहते हैं कि हे मानव जिस संस्कृति में सदियों से स्त्री शक्ति को सम्मान दिया जाता है और सरस्वती, लक्ष्मी, अन्नपूर्णा के रूप में पूजा जाता है, जीवन का मुख्य आधार माना जाता है यदि वहां की संस्कृति में स्त्री शक्ति की आंखों से आंसू बहने लग जाते हैं तो ये आंसू फिर खडग उठा कर अपना रूप भी दिखा सकते हैं।
इसलिए हे मानव ये नवरात्रि अब नवरात्रा बनकर स्त्री शक्ति को पूर्ण रूप से जाग्रत कर रहा है और संदेश दे रहा कि केवल हौसला अफजाई तथा शस्त्रों की पूजा से काम नहीं चलेगा। इस शक्ति के जागरण काल में स्त्री शक्ति के पथ पर कांटों के संचालन को हटा ओर समाज के माहौल को व्यवस्थित करने के मत को हासिल करने के पथ पर बढ ताकि सामाजिक संरचना का ढांचा जर्जरित होने से बचे।
सौजन्य : ज्योतिषाचार्य भंवरलाल, जोगणियाधाम पुष्कर