नई दिल्ली। सुप्रीमकोर्ट ने पांच सौ साल से अधिक पुराने अयोध्या राम जन्मभूमि विवाद का आज पटाक्षेप करते हुए विवादित भूमि श्रीराम जन्मभूमि न्यास को सौंपने और सुन्नी वक्फ बोर्ड को मस्जिद के निर्माण के लिए अयोध्या में ही उचित स्थान पर पांच एकड़ भूमि देने का निर्णय सुनाया।
प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने यह फैसला सुनाते हुए कहा कि विवादित भूमि श्रीराम जन्मभूमि न्यास को दी जाएगी तथा सुन्नी वक्फ को बोर्ड अयोध्या में ही पांच एकड़ वैकल्पिक जमीन उपलब्ध कराई जाए। गर्भगृह और मंदिर परिसर का बाहरी इलाका राम जन्मभूमि न्यास को सौंपा जाए।
पीठ ने कहा है कि विवादित स्थल पर रामलला के जन्म के पर्याप्त साक्ष्य हैं और अयोध्या में भगवान राम का जन्म हिन्दुओं की आस्था का मामला है और इस पर कोई विवाद नहीं है।
अयोध्या : 500 साल पुराने विवाद में 206 साल बाद फैसला
संविधान पीठ में न्यायमूर्ति गोगोई के अलावा न्यायमूर्ति शरद अरविंद बोबडे, न्यायमूर्ति अशोक भूषण, न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर हैं। पीठ ने अपने एकमत फैसले में कहा है कि केन्द्र सरकार तीन से चार महीने के भीतर मंदिर निर्माण के लिए एक न्यास का गठन करे और उसके प्रबंधन तथा आवश्यक तैयारियों की व्यवस्था करे।
न्यायालय ने शिया वक्फ बोर्ड की मालिकाना हक और निर्मोही अखाडे की याचिकाओं को खारिज कर दिया और साफ किया कि मस्जिद खाली जगह पर नहीं बनाई गई थी तथा उसके नीचे मंदिर के अवशेष थे। पीठ ने साथ ही यह भी स्पष्ट किया कि इस बात के सबूत नहीं हैं कि मंदिर को तोडकर ही मस्जिद बनाई गई थी।
फैसले में यह भी स्पष्ट किया गया कि इस मामले में केवल आस्था के आधार पर मालिकाना हक का निर्णय नहीं किया जा सकता लेकिन ऐतिहासिक साक्ष्यों से संकेत मिलता है कि हिन्दू मानते रहे हैं कि भगवान राम का जन्मस्थान अयोध्या है।
फैसले में कहा गया है कि निर्मोही अखाड़े को केन्द्र सरकार द्वारा मंदिर के निर्माण के लिए बनाये जाने वाले न्यास में प्रतिनिधित्व मिलेगा। पीठ ने यह भी स्पष्ट किया कि 2.77 एकड़ की समूची विवादित भूमि राममंदिर निर्माण के लिए दी जाएगी।
पिछले पांच सौ वर्षों से चले आ रहे इस विवाद में 206 साल के बाद फैसला आया है। विवादित स्थल पर हिंदू और मुस्लिम पक्षकारों में मालिकाना हक का विवाद 1813 में शुरू हुआ था। इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने 30 सितम्बर 2010 को अयोध्या में विवादित जमीन को रामलला विराजमान, निर्मोही अखाड़ा और सुन्नी वक्फ बोर्ड में बराबर बांटने का फैसला किया, जिसके खिलाफ शीर्ष अदालत में 14 विशेष अनुमति याचिकाएं दायर की गई।
शीर्ष अदालत ने इस मामले की सुनवाई मध्यस्थता की कोशिशों के विफल होने के बाद शुरू की थी। इससे पहले शीर्ष अदालत ने मध्यस्थता के लिए न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) मोहम्मद इब्राहिम कलीफुल्ला के नेतृत्व में तीन सदस्यीय मध्यस्थता पैनल का गठन किया था।
मध्यस्थता की कोशिश विफल होने के बाद संविधान पीठ ने गत सितम्बर में इसकी सुनवाई शुरू की थी और लगातार 40 दिन की सुनवाई के बाद गत 16 अक्टूबर को अपना फैसला सुरक्षित रखा था। संविधान पीठ ने सुनवाई में सभी पक्षों को अपनी-अपनी बात रखने के लिए पर्याप्त अवसर दिए।
