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उस रोशनी से अंधेरा छा गया - Sabguru News
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उस रोशनी से अंधेरा छा गया

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उस रोशनी से अंधेरा छा गया

सबगुरु न्यूज। जहां मातम छाया हुआ हो वहां रोशनियों से आग ही लगती है। चाहे वह रोशनी जलाने वाला अपना हो या पराया। ऐसी रोशनी जलाने वाला सदा अपना ही होता है जिस के मन में प्रतिशोध के शोले जलते हैं ओर वह केवल सब के साथ इसलिए जुडे रहता है कि उसे अपने मक़सद को कामयाब करना होता है भले ही इस जहां के हर कण कण को बिखेरने पडे। हर प्राणी का मसीहा बनने की मैली सी चादर ओढनी पडे।

अपने खेल को अंजाम देने के लिए यह कल्याणकारी मशाल जलाने के नाम पर और सब चेहरों की अलग अलग कहानी लिखते हैं, उस कहानी के मुख्य किरदार को ही मुजरिम बना कर उसमें आग लगा देते हैं। पूरे खेल में अभिनेता व अभिनेत्री को मिलने से पहले ही जुदा होने का उपहार भेंटकर प्रेम व उमंग की खुशियों को रोशनी देने की जगह आग लगा देते हैं।

अपने जीवन का गुजर बसर करता मानव इस कल्याणकर्ता को अन्नदाता मानकर उस पर आश्रित हो जाता है, कल्याणकर्ता की मशाल देख वह प्रसन्न हो जाता है लेकिन ये मशाल जब अपना आकार बढाती है तो उसके छोटे से आशियाने को भी जला देती है। वह गुजर बसर करने वाला बैबसी से आंसू बहाते हुए रोता है तो कल्याणकर्ता उन्हें भावी महलों में बसाने की बात का दिलासा देकर दर दर भटकने को मजबूर कर देता है।

संत जन कहते हैं कि हे मानव तेरे पास तेरा शरीर है और उसे सुखी और समृद्ध व स्वस्थ बनाए रखने तथा अपने वंश की वृद्धि के लिए तुझे एक लेखा जोखा रखना पड़ता है। इसमें क्या तूने जमा किया ओर क्या तू खर्च करेगा। इस खेल में तुझे सदा हानि ही होगी क्योकि तू अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए अच्छे और बुरे कदम उठाएगा।

अच्छे क़दम उठा कर तू कर्ज का लेखा भावी पीढ़ी को देगा और वर्तमान में अच्छा मुखिया बन कर सब को दाल रोटी की जगह मक्खन रोटी खिलाएगा। अपनी पिछली पीढ़ी को कोसने लगेगा कि मेरे लिए कोई संपति नहीं छोड़ कर गए फिर भी मैं तुम्हें हर मामले में समृद्धि की ओर ले जा रहा हूं।

संस्कृति को संपत्ति के रूप मे छोड़ कर गई पीढी को हे मानव तू संपति नहीं मान रहा है और वर्तमान में तू कर्ज की दुनिया और बर्फ मे जमी संस्कृति को ही जीवन के तुलन पत्र में संपत्ति मान रहा है जहां भविष्य में इस शरीर को बेचकर भी सभी का गुलाम बनना पडेगा।

इसलिए हे मानव तू अपने जीवन के लेखे जोखे में सदा विश्वास, आत्मीयता, अपनापन, प्रेम और भाईचारे का आधार बना, जो सबकी संस्कृति के मूल्यों की परवाह कर तथा बैर बदले की भावना, नफरत और घृणा की मशाल जलाकर रोशनी देने का काम मत कर वरना इस गुलशन में तेरे अपने भी जल जाएंगे। तेरे जीवन का लेखा जोखा तुलन पत्र में भारी घाटे को छोड़ जाएगा।

सौजन्य : भंवरलाल