सबगुरु न्यूज। आज कल 31 दिसंबर की रात्रि में छोटे बालकों से वृद्ध तक सभी एक-दूसरे को शुभ कामना, संदेश-पत्र अथवा प्रत्यक्ष मिलकर हैपी न्यू इयर कहते हुए नववर्ष की शुभकामनाएं देते हैं। वास्तविक, भारतीय संस्कृति के अनुसार चैत्र-प्रतिपदा (गुढीपाडवा), ही हिंदुओं का नववर्ष दिन है। किंतु आज के हिंदू 31 दिसंबर की रात्रि में नववर्ष दिन मनाकर अपने आपको धन्य मानने लगे हैं। आज कल भारतीय वर्षारंभ दिन चैत्र प्रतिपदा पर एक-दूसरे को शुभ कामनाएं देने वाले हिंदुओं के दर्शन दुर्लभ हो गए हैं।
भोगवादी युवापीढी के निश्चिंत अभिभावक
हिंदु धर्म के अनुसार शुभकार्य का आरंभ ब्रह्ममुहूर्त पर उठकर, स्नानादि शुद्धिकर्म के पश्चात, स्वच्छ वस्त्र एवं अलंकार धारण कर, धार्मिक विधि-विधान से करना चाहिए। इससे व्यक्ति पर वातावरण की सात्त्विकता का संस्कार होता है।
31 दिसंबर की रात्रि में किया जाने वाला मद्यपान एवं नाच-गाना, भोगवादी वृत्ति का परिचायक है। इससे हमारा मन भोगी बनेगा। इसी प्रकार, रात्रि का वातावरण तामसिक होने से हमारे भीतर तमोगुण बढेगा। इन बातों का ज्ञान न होने के कारण, अर्थात धर्मशिक्षा न मिलने के कारण, ऐसे दुराचारों में रुचि लेने वाली आज की युवा पीढी भोगवादी एवं विलासी बनती जा रही है। इस संबंध में इनके अभिभावक भी आने वाले संकट से अनभिज्ञ दिखाई देते है।
ऋण उठाकर 31 दिसंबर मनाने वाले अंग्रेज बने भारतीय
प्रतिवर्ष दिसंबर माह आरंभ होने पर स्वयं भारतीय संस्कृति का झूठा अभिमान अनुभव करने वाले परिवारों में चर्चा आरंभ होती है, हमारे बच्चे अंग्रेजी माध्यम में पढते हैं। क्रिसमस कैसे मनाना है यह उन्हें पाठशाला में पढाते हैं, अत: हमारे घर ‘क्रिसमस’ का त्यौहार मनाना ही पडता है। तत्पश्चात वे क्रिसमस ट्री, सजाने का साहित्य, बच्चों को सांताक्लॉज की टोपी, सफेद दाढी मूंछें, विग, मुखौटा, लाल लंबा कोट, घंटा आदि वस्तुएं ऋण उठाकर खरीदते हैं।
गोवा में एक प्रसिद्ध आस्थापन ने 25 फीट के अनेक क्रिसमस ट्री प्रत्येक को 1 लाख 50 सहस्र रुपयों में खरीदे हैं। ये सब करने वालों को एक ही बात बताने की इच्छा है कि ऐसा कर हम एक प्रकार से धर्मांतर ही कर रहे हैं। कोई भी तीज-त्यौहार, व्यक्ति को आध्यात्मिक लाभ हो इस उद्देश्य से मनाया जाता है। हिंदू धर्म के हर तीज-त्यौहार से उन्हें मनाने वाले, आचार विचार तथा कृत्यों में कैसे उन्नत होंगे यही विचार हमारे ऋषि-मुनियों ने किया है। अत: ईश्वरीय चैतन्य, शक्ति एवं आनंद देने वाले गुढीपाडवा के दिन ही नववर्ष का स्वागत करना शुभ एवं हितकारी है।
अनैतिक तथा कानून द्रोही कृत्य कर नववर्ष का स्वागत
वर्तमान में पाश्चात्य प्रथाओं के बढते अंधानुकरण से तथा उनके नियंत्रण में जाने से अपने भारत में भी नववर्ष ‘गुढीपाडवा’ की अपेक्षा बडी मात्रा में 31 दिसंबर की रात 12 बजे मनाने की कुप्रथा बढने लगी है। वास्तव में रात के 12 बजे ना रात समाप्त होती है और ना दिन का आरंभ होता है। अत: नववर्ष भी कैसे आरंभ होगा? इस समय केवल अंधेरा एवं रज-तम का राज होता है। इस रात को युवकों का मदिरापान, नशीले पदार्थों का सेवन करने की मात्रा में बढोतरी हुई है। युवक-युवतियों का स्वैराचारी आचरण बढा है तथा मदिरा पान कर तेज सवारी चलाने से दुर्घटनाओं में बढोतरी हुई है।
