अजमेर। पंचशील नगर स्थित ज्ञान मार्ग पर हर साल की तरह होलिका दहन सोमवार शाम करीब 7:30 बजे शुभ मुहूर्त पर विधि विधान के साथ किया गया। होली का उमंग और उत्साह कोरोना वायरस पर भारी पडा। बडी संख्या में क्षेत्रवासियों ने होलिका दहन कार्यक्रम में शिरकत की।
होलिका दहन के साथ ही भक्त प्रहलाद के जयकारे गूंज उठे। मताओं बहनों ने जल से होली को ठंडा किया। इसके साथ ही होलिका में उपले तथा नई बालिया अर्पित कीं। कई शताब्दियों के बाद इस बार होली पर गुरु और शनि अपनी अपनी राशि में एक साथ रहने से होलिका दहन का धार्मिक महत्व बढ गया।
होली पर पारिजात, वेशि और बुधादित्य योग भी बना। होलिका दहन पर इस बार ध्वज योग, अमृत योग और सौभाग्यसुंदरी योग का महासंयोग बना। ऐसा संयोग होलिका दहन पर करीब नौ वर्षों के बाद बना। पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र में होलिका दहन होने से ध्वजा योग बना है।
होलिका दहन से पूर्व माताओं बहनों ने परिक्रमा कर होली की पूजा अर्चना के साथ भगवती और हनुमान जी की आराधना की। उन्हें गुलाबी अबीर, अबरख, तुलसीपत्र और मंजरी अर्पित किए। मंगल दोष से मुक्ति तथा मांगलिक कार्य के निर्विघ्न सम्पन्न होने का आशीर्वाद मांगा।
मान्यता है कि होलिका दहन के बाद से ही मांगलिक कार्य प्रारंभ हो जाते हैंं। होली से आठ दिन पहले तक भक्त प्रह्लाद को अनेक यातनाएं दी गई थीं। इस काल को होलाष्टक कहा जाता है। होलाष्टक में मांगलिक कार्य नहीं होते हैं। कहते हैं कि होलिका दहन के साथ ही सारी नकारात्मक ऊर्जा समाप्त हो जाती है।
होलिका दहन की कथा
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार सालों पहले पृथ्वी पर एक अत्याचारी राजा हिरण्यकश्यपु राज करता था। उसने अपनी प्रजा को यह आदेश दिया कि कोई भी व्यक्ति ईश्वर की वंदना न करे, बल्कि उसे ही अपना आराध्य माने। लेकिन उसका पुत्र प्रह्लाद ईश्वर का परम भक्त था। उसने अपने पिता की आज्ञा की अवहेलना कर अपनी ईश-भक्ति जारी रखी। ऐसे में हिरण्यकश्यपु ने अपने पुत्र को दंड देने की ठान ली। उसने अपनी बहन होलिका की गोद में प्रह्लाद को बिठा दिया और उन दोनों को अग्नि के हवाले कर दिया। दरअसल, होलिका को ईश्वर से यह वरदान मिला था कि उसे अग्नि कभी नहीं जला पाएगी। लेकिन दुराचारी का साथ देने के कारण होलिका भस्म हो गई और सदाचारी प्रह्लाद बच निकले। तभी से बुराइयों को जलाने के लिए होलिका दहन किया जाने लगा।