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बोल सुआ राम राम मीठी मीठी वाणी रे... - Sabguru News
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बोल सुआ राम राम मीठी मीठी वाणी रे…

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बोल सुआ राम राम मीठी मीठी वाणी रे…

सबगुरु न्यूज। विषहीन सांप भले ही कुंडली मार कर बैठ जाए और फुफकारते रहे पर उनकी गति उस त्रिशंकु की तरह ही होती है जो ना तो स्वर्ग में पहुंच पाते हैं और ना ही जमीन पर रहते है। वे केवल आकाश में तारों की तरह आदर्श बन केवल चमकते रहते हैं तथा राहगीरों को रोशनी भी नहीं दे पाते। असंख्य तारों के बीच अकेला चन्द्रमा इन तारों पर राज करता है और एक शक्तिशाली की तरह जीव व जगत को प्रभावित करता है।

ये विषहीन सांप केवल अपने स्वामी के लिए ही हितकर होते हैं तथा उस तोते की तरह होते हैं जिन्हें रटना सिखा दिया जाता है कि तू इस वाणी को बोलता रह। तोता चूंकि वाणी की नकल करने का माहिर होता है और वह स्वामी के शब्दों की नकल करता रहता है और बोलता रहता है।

जमीनी हकीकत भी यही होती है कि एक मुखिया के सभी अधिकार छीनकर उसे पंगु बना शक्तिशाली सदस्य उसका इस्तेमाल करता है और मुखिया भले ही विषहीन सांप की तरह फुफकारता रहे पर वह बेबस हो जाता है। शक्तिशाली इस सांप को अपने पास रख कर अपने स्वार्थ को सिद्ध करने के लिए सब को यह साबित कर देता है कि हम इन सापों के सेवक है और रखवाले हैं। बेचारा सांप बेबस होकर रह जाता है और यह समझ कर फुफकारता रहता है कि मैं शक्तिशाली हूं।

संत जन कहते हैं कि हे मानव यह तोता मन होता है और सांप उसकी गतिशीलता है। इस मन में लोभ, लालच वश सांप की तरह शक्तिशाली बनने की लालसा होती है और इस लालसा में वह अपनी बांबी छोड़ कर बाहर निकलता है और उस जमीनी जादूगर के हाथों में पड़ जाता है जो इसके जहर को निकाल कर तोते की तरह वाणी बोलना सिखा देता है।

ये मन सर्प तो बन जाता है लेकिन बेबस हो कर विषहीन हो जाता है और उसका कुनबा अर्थात वह शरीर जिसमे मन रहता है, संसार की व्याधियों से घिर जाता है तथा उसमें बैठी आत्मा उस शरीर को छोड़ कर मजबूरन चली जाती हैं और ऊपर बैठा बाजीगर भी मुस्करा देता है।

इसलिए हे मानव तू मन को अति महत्वाकांक्षी मत बनने दे अन्यथा जमीनी जादूगर तेरे जीवन को लक्ष्यहीन बनाकर कर्म करने के तेरे सिद्धांतों को कुचल देंगे और तुझे विषहीन सांप बनाकर तोते की तरह वाणी बोलना सिखा देंगे और तेरी आत्मा में बैठा राम परेशान हो कर तेरे शरीर से नाता तोड़ लेगा। भले ही तोते की तरह मीठी मीठी वाणी बोलता रह।

सौजन्य : भंवरलाल