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ग्रेग चैपल को कोच बनवाना सबसे बड़ी भूल : सौरभ गांगुली - Sabguru News
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ग्रेग चैपल को कोच बनवाना सबसे बड़ी भूल : सौरभ गांगुली

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ग्रेग चैपल को कोच बनवाना सबसे बड़ी भूल : सौरभ गांगुली
Hiring Chappell was the biggest mistake of my career : Sourav Ganguly
Hiring Chappell was the biggest mistake of my career : Sourav Ganguly
Hiring Chappell was the biggest mistake of my career : Sourav Ganguly

नई दिल्ली। देश के सबसे सफल कप्तानों में से एक सौरभ गांगुली का मानना है कि आस्ट्रेलिया के ग्रेग चैपल को टीम इंडिया का कोच बनावाना उनकी सबसे बड़ी भूल थी और उनकी चैपल के साथ लड़ाई को वह अपने क्रिकेट जीवन का काला अध्याय मानते हैं।

गांगुली की चैपल के साथ लड़ाई जगजाहिर है और स्थिति इतनी खराब हो गई थी कि कई बार उनके बीच कहासुनी भी हुई। गांगुली ने इस लड़ाई का पूरा खुलासा हाल में प्रकाशित अपनी किताब ‘ए सेंचुरी इज नाॅट इनफ़’ में किया है। चैपल को भारतीय कोच बनाने में गांगुली की ही सबसे बड़ी भूमिका रही थी और ऐसा करते समय उन्होंने कई दिग्गजों की राय तक को दरकिनार कर दिया था। अब गांगुली ने अपनी किताब में माना कि यह उनकी सबसे बड़ी भूल थी।

महान आेपनर सुनील गावस्कर और ग्रेग चैपल के भाई इयान चैपल मानते थे कि ग्रेग कोच पद के लिए कतई उपयुक्त नहीं है। गावस्कर ने तो सौरभ को यहां तक कहा था कि ग्रेग का कोचिंग रिकॉर्ड अच्छा नहीं है और उनके रहते सौरभ को टीम चलाने में परेशानी भी हो सकती है। भारतीय क्रिकेट के कद्दावर प्रशासक जगमोहन डालमिया ने सौरभ को अपने घर बुलाकर यह तक बताया था कि इयान की नजर में ग्रेग कोच पद के लिए कतई सही नहीं है।

गांगुली ने इन सब चेतावनियों को नजरअंदाज किया और चैपल को कोच बनाने के लिए डालमिया को अपनी पसंद भेज दी। गांगुली ने अपनी किताब में लिखा कि मैंने आस्ट्रेलिया में जाकर वहां मैच जीते लेकिन उनके एक नागरिक को नहीं जीत पाया। वह नागरिक और कोई नहीं ग्रेग चैपल थे जिन्होंने ना केवल गांगुली की कप्तानी से छुट्टी की बल्कि उन्हें टीम से भी बाहर करवा दिया।

पूर्व कप्तान ने लिखा कि यह मेरे जीवन का सबसे उथल-पुथल भरा अध्याय था। बिना किसी कारण के ना केवल मेरी कप्तानी छीन ली गई बल्कि मुझे एक खिलाड़ी के तौर पर भी हटा दिया गया। जब मैं यह सब कुछ लिख रहा हूं तब भी मेरे अंदर गुस्सा भरा हुआ है। जो कुछ हुआ उसके बारे में सोचा नहीं जा सकता, जिसे स्वीकार नहीं किया जा सकता और जिसे भुलाया नहीं जा सकता।

गांगुली ने कहा कि इतिहास में ऐसे बहुत कम उदाहरण मिलेंगे जब किसी विजेता कप्तान को इतने अपमानित तरीके से हटाया गया हो और वह भी तब जब उसने अपनी अंतिम टेस्ट सीरीज में शतक बनाया हो। भारतीय क्रिकेट इतिहास में ना तो एेसा कोई उदाहरण है और ना आगे होगा। लेकिन मिस्टर ग्रेगरी स्टीफन चैपल और किरण मोरे की अगुवाई में चयन समिति ने यह काम कर डाला।

चैपल की नियुक्ति 20 मई 2005 को हुई थी। उस समय चैपल दिल्ली में और गांगुली इंग्लैंड में थे। दोनों के बीच फोन पर बात हुई और गांगुली के अनुसार यह बातचीत बेहद खुशनुमा माहौल में हुई। लेकिन चंद महीने के अंदर हालात ऐसे बदल गए कि गांगुली को लगने लगा कि कुछ गलत हो रहा है।

