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गरीबों की हमदर्द तू ही बता - Sabguru News
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गरीबों की हमदर्द तू ही बता

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गरीबों की हमदर्द तू ही बता

सबगुरु न्यूज। सर्द रातों में कुदरत ठंड का कहर बरसाती हुई कुछ बेदर्द सी दिखाई देती है और बर्फ की चादर ओढ़े समूचे पेड़ पौधे, झील व नदियों को जमाकर अपना साम्राज्य स्थापित करती हुई नज़र आती है। गिरता हुआ पाला कोहरा और हाड मांस को गलाती ठंड यह सब कुछ उसकी विरासत है। उस की इस विरासत को वह जबरन सबके नाम करना चाहतीं है और कहती है कि हे मानव तू डर मत, मेरे आगोश में आ जा। मै तूझे इस दुनिया से मुक्त कर दूंगी।

एक रूहानियत का फकीर अपने हाथ में खप्पर लेकर उस कुदरत की बेदर्द ठंड को कहता है कि रहम कर और अपने रूप को बदल। तू गरीबों की हमदर्द बन कर थोड़ी मुस्करा। तेरे दर को छोड़ कर ये दीवाने कहां जाएंगे। तेरे सिवाय कोई रास्ता दिखता नहीं है। अगर तू गरीबों की हमदर्द नहीं बनीं तो सब तेरे दर पर सिर पटक के मर जाएंगे।

हे कुदरत! तुम रहम कर, मेरे मालिक कुछ मेहरबान और कुछ दयावान को भेज ताकि वे अपने को इस कहर बरसाती हुई कुछ बेदर्द सी हुई ठंड से और खुले आसमां के नीचे अपने आप को बचा सके। रेन बसेरा भी ऐसे बनवा की वह इस ठंड को रोक सके नहीं तो ये रेन बसेरे खुद ठंड खा जाएंगे और कांपते हुए गरीब इस जहां से उठ जाएंगे। हे अलाव! तू आग की गर्म लौ को बढा क्योंकि हे! आग अब तू ही गरीबों को ठंड से राहत देकर उनकी हमदर्द बनेंगी नहीं तो ये राह से हट जाएंगे और रेन बसेरे ख़ाली हो जाएंगे।

दुनिया में कुछ लोग दिल के गरीब होते हैं तो कुछ लोग दिमाग़ के गरीब होते हैं, कुछ हालातों से गरीब होते हैं। दिमाग का गरीब अपनी सोच को बड़ी नहीं रखता तो दिल का गरीब कुछ करना नहीं चाहता तथा हालातों का गरीब बहुत कुछ करने के बाद भी हासिल कर पाता है। दिमाग का गरीब अवसर मिलने पर स्वार्थी बन कर लाभ उठाता है तो दिल का गरीब अवसर मिलने पर मौन रह कर सब कुछ ले जाता है। हालातों के गरीब को अवसर मिले तो वह अन्य अपने जैसों को भी लाभ दिलाकर बराबर हो जाता है।

दिमाग, दिल और हालात ही विकास का पैमाना होते हैं और जब ये तीनों सकारात्मक हो तो विकास कुछ भी करने को बचता नहीं है, सभी विकसित हो जाते हैं। लेकिन इन तीनों मे नकारात्मक संबध हो तो विकास एक पायदान नीचे कसक जाता है। वह अर्द्ध विकसित ही रह जाता है। इस तरह के नकारात्मक सह संबध ही विश्व के देशों को विकसित की श्रेणी में नहीं आने देते और सर्वत्र हर क्षेत्रों में गरीबी ही छायी रहती है।

संत जन कहते हैं कि ये ठंड तो अपना कहर नहीं बरसाएगी तो प्रकृति का संतुलन ठीक नहीं होगा और ना ही फसल व वनस्पति को अमृत रूपी पौष्टिकता मिलेगी। इसलिए हे मानव तू कुछ दया कर और यथासंभव प्रयास कर कि इस ठंड से कांपते लोगों को कुछ तो राहत मिले और उनकी राह आसान हो जाए। तेरे कर्म की राहत उन गरीबों की हमदर्द बनेगी।

सौजन्य : भंवरलाल