कुछ स्थानों पर भारनियमन रहते हुए बिजली की झांकी सजाई जाती है, रातभर बडी आवाज में पटाखे जलाकर प्रदूषण बढाया जाता है तथा कर्ण कर्कश लाउडस्पीकर लगाकर उनके ताल पर अश्लील पद्धति से हाथ-पांव हिलाकर नाच किया जाता है, गंदी गालियां दी जाती हैं तथा लडकियों को छेडने की घटना बढकर कानून एवं सुव्यवस्था के संदर्भ में गंभीर समस्या उत्पन्न होती है। नववर्ष के अवसर पर आरंभ हुई ये घटनाएं सालभर में बढती ही रहती हैं। इस ख्रिस्ती नए वर्ष ने युवा पीढी को विलासवाद तथा भोगवाद की खाई में धकेल दिया है।
राष्ट्र तथा धर्म प्रेमी इन कुप्रथाओं को रोकने हेतु आगे आएं
31 दिसंबर को होने वाले अपप्रकारों के कारण अनेक नागरिक, स्त्रियों तथा लडकियों का घर से बाहर निकलना असंभव हो जाता है। राष्ट्र की युवापीढी उद्ध्वस्त होने के मार्ग पर है। इसका महत्त्व जानकर हिंदू जनजागृति समिति इस विषय में जनजागृति कर पुलिस एवं प्रशासन की सहायता से उपक्रम चला रही है। ये अनुचित प्रकार रोकने हेतु 31 दिसंबर की रात को दिल्ली – एनसीआर के प्रमुख तीर्थक्षेत्र, पर्यटनस्थल, गढ-किलों जैसे ऐतिहासिक तथा सार्वजनिक स्थान पर मदिरापान-धूम्रपान करना तथा प्रीतिभोज पर प्रतिबंध लगाना आवश्यक है।
पुलिस की ओर से गस्तीदल नियुक्त करना, अनुचित प्रकार करने वाले युवकों को नियंत्रण में लेना, तेज सवारी चलाने वालों पर तुरंत कार्यवाही करना, पटाखों से होने वाले प्रदूषण के विषय में जनता को जागृत करना, ऐसी कुछ उपाय योजना करने पर इन अपप्रकारों पर निश्चित ही रोक लगेगी। आप भी आगे आकर ये अनुचित प्रकार रोकने हेतु प्रयास करें। ध्यान रखें 31 दिसंबर मनाने से आपको उसमें से कुछ भी लाभ तो होता ही नहीं, किंतु सारे ही स्तरों पर, विशेष रूप से अध्यात्मिक स्तर पर बडी हानि होती है।
हिंदू जनजागृति समिति के प्रयासों की सहायता करें
नए वर्ष का आरंभ मंगलदायी हो इस हेतु शास्त्र समझकर भारतीय संस्कृतिनुसार चैत्र शुक्ल प्रतिपदा, अर्थात गुढीपाडवा को नववर्षारंभ मनाना नैसर्गिक, ऐतिहासिक तथा अध्यात्मिक दृष्टि से सुविधाजनक तथा लाभदायक है। अत: पाश्चात्य विकृति का अंधानुकरण करने से होने वाला भारतीय संस्कृति का अधःपतन रोकना, हम सबका ही प्रथम कर्तव्य है। राष्ट्राभिमान का पोषण करने तथा अनुचित प्रकार रोकने हेतु हिंदू जनजागृति समिति की ओर से आयोजित उपक्रम को जनता से सहयोग की अपेक्षा है। भारतीयों, गैरप्रकार, अनैतिक तथा धर्मद्रोही कृत्य कर नए वर्ष का स्वागत न करें, यह आप से विनम्र विनती।
कहां हर त्यौहार में सात्त्विक तथा ताजा चीजों को ही प्रसाद में उपयोग करने वाले हिंदू, तथा कहां, मदिरा में डुबोए सूखे मेवा से बनाया बासी केक क्रिसमस हेतु उपयोग करने वाले क्रिसमस प्रेमी।
31 दिसंबर के पूर्व आता है क्रिसमस! पूर्व में केवल 31 दिसंबर को मौज-मस्ती करने वाले अब उनकी चैनशौक का प्रारंभ क्रिसमस से ही आरंभ करते हैं। क्रिसमस के दिन सही महत्व प्लमकेक का ही होता है। बहुत सारा सूखा मेवा वाईन में (मदिरा में) डुबोकर उसके पूरी तरह से सनने पर ही प्लमकेक बनाने की मुख्य प्रक्रिया आरंभ होती है। वर्तमान में मिठाई के पर्याय के रूप में क्रिसमस प्रेमियों में केक तथा पेस्ट्रीज का ही बडा आकर्षण उत्पन्न हुआ है।
क्रिसमस की कालावधि में सजाए केक, चाकलेट तथा कुकीज की बहुत मांग होती है। प्रचुर मांग के कारण बेस (स्पंजकेक) पांच-सात दिन पूर्व ही बनाया जाता है, जो हम ‘फ्रेश फ्रॉम ओवन’ (भट्टी से निकला हुआ ताजा) कहकर खाते हैं। अब ऐसी स्थिति में इस त्यौहार का अध्यात्मिक स्तर पर तो छोडिए, क्या शारीरिक स्तर पर भी कुछ लाभ होगा? कुछ भी नहीं होगा। उलटा हुआ, तो हानि ही होगी, यह बात क्रिसमस प्रेमी तथा 31 दिसंबर प्रेमी हमेशा ध्यान में रखें।