जबसे आनंद कुमार की बायोपिक की घोषणा की गई है, तब से यहां एक ही बहस ही चल रही है, यह आधे सच पर आधारित है। बताया जा रहा है कि यह बायोपिक ‘सुपर 30: चेंजिंग द वर्ल्ड 30 स्टूडेंट्स ऐट ऐ टाइम’ बुक पर आधारित है जिसमें अभयानंद का कोई उल्लेख नही है जो कि ‘सुपर 30’ के सह-संस्थापक है। यह संस्थान समाज के 30 सुविधवंचित छात्रों को एक मंच मुहैया कराती है जहाँ वो देश के सर्वाधिक कठिनाई माने जाने वाली प्रवेश परीक्षा आईआईटी की तैयारी करते है।
अब विकास बहल ने रितिक रॉशन को डायरेक्ट करने के लिए खुद को तैयार कर लिया है जो कि इस बायोपिक (सुपर 30) में आनंद का रोल अदा करंगे परंतु इस फ़िल्म में अभयानंद का कही कोई जिक्र नही आ रहा है। सूत्रों के मुताबिक ‘इस फ़िल्म में अभयानंद का कही भी उल्लेख नही है। आनंद इस फ़िल्म में खुद का ही चित्रण करवाना चाहते हैं क्योंकि ना तो कभी उन्होंने अभयानंद को क्रेडिट देना तो दूर की बात है आज तक उन्होंने उनके योगदान का जिक्र भी नही किया है जबकि हम सभी बिहारवासी ने ‘आनंद और अभयानंद’ के रूप में अपने दोनों ही आंखों से आईआईटी जाने का सपना देखा था। महानता दिखा कर अमर होने की बजाय क्षणिक प्रसिद्धि के लिए वो यह कैसे भूल गए कि शिक्षक समाज को जोड़ता,एक सूत्र में पिरोता है। हम तो उनसे अभयानंद जैसा सोच, व्यवहार और सादगी उम्मीद भी नही कर सकते।
‘सुपर 30’ एक महागाथा है जो किसी एक अकेले की कामयाबी हो ही नही सकती, इस महागाथा में विषयवार उत्कृष्ट शिक्षकों का समूह, पढ़ाने की अनूठी शैली, छात्र व शिक्षक का अद्भुत संयोजन है। कैसे कोई कह सकता है कि किसी एक व्यक्ति की कहानी है, वो भी तब जब आप प्रायः प्रदेश, देश-विदेशों के दौरे पर होते है। क्या आपके साथ कोई और शिक्षक नही होते? क्या अन्य शिक्षकों को इस कामयाबी और प्रसिद्धि का अंश मात्र श्रेय भी नही मिलना चाहिए?
खैर छोड़िए, आनंद के बारे में जितनी बाते की जाय काम ही है, सोशल मीडिया, लोकल मीडिया पर उनके विरुद्ध एक मुहिम जैसा दिख रहा है, जो धीरे-धीरे अपना आकर ले रहा है। लोग खुलकर उनके खिलाफ सामने आ रहे है। प्रायः अखबारों में उनके बारे में कुछ न कुछ नकारात्मक खबरे छपती ही रहती है, कभी धड़ा-धड़ जमीन की रजिस्ट्री, तो कभी उनकी कार्यशैली ओर प्रश्न चिन्ह। इतना कुछ होने के बाबजूद सरकार भी उन्हें अपना ब्रांड-एम्बेसडर के तरह प्रदर्शित करती है।
अभयानंद ने कहा ही नही बल्कि कर के दिखाया कि ‘सुपर 30’ की धारणा उनके दिमाग की उपज है। पिछले साल उन्होंने आईआईटी के नतीजे आने के पूर्व ही प्रेस कॉन्फ्रेंस में यह बता और जता भी दिया, उन्होंने अपने सारे 22 प्रतिभागियो को मीडिया के सामने सिर्फ प्रस्तुत ही नही किया बल्कि दावा भी किया कि गुवहाटी जोन का टॉप रैंकर ‘अभयानंद सुपर 30’ का होगा और ऐसा हुआ। क्या हम आनंद से ऐसा उम्मीद कर सकते है? आज तक उनके तरफ से सिर्फ यह सूचना दी जाती है कि उनके से संस्थान के 30 बच्चों का आईआईटी में चयन हुआ है, आज तक कभी सूची नही आयी, कौन सी आईआईटी? कौन से 30 बच्चे? वो सिर्फ समाज को ही नही बल्कि मीडिया को भी दिग्भ्रमित कर अपना महिमामंडन करवाना चाहते है। उनके इस फरेब की गाथा सोशल व लोकल मीडिया से होते हुए राष्ट्र से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहुँच गया है।
उन पर आधारित बायोपिक भी इसी महिमामंडन का परिणाम है। अगर यह फ़िल्म सत्य पर आधरित होती तो हम बिहारवासियों के लिए गौरव की बात होती, राज्य की अलग छवि बनती, पूरे विश्व मे इसे लेकर चर्चे होते किंतु एक इंसान के स्वार्थ मात्र ने पूरा जायका ही खराब कर दिया है। हम तो यही चाहेंगे कि फ़िल्म के निर्माता/निर्देशक तथ्यों को समझदारी पूर्वक जांचे-परखे तब फ़िल्म को आगे बढ़ाएं।
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