भारतीय राजनीति पर दशकों से छाए इस विवाद की सुनवाई के दौरान राम जन्मभूमि पर अपने दावे के पक्ष में जहां रामलला विराजमान, निर्मोही अखाड़ा, ऑल इंडिया हिन्दू महासभा, जन्मभूमि पुनरुद्धार समिति एवं गोपाल सिंह विशारद ने दलीलें दी, वहीं सुन्नी वक्फ बोर्ड, हासिम अंसारी (मृत), मोहम्मद सिद्दिकी, मौलाना मेहफुजुरहमान, फारुख अहमद (मृत) और मिसबाहुद्दीन ने विवादित स्थल पर बाबरी मस्जिद के मालिकाना हक का दावा किया।
जय श्री राम के नारों से गूंजा अदालत कैंपस
अयोध्या भूमि विवाद मामले में सुप्रीमकोर्ट का फैसला आते ही अदालत परिसर में मौजूद राम मंदिर समर्थकों के बीच उत्साह की लहर दौड़ गई और उन्होंने ‘जय श्री राम’ का उद्घोष कर प्रसन्नता व्यक्त की।
अदालत ने विवादित जमीन पर राम मंदिर के निर्माण और मस्जिद निर्माण के लिए अलग से पांच एकड़ भूमि आवंटित करने का आदेश दिया। इससे यहां मौजूद मंदिर समर्थकों में उत्साह की लहर दौड़ गई।
स्वामी धर्मदास और स्वामी चक्रपाणि के समर्थक ‘एक ही नारा एक ही नाम, जय श्री राम, जय श्री राम’ के नारे लगाते हुए जुलूस की शक़्ल में चलकर लाॅन तक आए। वे काफी देर तक नारेबाजी करते रहे। न्यायालय लाॅन में शंख नाद भी किया गया। कई वकील भी ‘जय श्री राम’ के नारे लगाते दिखे।
फैसले के दौरान ये बातें रहीं मुख्य
अयोध्या केस में निर्मोही अखाडे का दावा खारिज।
राम जन्मभूमि एक न्ययिक व्यक्ति नहीं है।
रामलाला विराजमान को कानूनी मान्यता।
एएसआई की रिपोर्ट को खारिज नहीं किया जा सकता।
एएसआई की रिपोर्ट में मंदिर होने के साक्ष्य।
एएसआई ने यह नहीं कहा कि ढांचा तोडकर मंदिर बना।
खुदाई में मिला ढांचा गैर इस्लामिक था।
मंदिर और मस्जिद के निर्माण में 400 साल का अंतर।
मुस्लिम उसे नमाज पढने की जगह मानते हैं।
दोनों पक्षों की दलीले कोई नतीजा नहीं देतीं हैं।
हिन्दू मानते हैं गुम्बद के नीचे रामलला का स्थान।
हिन्दू पक्ष ने कई ऐतिहासिक सबूत दिए।
आस्था पर फैसला न्यायिक जांच से बाहर।
मुस्लिम पक्ष का दावा आधी रात को प्रतिमा रखी गई।
मुस्लिम पक्ष उसे मस्जिद और कब्रिस्तान बताता है।
हिन्दू पक्ष वहां सीता की रसोई का दावा करता है।
आस्था पर जमीन के मालिकाना हक का फैसला नहीं।
जमीन के अधिग्रहण से पहले मुस्लिम नमाज पढते थे।
सुन्नी वक्फ बोर्ड का दावा विचारणीय।
अंदरूनी हिस्से में हमेशा से पूजा होती थी।
बाहरी चबूतरा, राम चबूतरा और सीता रसोई में भी पूजा।
हिन्दू मुख्य गुम्बद को राम जन्मस्थान मानते हैं।
लोग अंदरूनी हिस्से को राम जन्मभूमि मानते हैं।
मस्जिद बनने के वक्त से नमाज का दावा साबित नहीं।
1949 तक मुस्लिम नमाज पढा करते थे।
प्रचीन यात्रियों ने रामजन्म भूमि का जिक्र किया है।
सुन्नी वक्फ बोर्ड अपने दावे को साबित नहीं कर पाया।
हिन्दू पक्ष ने बाहरी हिस्से पर दावा साबित किया।
हिन्दूओं ने मस्जिद को कभी नहीं छोडा था।
संविधान की नजर में आस्थाओं में भेदभाव नहीं।
समानता संविधान की मूल भावना।
कोई आस्था नहीं सबूतों पर फैसला देती है।
अंदरूनी हिस्सा विवादित है।
1856 से पहले मुस्लिमों का मुख्य गुम्बद पर दावा नहीं।
सुन्नी वक्फ बोर्ड को पांच एकड जमीन दी जाए।
जमीन या तो अधिग्रहीत जमीन पर या अध्योध्या में कहीं पर भी हो।
विवादित जमीन रामलला विराजमान को दी गई।
मंदिर निर्माण के लिए ट्रस्ट बनाया जाए।
केन्द्र सरकार तीन महिने में ट्रस्ट बनाकर मंदिर निर्माण कराए।