सबगुरु न्यूज। राजा की साख प्रजा में क्या है इसकी जानकारी केवल प्रजा के विचारों से ही हो सकती है। शासन की सूचना व गैर संस्थाओं के सर्वे, अनुमान, रायशुमारी व विषयों पर बहस, आदि कार्यक्रम जो राजा की कमियों को ढंकते हैं और राजा के असफल कदमों को भी आशावादी दृष्टिकोण की तरह प्रस्तुत कर एक कृत्रिम मानसून का निर्माण कर देते हैं। प्रजा को गुमराह करने के लिए उस धारा में जोड देते हैं जिनसे प्रजा का कोई सीधा लेना देना नहीं होता।
प्रजा के अधिकारों को जब ये बहस कराने वाले मंच स्वयं राजा या उसके प्रतिनिधि बन अपने को श्रेष्ठ विचारक व सभी क्षेत्रों के कुशल विशेषज्ञ मानकर हर विषय पर बहस के जरिए बुनियादी व मूल समस्याओं को ग़लत ढंग से मोडने का प्रयास करते हैं। इनका खंडन यदि कोई करता है तो उस पर ये राजद्रोह का आरोप लगाकर उसे हर पाखंड भेद व दंड से प्रताड़ित कराते हैं।
राज्य की चौथी संपति पर ये कुछ लोग कब्जा कर चौथी संपति के मूल स्वामियों को भी दर किनार कर स्वयं सर्वेसर्वा बनकर राजा को गुमराह करने लग जाते हैं और इसी के कारण राजा अपनी हैसियत भूल जाता ओर वह स्वयं को अनावश्यक ही कल्याणकारी राजा मानने लग जाता है।
राजतंत्र में स्वयं अपनी शक्ति के बल पर बने राजा भी सदा इन नीतियों के शिकार बने हैं तो प्रजातंत्र में प्रजा से चुना व्यक्ति केवल प्रजा के लिए ही कार्य करता है वह स्वयं को राज करने वाला नहीं कह सकता। उस दशा में तो उसे अपनी “साख” का भान कभी भी नहीं हो सकता।
युधिष्ठिर ने यह सब शासन व शासक की नीति की बातें सुनकर दिल श्रीकृष्ण को प्रणाम किया और पूछा कि हे माधव फिर राजा को अपनी साख की हैसियत का भान कैसे होगा। तब श्रीकृष्ण ने कहा वर्ष में एक दिन राजा और उसकी कार्य प्रणाली के विषयों में प्रजा को बोलने, उनके विचार व्यक्त करने की छूट दी जानी चाहिए।
इसके बाद युधिष्ठिर ने होली का दिन तय किया और प्रजा को खुली छूट दी आप राजा व उसके बारे में खुलकर बोलें क्योंकि “आप की हर बात या प्रतिक्रिया” पर कोई बुरा नहीं मानेगा। बस यही से यह चलन शुरू हो गया कि बुरा ना मानो होली है।
संत जन कहते है कि हे मानव तू अपने शरीर का राजा है और सदा ही इसे अपने मन की इच्छा के अनुरूप चलाता है। एक दिन इस शरीर की भी सुन कि यह क्या चाहता है और इसमें क्या कमियां हैं। इसकी समय समय पर जांच करता रह। केवल यौवन और धन की मरोड़ मत कर क्योंकि यह जगत तो एक सराय की तरह है जिसमें तेरा ठिकाना तो कुछ काल का ही है।
इस धरती पर जिनकी धाक पड़ती थी उनका भी पता नहीं पडा। इसलिए हे मानव तू एक दिन इस शरीर की भी सुन ओर कान्हा की उस होली में जाकर चंग की थाप पर फाग के गीत गाकर नाचते हुए अपनी शरीर की ऊर्जा बढा और अपने प्रेमीजन से मिल वास्तव में तू धन व यौवन का मरोड़ भूल जाएगा।
सौजन्य : भंवरलाल