सबगुरु न्यूज। मान सरोवर रूपी शरीर में परमात्मा स्वयं आत्मा बन कर बैठा है और उस परमात्मा ने इस झील में मोती रूपी मन को स्वतंत्र विचरण के लिए छोड़ रखा है। ये मन अपने विचारों को कैसा आकार देता है और उन विचारों से किस प्रकार झील के किनारे, आसपास का वातावरण बनता है, उस वातावरण में क्या निपजेगा यह सब कुछ मन पर छोड़ रखा है।
शरीर ओर आत्मा का सेवक बनकर मन परमात्मा की इस विरासत को सुरक्षित रखने के लिए अपनी कार्य योजना किस प्रकार बनाता है, कैसे इस विरासत में इजाफा करता है या उसे एक आपूरित घाटे की ओर छोड़ देता हैं।
उसके कार्य योजना बजट में किस किस विषयों को उसने महत्व दिया है। किस विषयों को उसने वंचित कर दिया है आदि के अंतिम परिणाम की भनक उस सृष्टि की रचना करने वाले के कान में झील के आसपास बना मानसून और हवाओं की चाल अपनी आवाज कर बता देती है।
परमात्मा पंच महाभूत की संख्या बल के अनुसार उसे और इजाफा करने तथा आपूरित घाटे को अन्य प्रयासों से पूरा करने के लिए छोड़ देता है। आखिर में परिणाम को देखकर वह स्वयं नियंत्रक बन नियंत्रण करने लग जाता है। अगर वह ऐसा नहीं करता है तो उसकी बनाई ये मानसरोवर झील प्रदूषित हो जाएगी या सूखकर एक मैदान का रूप ले लेगी।
संत जन कहते हैं कि ये मानव तू ये ना समझ की तेरे द्वारा किया जाने वाले हर कर्म की कोई निगरानी नहीं कर रहा है। भले ही तू अपने कर्म को छिपा कर या छपवा कर या जमीन के हर नियंत्रक को नियंत्रण में रख कर अपने हिसाब से कर, लेकिन तेरे हर उस कर्म का लेखा-जोखा उस सृष्टि रचाने वाले को तेरी दिल की धडकने बता देतीं हैं क्योंकि तेरे दिल की धडकनों पर एक मात्र अधिकार उस दीन दयाल का है।
इसलिए हे मानव तू ये मत बता की तू अच्छा कर रहा है या बुरा कर रहा है, क्योंकि परमात्मा ही तेरा मूल्यांकनकर्ता है। वह तेरी कार्य योजना या रोड मेप को नहीं देखता। वह तो केवल यही देखता है कि इसमें तेरा क्या हित छिपा हुआ है और इस हित को साधने के लिए तू किस किस का किस प्रकार से पतन कर रहा है।
ये दुनिया तो राम नाम की माया है जिसमे जिसमे ख़ूब हीरे मोती बिखरे हुए हैं और इसमे अब तू दुनिया के हीरे मोती चुनता है या फिर तू “राम नाम” का हीरा चुनता है ये तेरी मर्जी है। क्यो कि तेरे कार्य योजना के बजट को ये ही अंजाम देंगे।
सौजन्य : भंवरलाल