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HOLI 2018:जानें कथा और व्रत व‍िध‍ि,भगवान शिव को होली से जोड़ती है रंगभरी एकादशी

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How to believe Holi festival in different places in India
SABGURU NEWS | नई दिल्ली: इस बार होली 2 मार्च को मनाई जा रही है। लेकिन बनारस में यह होली 26 फरवरी से रंगभरी एकादशी के मौके से शुरू होगी। फाल्गुन शुक्ल महीने की एकादशी को रंगभरी एकादशी कहा जाता है। इस बार यह एकादशी 26 फरवरी को है जिसे आमलकी एकादशी भी कहते हैं।

रंगभरी एकादशी पर काशीपुराधिपति देवाधिदेव महादेव बाबा विश्वनाथ को दूल्हे के रूप में सजाया जाता है और उन्हें मां गौरा के गौने पर लाया जाता है। इस बार गौना बारात में महादेव खादी से बना वस्त्र धारण करेंगे। इस दिन बाबा विश्वनाथ को विशेष रूप से सजाया जाता है। भक्तगण रंगों और फूलों की होली खेलते हैं। रंगभरी यानी जो हर रंग से भरी हो।

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काशी में रंगभरी एकादशी के दिन होली का शुभारंग
पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक इसी दिन काशी में होली पर्व का शुभारंभ माना जाता है। रंगभरी एकादशी के दिन भगवान शिव माता पार्वती से विवाह के बाद पहली बार अपनी काशी नगरी आए थे। इस पर्व में शिव जी के गण उन पर व समस्त जनता पर रंग अबीर गुलाल उड़ाते, खुशियां मानते चलते हैं। इस दिन बाबा अपने भक्तों के साथ अबीर-गुलाल से होली खेलते हैं। काशी इस दिन हर-हर महादेव के नारे और अबीर गुलाल से सराबोर रहता है। बाबा विश्वनाथ के दरबार में उनके दर्शन के लिए भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है। काशी में हर साल बाबा विश्वनाथ का भव्य श्रृंगार रंगभरी एकादशी, दीवाली के बाद आने वाली अन्नकूट और महाशिवरात्रि के दौरान किया जाता है।

मांगलिक कार्यों के शुरुआत का उत्सव
ऐसी मान्यता है कि रंगभरी एकादशी से ही घरों में शुभ और मांगलिक कामों की शुरुआत हो जाती है। शुरुआत के लिए यह दिन अच्छा माना जाता है इसलिए रंगभरी एकादशी का विशेष महत्व है। शास्त्रों के मुताबिक होलिका दहन फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि में करना चाहिए। इस साल 1 मार्च को सुबह 8 बजकर 58 मिनट से पूर्णिमा तिथि लग रही है लेकिन इसके साथ भद्रा भी लग रहा है। ऐसा नियम है कि भद्रा काल में होलिका दहन नहीं करना चाहिए इससे अशुभ फल प्राप्त होता है। शाम में 7 बजकर 37 मिनट पर भद्रा समाप्त हो जाएगा, इसके बाद से होलिका दहन किया जाना शुभ रहेगा।

रंगभरी एकादशी को कैसे करें पूजा
रंगभरी एकादशी के दिन आप काशी यानी बनारस में नहीं रहकर भी इस पर्व को मना सकते हैं। सुबह उठकर स्नान कर लें और शिव-पार्वती की पूजा करें। शिव-पार्वती की मूर्ति या तस्वीर पर गुलाल लगाएं। भगवान शिव को बेलपत्र दूध, इत्र और भांग चढ़ाने से पु्ण्य फल की प्राप्ति होती है और बहुत दिनों से रुके हुए काम बन जाते है। रंगभरी एकादशी को आमलकी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। इसी वजह से इस दिन भगवान विष्णु को प्रिय आवंले के पेड़ की पूजा भी होती है।
आंवला वृक्षों में श्रेष्ठ कहा गया है, इसका हर भाग इंसान को लाभ पहुंचाता है और इसी वजह से ये भगवान विष्णु का प्रिय है। इस दिन भगवान शंकर का ऊं नम: शिवाय मंत्र का जाप भी विशेष रुप से फलदाई माना गया है। यह भी कहा जाता है कि इस दिन भोले की पूजा हर दुखों को हर लेती है और सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं।

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