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If ED enters Mount Abu, these IAS officers will also under radar of ED! - Sabguru News
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माउंट आबू में ED की एंट्री हुई तो ये IAS आधिकारी भी आ सकते जॉच की जद में!

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माउंट आबू में ED की एंट्री हुई तो ये IAS आधिकारी भी आ सकते जॉच की जद में!
माउंट आबू में अधिकारीयों की मिलीभगत से लिंबडी कोठी में के ऊपरी माले के पतरे को हटाकर डाली जा रही आरसीसी।
माउंट आबू में अधिकारीयों की मिलीभगत से लिंबडी कोठी में के ऊपरी माले के पतरे को हटाकर डाली जा रही आरसीसी।

सिरोही। सिरोही जिले के आबूरोड में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के सामने उनके सलाहकार संयम लोढ़ा ने माउंट आबू के उपखंड अधिकारियों द्वारा उन्हें मिली एब्सोल्यूट पावर का दुरुपयोग करने का आरोप लगाया था। एकाधिकार मिलने का दुरुपयोग करना अब माउंट आबू के उपखंड अधिकारियों को भारी पड़ सकता है।

भाजपा सांसद किरोड़ीलाल मीणा के द्वारा माउंट आबू के लिंबडी कोठी में कथित रूप से मुख्यमंत्री के पुत्र वैभव गहलोत पर प्रदेश में 4 होटलों में मनी लांड्रिंग के जरिए निवेश करने का आरोप लगाने और इसका परिवाद प्रवर्तन निदेशालय की देने के बाद माउंट आबू में भी ईडी की एंट्री हो सकती है। अपनी पत्रकार वार्ता में जिन चार होटल समूहों में मनी लांड्रिंग का पैसा निवेश करने का आरोप किरोड़ीलाल मीणा ने लगाया है उसमें माउंट आबू की लिमंडी पैलेस (लिंबडी कोठी) होटल भी शामिल थी।

दस्तावेजों की जांच में हुई तो खुलेगी कइयों की भूमिका

अगर किरोड़ीलाल मीणा के परिवाद पर ईडी संज्ञान लेती है और माउंट आबू की लिंबड़ी कोठी प्रकरण की जांच करती है तो फिर इसकी जांच के दस्तावेजों के लिए माउन्ट आबू भी आना पड़ सकता है। यदि ऐसा हुआ तो माउंट आबू में निर्माण के लिए एकाधिकार प्राप्त उपखंड आधिकारी कार्यालय से दस्तावेजों को जुटाने के लिए एनफोर्समेंट डिपार्टमेंट यहां भी पहुंच सकता है। ऐसे में निर्माण इजाजत में हुए भ्रष्टाचार को छिपाने के लिए जो दस्तावेज यहां के उपखंड आधिकारी सूचना के अधिकारी के तहत छिपा रहे थे वो भी बाहर आ सकते हैं। अगर ईडी मीना को गंभीरता से नहीं लेती तो जो जैसे चल रहा है वैसा चलेगा ही।

इस दौरान माउंट आबू के उपखंड आधिकारी के पद पर कार्यरत डॉक्टर रविंद्र गोस्वामी, गौरव सैनी, अभिषेक सुराणा, कनिष्क कटारिया के साथ हाल में स्थानांतरित हुए एडीएम राहुल जैन ने भी लिंबडी कोठी के लिए निर्माण सामग्री जारी की है तो वो भी इस जांच और पूछताछ की जद में आ सकते हैं। इसके आलावा कथित रूप से जुगलकिशोर जाखड़ के हस्तक्षेप से माउंट आबू नगर पालिका में आयुक्त लगे आशुतोष आचार्य, कार्यवाहक आयुक्त गौरव सैनी, जितेन्द्र व्यास, रामकिशोर, कार्यवाहक आयुक्त कनिष्क कटारिया, शिवपाल सिंह राजपुरोहित की भूमिका भी जांच के दायरे में आ सकती है।

सूत्रों के अनुसार ये सब लोग सीधे सीधे जयपुर के अधिकारीयों के निर्देशन में काम करते रहे और एक रणनीति के तहत सारे आधिकार किसी समिति की बजाय उपखंड अधिकारियों को ही दे दिए गए ऐसे में मॉनिटरिंग कमेटी के सचिव के रूप में काम करने वाले जिला कलेक्टरों के गले बच गए हैं।

यूं एक समाचार पत्र ने गौरव सैनी और कनिष्क कटारिया को उन आइएएस अधिकारीयों की श्रेणी में रखा है जो जनता में विश्वास नहीं जमा पाए हैं। माउंट आबू में इनके कार्यकाल में ये सामने आया कि इनके फील्ड पोस्टिंग में रहने पर जनता के बीच गहलोत सरकार के जनविरोधी होने का संदेश पहुंचा। शायद इसी कारण इन्हे कम समय में ही हटाया गया हो। माउंट आबू में कॉन्ग्रेस नेता की ऑडियो वायरल होने की घटना वहां के उपखंड अधिकारी गौरव सैनी की उस चेतावनी के बाद की है, जिसमे वो कहते हैं कि समय पड़ने पर वो माउंट आबू बोर्ड की हरकतों को सामने लाएंगे।