गांगुली ने कहा कि मैं आज भी नहीं जानता कि मेरी मौजूदगी के बिना चैपल ने कैसे मेरे खिलाफ नकारात्मक विचारधारा तैयार कर ली। कोलकाता के एक मेरे पत्रकार मित्र ने मुझसे कहा था कि किसी ने मेरे खिलाफ ग्रेग के कान भरे हैं। उनका इशारा पूर्व कोच जॉन राइट की तरफ था। लेकिन मैं उससे सहमत नहीं था।

हालात तब और ज्यादा खराब हुए जब कोच ग्रेग का बोर्ड को एक गोपनीय ईमेल एक बंगाली अखबार में प्रकाशित हो गया जिसमें उन्हाेंने कहा था कि मैं शारीरिक और मानसिक रूप से टीम का नेतृत्व करने के लिए फिट नहीं हूं और टीम के शेष खिलाड़ी मुझ पर विश्वास नहीं रखते हैं, इसलिए 2007 विश्वकप से पहले नया कप्तान नियुक्त किया जाना चाहिए। क्रिकेट इतिहास में किसी कोच ने अपने कप्तान के बारे में ऐसे शब्द नहीं लिखे होंगे।

इस घटना के बाद मुंबई में ग्रेग अौर गांगुली की बोर्ड की जांच समिति के सामने पेशी हुई जिसमें दोनों ने अपने-अपने पक्ष रखे। गांगुली की ग्रेग के साथ जिम्बाब्वे दौरे में इसे लेकर कहा सुनी भी हुई। गांगुली को जिस बात का डर था वही हुआ और श्रीलंका वनडे सीरीज के लिए राहुल द्रविड़ को नया कप्तान बना दिया गया।

गांगुली ने लिखा कि मैंने जिस टीम को तैयार किया, जिस टीम पर मैंने तीन-चार साल लगाए और जिस टीम के अंदर मैंने मारक भावना भरी और अब मुझे यह कहा जा रहा है कि मैं मैच फिट नहीं हूं। मैं स्तब्ध था और मैं यकीन नहीं कर पा रहा था कि मुझे टीम से हटा दिया गया है। मैं अगले कुछ दिनों मानसिक रूप से बहुत परेशान रहा। लेकिन मैं एक योद्धा था और मैंने तय किया कि मैं लौटूंगा। चाहे मुझे कहीं भी क्यों न खेलना पड़े।

पूर्व कप्तान के लिए यह वाकई मानसिक रुप से तोड़ने वाला समय था। दो महीने पहले वह भारत की कप्तानी कर रहे थे और अब उन्हें सत्र का पहला रणजी मैच खेलने के लिए पुणे जाना पड़ रहा था। उन्होंने उस मैच में नाबाद 175 रन बनाए। भारतीय टीम तब ईडन गार्डन में दक्षिण अफ्रीका से खेल रही थी और बड़ी स्क्रीन पर गांगुली का नाम रणजी मैच के स्कोर के साथ अाया तो पूरा स्टेडियम शोर से गूंज उठा।

गांगुली को श्रीलंका के खिलाफ पहले टेस्ट के लिए चेन्नई में टीम में बुलाया गया। लेकिन दिल्ली में दूसरे टेस्ट में 34 और 37 रन बनाने के बावजूद उन्हें टीम से हटा दिया गया। इस खराब दौर के बीच गांगुली को एक ऐसा भी विज्ञापन करना पड़ा जो वह दिल से नहीं करना चाहते थे। बाजार दबाव के कारण उन्हें यह विज्ञापन करने के लिए मजबूर होना पड़ा जिसमें उन्होंने कहा कि मैं सौरभ गांगुली हूं। भूले तो नहीं, जो हुआ क्यों हुआ। हवा में शर्ट घुमाने के लिए और एक मौका मिल जाए।

ग्रेग आैर गांगुली की लड़ाई भारतीय क्रिकेट का सबसे चर्चित अध्याय रही। भारत की विश्वकप नाकामी के बाद ग्रेग को इस्तीफा देना पड़ा। गांगुली अपनी लड़ाई खुद लड़ते हुए वापस टीम में लौटे और उन्होंने छह से 10 नवंबर 2008 नागपुर में आस्ट्रेलिया के खिलाफ अपना आखिरी टेस्ट खेलकर अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट को अलविदा कह दिया।