सबगुरु न्यूज। स्वर्ग वह स्थान होता है जहां सभी सुख, ऐशवर्य, और आराम उपलब्ध होते हैं, जहां के नियम तथा कानून कायदे स्वयं अपने होते हैं और वहां का शासक हर शक्तियों से सुसज्जित होता है। वह हर प्रकार से स्वर्ग को सुरक्षित बनाए रखने के लिए तत्पर रहता है। ब्रह्मांड के सभी लोकों मे स्वर्ग का विशेष महत्व होता है और हर कोई यहां रहना चाहता है बसना चाहता है।
धर्म ग्रंथों की इन्हीं मान्यताओं के अनुसार स्वर्ग के द्वार सभी के लिए खुले हैं पर यहां वह ही जा सकता है जिसने विशेष अधिकार प्राप्त कर लिया हो या जिसने अत्यधिक शुभ कर्म कर लिए हों वह ही मृत्यु के बाद स्वर्ग में जा सकता है। स्वर्ग के राजा देवराज इन्द्र को जो युद्ध में हरा दे वह भी स्वर्ग को प्राप्त कर सकता है।
पौराणिक कथाओं में पृथ्वी के कुछ शासकवीर स्वर्ग में देवराज इंद्र के मित्र होने या अपनी विशेष योग्यता के कारण स्वर्ग पर जाकर वापस आ गए। ऋषि मुनियों ने भी अपने बलबूते से कुछ को स्वर्ग भेजने की कवायद की जिसमें राजा सत्यव्रत त्रिशंकु का नाम प्रसिद्ध है। राजा नुहष ने भी अपने बलबूते व विशेष योग्यता के कारण स्वर्ग पर शासन किया पर उन्हें भी मुंह की खानी पड़ी ओर पुनः धरती पर श्रापित हो कर आना पड़ा।
कई दैत्यों ने स्वर्ग पर अपने बलबूते से कब्जा कर शासन किया तब भी हार कर उन्हें आना पड़ा। यहां तक कि स्वर्ग के अंतिम विजेता दैत्य राज बली बना। बली को भी अपना स्वर्ग का शासन दान में रूप में वापस देना पड़ा।
बस स्वर्ग की यही कहानियां रही। स्वर्ग में केवल देव ही रह पाए और जिस जिसने भी स्वर्ग पर अपने बलबूते से कब्जा किया तब भी स्वर्ग का सिंहासन केवल देवों के लिए ही रहा है।
यह सब कहानियां बताती हैं कि सृष्टि के परमात्मा ने स्वर्ग केवल देवों के लिए ही बनाया है। भले ही किसी ने कुछ भी क्यों ना कर लिया। त्रिदेवों की तीन महान शक्तियों के योगदान ने सब को दर किनार करते हुए सदा देवों को ही स्वर्ग की सत्ता पर काबिज रखा।
संत जन कहते हैं कि हे मानव ये स्वर्ग केवल मन का एक खूबसूरत ख्याल होता है और जहां मानव सभी सुखों से सदा लदा रहना चाहता है तथा दुनिया की हर खूबसूरती को अपने ही कब्जे में कर ऐश आराम करना चाहता है, उसे सदा ही अपने अधीन रखना चाहता है। भले ही उसे कितनी भी ओर कैसी भी कीमत चुकानी पड़े।
मन का वेग जब उस खूबसूरती को झपटने के लिए आगे बढता है तब उस शरीर मे बैठी आत्मा को हंसी आ जातीं है और वह मन को कहती है कि हे मन तू इन खयालों की दुनिया से बाहर निकल, तू जहां बैठा है उस शरीर को सुरक्षित रख, नहीं तो यह शरीर मिट कर तेरा अस्तित्व खत्म कर देगा और मुझे भी मजबूर होकर अपनी दुनिया में जाना पडेगा।
इसलिए हे मानव तू अपने मन को स्वर्ग के ख्यालों से निकाल और उस हकीकत की दुनिया को खूबसूरत बना जिससे तू गूजर बसर कर रहा है। यही तेरा स्वर्ग है।
सौजन्य : भंवरलाल