गौरव सैनी ही वो उपखंड अधिकारी हैं जिन्होंने कार्यवाहक आयुक्त रहते हुए माउंट आबू में मख्यमंत्री अशोक गहलोत के द्वारा लागू किए गए बिल्डिंग बायलॉज को अटकाया था। इन्होंने डीलबी को एक पत्र लिखकर सालों बाद शुरु होने वाली भवन निर्माण समिति की बैठक में अडंगा लगाया था। वहीं कनिष्क कटारिया ने कार्यवाहक आयुक्त रहते हुए मख्यमंत्री के सलाहकार संयम लोढ़ा के द्वारा जारी करवाए गए एस 2 जोन के इंप्लीमेंटेशन को अटकाए रखा। कॉन्ग्रेस और भाजपा दोनों ये आरोप लगाती रही है कि इन दोनो के चलाए कागजों की वजह से ही माउंट आबू को मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की मंशानुसार राहत नहीं मिल रही है।

राजनितिक मुद्दा न बना तो भ्रष्टाचार का मुद्दा बनेगा

मनी लांड्रिंग के प्रकरण में केस दर्ज होने पर केन्द्रीय जांच एजेंसी को राजस्थान में हस्तक्षेप करने का मौका मिल जाएगा। ऐसे में लिंबड़ी कोठी का किरोड़ीलाल मीना के आरोप के अनुसार यदि इस मामले में बद्रीराम जाखड़ के माध्यम से मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से तार जोड़ने हैं तो माउंट आबू उपखंड अधिकारी और नगर पालिका कार्यालय भी जांच के दायरे में आएंगे।

वहां से दस्तावेज निकले तो माउंट आबू के अशोक गहलोत सरकार के कार्यकाल में तैनात उपखंड अधिकारियों और नगर परिषद् आयुक्तों के कार्यकाल के दस्तावेजों की जांच भी होगी। ऐसे में यहां निर्माण और मरम्मत की अनुमति देने में बरती गई अनियमितता, भ्रष्टाचार और भेदभाव के कई दस्तावेज सामने आने से इनकार नही किया जा सकता है।

ऐसे में ये मुद्दा खुद के हित के लिए जनता के हित को दरकिनार करने के अशोक गहलोत सरकार की कार्य प्रणाली भी उजागर करेंगे। इतना ही नही इसमें ऐसे कई धन्ना सेठों के भी ईडी के दायरे में आने से इनकार नही किया जा सकता जिन पर मांउट आबू में होटल और बंगलो के निर्माण के लिए वैध और अवैध तरीके से धन उड़ाने का आरोप लगता रहा है।

नियम पालते तो बच सकते थे उपखण्ड आधिकारी

माउंट आबू में निर्माण मरम्मत की अनुमति देने के लिए 2015 में मॉनिटरिंग कमिटी ने उपखण्ड अधिकारी की अध्यक्षता में एक उप समिति का गठन किया था। निर्माण और मरम्मत की अनुमति इसी उप समिति को देनी थी। इस उप समिति में माउंट आबू के उपवन संरक्षक के साथ मुख्य मोनिटरिंग कमिटी के स्थाई और अस्थाई सदस्य भी शामिल थे, लेकिन माउंट आबू के उपखंड अधिकारियों ने इस उपसमिति को दरकिनार करके एकाधिकार जमाते हुए बिना उपवन संरक्षक और अन्य सदस्यों की बैठक के मनमर्जी से निर्माण सामग्रियां जारी करते रहे।

यही नहीं कनिष्क कटारिया ने तो इस उप समिति की बैठकों के एजेंडे और प्रस्तावों के संबध में मांगी गई सबगुरु न्यूज की आरटीआई का 6 महीने तक जवाब नहीं दिया। जब इसकी अपील जिला कलेक्टर के पास की गई तो स्थानान्तरण से एकाध दिन पहले इस कारण से इसकी जानकारी देने से मना कर दिया कि ये थर्ड पार्टी सूचना है। जबकि अपील अधिकारी जिला कलेक्टर ने ये सूचना देने के निर्देश दिए थे।

अब समिति की बैठकें किस तरह से थर्ड पार्टी सूचना हुई ये समझ से परे है। ये सूचनाएं छिपाना इस बात की ओर इशारा है कि माउंट आबू के उपखंड अधिकारी निर्माण और मरम्मत की आड़ में किसी बड़ी अनियमितता को छिपाने की कोशिश कर रहे थे। संभवतः वो अनियमितता लिंबडी कोठी और कांग्रेस की वर्तमान सरकार के संरक्षण में हुए अनियमित निर्माणों की हो।